For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक - २४ (Now Closed)

आदरणीय साहित्य प्रेमियो,
सादर वन्दे |

ओबीओ लाईव महा-उत्सव के 24 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | पिछले 23 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने 23 विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलम आज़माई की है | जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तेज़ करने का अवसर प्रदान करता है | इस आयोजन के अंतर्गत कोई एक विषय या एक शब्द के ऊपर रचनाकारों को अपनी रचनाएँ प्रस्तुत करना होता है | इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है:-

OBO लाइव महा उत्सव" अंक - 24
 

विषय -  नारी-शक्ति

आयोजन की अवधि-  6 अक्तूबर दिन शनिवार से 8 अक्तूबर दिन सोमवार तक

 

इस वर्ष माह अक्तूबर में भारतवर्ष सहित समस्त विश्व में भारतीयों और हिन्दु जीवनावलंबियों द्वारा दूर्गापूजा और दशहरा का त्यौहार मनाया जा रहा है | अवसर की गरिमा एक है परन्तु दोनों त्यौहारों की अलग-अलग अवधारणाएँ हैं | जहाँ देवी दूर्गा समस्त पौरुषीय ऊर्जस्विता तथा समवेत वीर्यता का अद्भुत मानवीयकरण हैं, वहीं दशहरा की पृष्ठभूमि ही राम की ’शक्ति-पूजा’ है | ’शक्ति’ की इस उन्नत अवधारणा को प्रतिपादित कर चुके भारतीय जन-समाज में आज के संदर्भ को देखते हुए नारी के उज्ज्वल तथा सकारात्मक पक्ष को प्रस्तुत करना आवश्यक हो चला है | ’शक्ति’ केवल संहार नहीं, सृजन तथा पुरुषोचित विजय-उद्घोष का भी मूल है | इस बार के आयोजन के विषय की प्रासंगिकता के मूल को हम समझें और आयोजन को सफल करें |

तो आइए मित्रो, उठायें अपनी कलम और दे डालें अपनी कल्पना को हक़ीक़त का रूप | बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य-समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए | महा-उत्सव के लिए दिए विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित पद्य-रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते है | साथ ही अन्य साथियों की रचनाओं पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --


तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
हाइकू
व्यंग्य काव्य
मुक्तक

शास्त्रीय-छंद  (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका इत्यादि)

अति आवश्यक सूचना -- OBO लाइव महा उत्सव अंक- 24 में सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अधिकतम तीन स्तरीय प्रविष्टियाँ ही दे सकेंगे | नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटा दिया जाएगा | यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी |

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो शनिवार 6 अक्तूबर लगते ही खोल दिया जायेगा ) 

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो  www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.


महा उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

भवदीय, 


सौरभ पाण्डेय
मंच संचालक
सह
सदस्य प्रबंधन टीम

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

Views: 14543

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

अद्भुत! अद्भुत !

आपकी संवेदनशील लेखनी, हर शब्द चित्र पर देर-देर तक रोक रही है, मन-मस्तिष्क को कचोट रही है...झकझोर रही है.

हर तरह के अतिरेक को नकारतीं
इन्हींने तो जताया है समस्त ब्रह्माण्ड को --
हिंसा साध्य नहीं 
संवाद और निराकरण का एक माध्यम भी होता है.........हिंसा के पीछे के मनोविज्ञान का पूरा एक्स-रे ..वाह 

अनवरत परीक्षित होता रहता है यह सर्वग्राही धैर्य 
सदा-सदा-सदा 
पुरातन काल से...................................................अनेकानेक उदाहरण और बिम्ब उभर रहे हैं मानस पटल पर ..बहुत खूब 

 

अधमुँदी आँखों की विचल कोर को नम न होने देना 
उसका प्रवाह भले न दीखे 
वज़ूद बहा ले जाता है............................................बिलकुल सच कहा, ख़ामोशी अपने अन्दर तीव्रतम  तूफ़ान समेटने में सक्षम होती है 

 

जगे अमरत्व का पर्याय अक्सर आसुरी क्यों होने लगता है 
एक बार फिर से छुए जाने के लिये ?....................................कई पौराणिक कथाओं के बिम्ब उभर रहे है, गजमुखासुर, भस्मासुर, हिरन्यकश्यप आदि आदि ...बहुत सुन्दर 

 

थैले उठाये सब्ज़ी लाती कल्याणी 
बच्चों संग झँखती-झींकती कात्यायनी  
पानी के लिये चीखती कालरात्रि  
सुबह से शाम तक स्वयं को बूझती-ढूँढती-निपटती कुष्माण्डा  ........मर्मस्पर्शी पंक्ति 
देर रात तहस-नहस होती आहत-गर्व कालिका ...........................निःशब्द करने वाले भाव 
अपने अनुरूपों का भ्रूण-वध सहती सिद्धिदात्रि  ............................गहन वेदना ने शब्द बिम्ब लिए हैं 
शक्ति, तुझे मैंने कितना कुछ जाना है !................................................शायद शक्ति को जानने की पराकाष्ठा यही तो है 

 

बहुत बहुत बधाई इस अभिव्यक्ति पर, और हार्दिक साधुवाद इन उच्च भावों के प्रति. सादर.

डॉ.प्राची, आपकी संवेदनशील दृष्टि ने इन शब्द-रूपों को जिस गहराई से देखा है वह मुझे भी अभिभूत कर रहा है. आपने वस्तुतः इस रचना के मुख्य विन्दुओं को उनके वास्तविक परिप्रेक्ष्य में देखने की कोशिश की है.  रचना के बिम्बों को आपकी आध्यात्मिकता ने सहजता से आतमसात किया है. रचना को आपका अनुमोदन मिला, मैं कृतार्थ हूँ.

सधन्यवाद

हिंसा साध्य नहीं 
संवाद और निराकरण का एक माध्यम भी होता है. ..bilkul..

विस्तार वस्तुतः कढ़ता है 
स्वीकृत होते ही सबल हो जाता है ..yes!

उसका प्रवाह भले न दीखे 
वज़ूद बहा ले जाता है....hriday ko chhoo gaya...

.....एक बार फिर से छुए जाने के लिये ?...wah.

अपने अनुरूपों का भ्रूण-वध सहती सिद्धिदात्रि  
शक्ति, तुझे मैंने कितना कुछ जाना है ! .. .

सौरभ जी लाजवाब...लाजवाब...धन्य है लेखनी आपकी..

 

आदरणीय अविनाशजी, आपकी सहृदयता के हम सदा से कायल रहे हैं. आपकी टिप्पणियाँ मानसिक संबल दे कर आगे बढ़ने और सोचने को प्रेरित करती हैं.

सादर

उन्नत भाव , सुसंगठित शब्दों का  संयोजन, शिल्पगत कसाव जब ये सभी बातें  किसी रचना में निहित हो जाती हैं  तो वह रचना विशिष्ट व उत्कृष्ट  सृजन के सर्वोच्च शिखर पर कालजयी रचना के रूप में स्थापित हो जाती  है. और इन सभी का संयोजन मुझे आपकी कृति में दिखाई पड़ा जिससे मै अभिभूत हुआ

देखी हैं उसकी आँखें ?
निस्पृह निर्विकार निरभ्र.. .
और, निश्चिंत !
हर तरह के अतिरेक को नकारतीं
इन्हींने तो जताया है समस्त ब्रह्माण्ड को --
हिंसा साध्य नहीं
संवाद और निराकरण का एक माध्यम भी होता है.//

3.
किसी सक्षम का विस्तार बलात् नहीं होता
विस्तार वस्तुतः कढ़ता है
स्वीकृत होते ही सबल हो जाता है
फिर, अनवरत परीक्षित होता रहता है यह सर्वग्राही धैर्य
सदा-सदा-सदा
पुरातन काल से. ..// आदरणीय सौरभ सर  इस अद्भुत और अतुलनीय कृतित्व पर आपको शत- शत नम व वंदन , हृद्यित बधाई स्वीकार करें

सहृदय अनुज शैलेन्द्र मृदुजी, आपसे रचना को मिला अनुमोदन और आपकी खुली वाह-वाही हृदय को छू गयीं. आप जैसे नवयुवकों को इस तरह की रचनाओं पर सकारात्मक प्रतिक्रिया करते देखना आश्वस्त करता है. 

हृदय से धन्यवाद स्वीकार करें.

बार बार पढ़ा, कई बार पढ़ा, साथ में विद्वजनों की टिप्पणियों को भी पढ़ा, वाह पढ़ा, उफ्फ्फ्फफ्फ्फ्फ़ पढ़ा, सीधा पढ़ा, तिर्यक पढ़ा.....
सभी शब्द चित्र एक अलग आधुनिक अंदाज लिए हुए हैं | इस खुबसूरत अभिव्यक्ति पर बधाई आदरणीय सौरभ भाई साहब |

भाई गणेशजी, बहुत-बहुत धन्यवाद, इन शब्द-रूपों को मान देने के लिये और तमाम प्रतिक्रियाओं को संग्रहीत करने के लिये ..

पुनः बहुत-बहुत धन्यवाद

उसने छुआ 
कि, अनुप्राणित हो शिवत्व.. .
जगे अमरत्व का पर्याय अक्सर आसुरी क्यों होने लगता है 
एक बार फिर से छुए जाने के लिये ?,अति सुंदर भाव लिए हुए रचना आ सौरभ जी ,हार्दिक बधाई 

अनुमोदन हेतु सादर धन्यवाद, आद. रेखाजी.

सादर प्रणाम, 

आदरणीय गुरुदेव जी.

सादर प्रणाम आदरणीय प्रदीपजी, आपकी मनोहारी उपस्थिति से यह मंच अभिभूत है. विश्वास है, आपका स्वास्थ्य सही है.

सादर

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम. . . . रोटी
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। रोटी पर अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"आदाब।‌ हार्दिक धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' साहिब। आपकी उपस्थिति और…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं , हार्दिक बधाई।"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया छंद
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रेरणादायी छंद हुआ है। हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"आ. भाई शेख सहजाद जी, सादर अभिवादन।सुंदर और प्रेरणादायक कथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"अहसास (लघुकथा): कन्नू अपनी छोटी बहन कनिका के साथ बालकनी में रखे एक गमले में चल रही गतिविधियों को…"
23 hours ago
pratibha pande replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"सफल आयोजन की हार्दिक बधाई ओबीओ भोपाल की टीम को। "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आदरणीय श्याम जी, हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service