For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

किस्मत भी मुझको चिढाने लगी है दोस्तों ..........

मौत भी अब तो बहाने बनाने लगी है दोस्तों
देखकर उनको ये भी नखरे दिखाने लगी है दोस्तों

हार जाना ही था शायद हिम्मत को मेरी
किस्मत भी मुझको चिढाने लगी है दोस्तों

क्या थी जिन्दगी और क्या हो गई है
रौशनी भी अब डराने लगी है दोस्तों

खो गये मेरे ख्वाब इस शहर में न जाने कहाँ
हकीक़त ही बस अब भाने लगी है दोस्तों

हो गई दोस्ती मेरी गमो से कुछ यूँ
खुशियाँ अब मुझको रुलाने लगी है दोस्तों 

कहो तुम ही अब अंजाम-ए-जिन्दगी क्या हो
ख्वाहिशे तो अब बहलाने लगी है दोस्तों

Views: 591

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sonam Saini on November 6, 2012 at 12:26pm

thank you very much kushwaha sir ji..........

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on November 5, 2012 at 12:53pm

बेहतरीन गजल, बधाई 

Comment by Sonam Saini on November 5, 2012 at 11:41am

Good morning Seema mam............... thanks for comment ........ thanks a lot............

Comment by Sonam Saini on November 5, 2012 at 11:40am

Ji parveen ji ......... I will try my best......... thanks for coming on my post............

Comment by Sonam Saini on November 5, 2012 at 11:39am

सादर नमस्कार राजेश मैम............ जी मैं शुक्रगुजार हूँ आपकी कि आपने अपने कीमती समय में से कुछ समय मुझे दिया
लेकिन आप पहले भी मेरी रचनाओ को पढ़ चुके हो जिसके लिए मैं दिल से आपका शुक्रिया करती हूँ........आपको मेरी इस रचना ने
गमगीन कर दिया इसके लिए माफ़ी चाहती हूँ........ समय और अपनी अनमोल प्रतिक्रिया देने के लिए आपका आभार मैम ......... :)

Comment by Sonam Saini on November 5, 2012 at 11:33am

Thanks a lot Er. Ganesh Jee "Bagi" sir ji.......... encourage krne ke liye bahut bahut shukriya .........

Comment by Sonam Saini on November 5, 2012 at 11:32am

सादर नमस्कार प्राची मैम............ आपकी हर एक बात से सहमति रखती हूँ ! यह सिर्फ एक रचना है, आप तो
जानते हो कि एक रचनाकार कहाँ से कहाँ पहुच जाता है ये वो भी नही जानता......... आपकी गुड wishes के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
आगे भी इसे ही मार्गदर्शन करते रहिएगा......... शुक्रिया

Comment by seema agrawal on November 3, 2012 at 11:48pm

 अतिशय निराशा की स्थिति में उपजने वाले मनोभावों का सटीक अभिव्यक्ति 

Comment by praveen singh "sagar" on November 3, 2012 at 4:32pm

Rachnatmak shailee achhi hai.Sunder prayaas ke liye badhai. sujhaw yahi hai ki wastavik jiwan me hamesha aashawadi hi rahen tabhi lakshya hasil hoga.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 3, 2012 at 10:27am

ग़मगीन कर दिया आपकी प्रस्तुति ने प्रतिक्रिया में जो प्राची जी ने कहा है वही मेरी समझो सोनम जी शायद मैं आपकी कोई रचना पहली बार पढ़ रही हूँ बहुत अच्छा लिखा बहुत बहुत बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service