For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लघु कथा : परिवर्तन

ये लो महारानी जी आज नदारद हो गयीं , इन लोगों के मिजाज का कोई ठिकाना ही नहीं है..सुबह सुबह "गौरम्मा" के ना आने से मन खिन्न हो गया , गौरम्मा हमारी काम वाली 

हमेशा तो कह कर जाती थी , माँ ( दछिन भारत में येही संबोधन आदर में देते हैं ) हम कल नहीं आ पायेगा , मगर आज सुबह के ११ बज रहे हैं कोई खबर ही नहीं . दो तीन दिन से मैं उसे कुछ बुझी बुझी देख रही थी , मगर मेहमानों की व्यस्तता में उससे पूछने का ख्याल ही नहीं आया, मगर गौरम्मा अपना काम समय से अधिक कर के जाती थी.

दोपहर के बाद बिट्टू के स्कूल जाते ही मैंने अपनी दुपहिया उठायी और उसे देखने चल पडी, घर से थोड़ी ही दूर पर उसका घर था, मैंने दरवाजा खटखटाया , तपाक से उसने दरवाजा खोला और मुझे देखते ही मुस्करा दी. sorry माँ आज वो (पति) शबरी मलई गया (शबरी मलई - दछिन भारत का धार्मिक स्थल है, जहां जाने के लिए एक महीने तक नियम से साधू की तरह रहना पड़ता है -फिर उसकी यात्रा पर लोग जाते हैं ) इसीलिए उसका तैयारी में देर हो गया. खैर वो थोड़ी देर में घर आ गयी. और सारे काम फटाफट निपटा कर उसने दो कप कॉफ़ी बनाकर एक कप मुझे देकर खुद कालीन पर पैर पसार कर बैठ गयी,...मुझे भी उसे खुश देखकर खुशी होती थी .और क्यों ना हो करीब एक महीने से उसके चेहरे की चमक बढ़ गयी थी. शायद इसीलिए की पति अयप्पा स्वामी के दर्शन के लिए जा रहा था इसलिए उससे अच्छा व्योहार करता होगा, शराब छूने की मनाही होती है इस अनुष्ठान में...चलो कुछ परिवर्तन तो हुआ गौरम्मा की जिंदगी में.

जाने कितनी बार तो उसे इतनी मार पडी थी की उसकी कराह सुनकर मन रो पड़ता था, मगर मजाल है गौरम्मा ने कभी हार मानी हो, अपनी पांच साल की बेटी के लिए उसे मार खाकर काम करना मंजूर था मगर आराम करना नहीं, शायद ही कोई दिन ऐसा होता होगा जिस दिन उस पर हाथ नहीं उठाया जाता हो. उसकी हालत देखकर एक दिन मुझे कहना पडा , गौरम्मा तुम दूसरी शादी कर लो, अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है, मगर उसका जबाब,,,"याके माँ" बेरे जना के विश्वासे इल्ला " -क्यों माँ ? दूसरों का भी क्या विश्वास है इसतरह नहीं मारेंगे,,,

और एक हफ्ते की यात्रा के बाद उसका पति आज वापस आ रहा था, गौरम्मा बहुत खुश थी. मुझे भी आशा थी अब शायद उसके जीवन में परिवर्तन हो, उसे भी पति प्रेम का सुख मिल सके . दूसरे दिन गौरम्मा नहीं आयी, मैंने भी सोचा कोई बात नहीं शायद पति की सेवा सुशुश्रा में लगी होगी, लेकिन बुरी खबर ने तोड़ कर रख दिया. गौरम्मा अब नहीं है , पति ने आते ही शराब कुछ जादा पी ली और उसने गौरम्मा को इतना मारा की पड़ोसियों की मदद से अस्पताल ले जाते हुए रास्ते में ही दम तोड़ दिया,.........ये परिवर्तन दुखद से भी दुखद,,,,,,मेरे पास शब्द ही नहीं बचे ,,,किसे दोष दूं उस अबला नारी को या उस पाशविक रूप वाले पुरुष को.,

Views: 911

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SUMAN MISHRA on December 15, 2012 at 11:34am

सीमा दी आभार..

Comment by seema agrawal on December 15, 2012 at 12:18am

जबतक  मूल्यों और नियमों को तोते की तरह रटा जाता रहेगा यूं ही होता रहेगा ....कोई भी सीख तभी कामयाब होती है जब उसे आत्मसात किया जाता है ...बधाई सुमन जी 

Comment by SUMAN MISHRA on December 14, 2012 at 10:48pm

tahe dil se abhaar prachi ji 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 14, 2012 at 7:01pm

अंत बहुत दुखद ...

अशिक्षित वर्ग में छोटी उम्र में ही पुरुषों को शराब की लत लग जाना, जाने कितनी मासूम अबलाओं की जान रोज लेता है... एक बहुतायत से व्याप्त सामजिक विद्रूपता को आपने कहानी की विषयवस्तु बनाया और यह कहानी लिखी इस हेतु बधाई.

Comment by SUMAN MISHRA on December 14, 2012 at 5:23pm

दीपक जी जब अपने समाज के रीति रिवाजों की बात आती है तो उनके बारे में ना लिखना अधूरेपन के एहसास जैसा होता है,,,वैसे आपकी बात और सलाह सही है,

Comment by Dipak Mashal on December 14, 2012 at 3:11pm

कृपया लघुकथा में किसी भी विषय के बारे में बड़ा विवरण देने से बचें( जैसा कि मुझे सिखाया गया है उसके अनुसार).

Comment by Dipak Mashal on December 14, 2012 at 3:09pm

दु:खद 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 14, 2012 at 2:28pm

 देश में ख़ास तौर से कामवाली बाई के निट्ठले पति हराम के पैसे से ऐश और नशा करते अपने घर को नरक बना डालते है । इसमें अभी विशेष सुधार देखने को नहीं मिला है । यही स्थिति दर्शाती अच्छी लघु कहानी के लिए बधाई  

Comment by SUMAN MISHRA on December 14, 2012 at 12:50pm

bahut sahee kahaa aapne Shri Ganesh ji,,,,,shukriya,,,


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 14, 2012 at 12:47pm

हम नहीं सुधरेंगे, चाहे मंदिर जायें या मस्जिद , हम तो वही थे और वाही रहेंगे, बन्दर की जात , गुलाटी मारना कैसे भूल जाय , अच्छी लघुकथा , बधाई स्वीकार करें |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपसे मिले अनुमोदन हेतु आभार"
16 hours ago
Chetan Prakash commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"मुस्काए दोस्त हम सुकून आली संस्कार आज फिर दिखा गाली   वाहहह क्या खूब  ग़ज़ल '…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
Wednesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
Wednesday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service