"ओ बी ओ भोजपुरी काव्य प्रतियोगिता" अंक १, दिनांक २४ जनवरी २०१३ दिन गुरूवार से २६ जनवरी २०१३ दिन शनिवार तक चलल, एह प्रतियोगिता में आइल कुल रचना, रचनाकार के नाव के साथे प्रस्तुत बा ...
"प्रतियोगिता से अलगा"
(1)
***
छंद विधा :- घनाक्षरी (भोजपुरी)
छंद विधान :- 4X [16+15]
***
बागी, बलिदानी, त्यागी रहलें भोजपुरिया,
क्रांति के बिगुल बजवलें मंगल पाँड़े ।
चरबी वाला कारतूस मुहें नाहि छुवलें,
सेना में बगावत कईलें मंगल पाँड़े ।
गरदन कटल बाकि मुड़ी नाहि झूकल,
माटी के करजा चुकवलें मंगल पाँड़े ।
बैरकपुर के आग चारु ओरी फईलल,
सुतल देसवा जगवलें मंगल पाँड़े ।।
***
(2)
छंद विधा :- सवैया (भोजपुरी)
छंद विधान :- 4 X [7(211)+22]
***
देस स्वतंत्र भईल तबो अबहीं ल गुलाम सुँ जामत नारी,
हैरत के बलु बात हवे पर नारिहिं गर्भ उजारत नारी,
का हम बात करीं नर के जब नारि क खूब सतावत नारी,
सास जिठान कबो ननदी धर राछछि रूप हुँकारत नारी ।।
छंद विधा :- घनाक्षरी (भोजपुरी)
छंद विधान :- 4X [16+15]
***
धर्म अरु धाम बदे, भूमि जे जनात रहे,
उहे मोर देस डुबे, आजु भ्रष्टाचार में ।
इज्जत ईमान बदे, परानों दियात रहे,
नीति अरु न्याय आजु, बिकेला बज़ार में ।
देसवा से गिद्ध कुल्ही, भलहिं बिला गइलें,
घुस गइल गिद्धता, बुधि बेवहार में ।
आसन प दुसासन, मौन मरलें मुरारी,
कौरवन के कारवां, दिल्ली सरकार में ।।
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बदे = हेतु, मोर = मेरा, परान = प्राण,
बिला = बिलुप्त, मौन मरलें = मौन धारण किये,
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"प्रतियोगिता से अलगा"
(1)
आपन देस, आपन दासा
मन चिहुँकेला
सोचे बेबाती
कि लोग राग कइसे लगइहें..
मन खउँझेला अन्हरे-पराती
कि जोग भाग कइसे जगइहें.. . ॥१॥
देस के आने प जिनगी चलौनीं
सीमा प पवनी, उ गाँवें गँवौनी
पारेला..
हठ पारेला भुइँयाँ रेघारी
तिरंग सान कइसे बढ़इहें.. . ॥२॥
पेरत दासा देखावे तमासा
छनहिं में तोला, त छनहिं में माशा
भटकेला..
मन भटकेला बउड़म-देहाती
महान देस कइसे कहइहें.. . ॥३॥
चाह-उमीद घोंसारी लगावे
हाल बेहाल बवाल मचावे
लउकेला..
सुख लउकेला सहिजन-डाढ़ी
खयाल बाग कइसे सजइहें.. . ॥४॥
आँखे तरेगन जोन्हीं जियाईं
सपना सजाईं त काया गँवाई
कचकेला..
बड़ कचकेला कहँरत काठी
कि आहि लाग कइसे लगइहें.. . ॥५॥
जीयऽत सूगा उँघाइल कँछारी
सिरदल मनवाँ सँजोए बेमारी
दँवकेला..
जब दँवकेला साढ़हिं-साती
उपाइ लोग कइसे सुझइहें.. . ॥६॥
***********
[चिहुँकेला - पीड़ा और कष्ट में बिना शब्द चौंकना ; बेबाती - बिना बात के ; राग - लगाव, प्रेम ; खउँझेला - झुंझलाता है ; अन्हरे-पराती - रात-सवेरे ; जोग - संयोग ; भाग - तकदीर, भाग्य ; देस के आने - देश का सम्मान ; जिनगी चलौनीं - ज़िन्दग़ी गुजारा ; सीमा प पवनी, उ गाँवें गँवौनी - सीमा पर जो पाया गाँव में खर्च कर दिया [सीमा पर मर-भिड़ कर देश के लिए कमाया गया सम्मान गाँव-जवार में किस अधोगति को प्राप्त हो चुका का यथार्थ] ; पारेला रेघारी - रेखायें लाइन खींचता है (भावार्थ, देश की सीमा से है) ; तिरंग सान कइसे बढ़इहें - तिरंगा शान कैसे बढ़ायेगा ; पेरत दासा - पीड़ित करती दशा ; बउड़म-देहाती - मूर्ख प्रतीत होता देहाती ; घोंसारी - भड़भूजे की भट्ठी ; खयाल बाग कइसे सजइहें - खयाली या स्वप्नजीवी होना (उम्मीदों के) बगीचे कैसे सजायेगा ; आँखे तरेगन जोन्हीं जियाईं - आखों में बड़े-चमकीले तारे (तरेगन) और मद्धिम तारे (जोन्हीं) जिलाऊँ ; काया गँवाई - देह को गलाना ; बड़ कचकेला कहँरत काठी - कहँरती हुई काया या देह बहुत दुखती है ; आहि लाग कइसे लगइहें - आह या मर्मांतक उच्छवास अपनत्व या प्रेम कैसे लगायेगा ; जीयऽत सूगा उँघाइल कँछारी - जी रहा तोता (प्राण के लिए प्रचलित बिम्ब) नदी किनारे उनींदा दिख रहा है ; सिरदल मनवाँ सँजोए बेमारी - भीगा-भीगा मन बीमारी संजोता है ; दँवकेला साढ़हिं-साती - साढ़े-साती का (शनीचर ग्रह का) पूरे ज़ोर में रहना ; उपाइ लोग कइसे सुझइहें - इस (सढ़े-साती) से बच पाने का लोग उपाय क्या बता पायेंगे ]
***
(2)
किरीट सवैया [विधान - भगण * 8 // 211X8]
उत्तर पर्वतराज हिमालय दक्खिन सागर पाँव करे तर
मौसम-सूरुज-चाँद-तरेगन रूप-सजावट रात-दिने कर
गावत बा इतिहास जहाँ अझुराइल आज भले लउके, पर
आपन देस क नाँव ह भारत संयत सोच-विचार ह जेकर
एक-प-एक उतान-गहीर महान-कठोर कुबेरहुँ आइल
लोग बिलाइ भले गइलें बरु धर्म-सुकर्म न देस भुलाइल
शास्त्र-पुरान क पाठ सँ मातल मानुस ले लउके उजियाइल
बात अजीब ह देस क आपन प्रेम-उछाह मँ लोग मताइल
**************
[तरेगन - सितारे ; अझुराइल - जटिल ; जेकर - जिसका ; उतान - ऊपर फैला हुआ ; कुबेरहुँ - बुरा समय भी ; बिलाइ भले गइलें - भले मिट गये ; मातल - बहके हुए ; उजियाइल - सँवरे हुए ; लोग मताइल - लोग मस्त हुए]
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(3)
आपन देस के खेला-काथा
कागज प पिनसिन से चिचरी
कवनो अबोध लइका पारत फिरेला
आ ना.. त बड़ मनई.. .
उहाँ का बड़ हईं.
हर समय
हर काल
हर जुग में अनमने
उहाँ का चिचरी पारि-पारि
खेला करेनीं
कट्टा-कुट्टी खेल लेखा
खेल के खेल, लेखा के लेखा
खेलहिं खेल के बड़हन लेखा
बाड़-बगइचा
गाँव-जिला-मुलुक कुल्हि
कागजे प.. चिचरिये से !
ढोर-डंगर अस बउराह मनई
बाड़े-बाड़े हँकाले..
समाज-जवार गाँव के गाँव
बनसु मुलुक
दुका ले ?
बाकिर,
ई आजु ले !
आपन देस नक्से भर ले ना ह.. . सुनावल जाता
मनई-मनई से जतावल जाता
बाकिर, देस.. आ देस के गत
कागजे प
चिचरिये में
खोनावल जाता.. मोनावल जाता
खेल ई बनल रहो
मनई के पेट सोन्हावल जाता
अइसहीं
साठ-पैंसठ बरीस से
एगो देस बढ़ावल जाता.. . !!
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[पिनसिन - पेन्सिल ; चिचरी - रेखाएँ ; पारत फिरेला - खींचता रहता है ; मनई - आदमी ; लेखा - एक अर्थ की तरह, दूसरा अर्थ एकाउण्ट्स ; ढोर-डंगर - पशु-मवेशी ; दुका ले - आखिर क्या पाकर ; खोनावल - खोदना ; मोनावल - खुदे गड्ढे को मूँदना ; सोन्हावल - भूखे छोड़ देना]
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(1)
इ घर अब भगवाने भरोसे हमरा कछू ना बुझाई रे
सबेरे उठ के लरकन सब कार्टून में ओझराइल रे
कार्टूनों सब ऐसे वैसे प्यार करैल सिखलाइ रे
बचवन को तो प्यार सिखावे जवनकन को लड़ाई रे
इ घर अब भगवाने भरोसे हमरा कछू ना बुझाई रे
हर घर के हरेक लोगन के अलग अलग फरमाइस रे
कोई कहे हम कार्टून देखब कोई सिरिअल ला झौराइल रे
अब न्यूज कहाँ से देखब नन्हका किरकिट ला बौराइल रे
इ घर अब भगवाने भरोसे हमरा कछू ना बुझाई रे
हर सिरिअल की वही कहानी ,एक मरद के कई जनानी
एक औरत के कई मरदवा ,भारत के यही दरद बनल बा
एकता को मिली नाम औ पैसा, घर घर की एकता दुबराइल रे
इ घर अब भगवाने भरोसे हमरा कछू ना बुझाई रे
कोई फिल्म नहीं बा ऐसन जेके देखे सकल परिवार
गाना सबके बोल सुनकर कान भइल बा तार तार
हास्य प्रोग्राम के फूहड़ता देख दिमाग बहुत चकराइल रे
इ घर अब भगवाने भरोसे हमरा कछू ना बुझाई रे
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(2)
चुनावी होली गीत
बहलइ चुनावी बयार अहो लाला ,बहलइ चुनावी बयार
किनकर किस्मत जीत लिखल हे औ किनकर किस्मत हार
अहो लाला बहलइ चुनावी बयार
पार्टी के किस्मत जीत लिखल हे औ अपन देशवा के किस्मत हार
भाड़े के बल पर भीड़ जुटल हे औ नेता गरजे गला फाड़
अहो लाला बहलइ चुनावी बयार
किनकर किस्मत जीत लिखल हे औ किनकर किस्मत हार
नेता के किस्मत जीत लिखल हे औ जनता के किस्मत हार
अहो लाला बहलइ चुनावी बयार
नेता के घर में होली मनल हे औ जनता के घर चित्कार
अहो लाला बहलइ चुनावी बयार
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(1)
धनि धनि धनि ए हमार देशवा।
जहवाँ जनमे लें किसुन अउर राम बेटवा, धनि धनि धनि ए हमार देशवा।
जहवाँ लोग पढ़े शिवा, परताप के गथवा, धनि धनि धनि ए हमार देशवा।
जहवाँ मंदिर अउर मस्जिद में झुके मथवा, धनि धनि धनि ए हमार देशवा।
जहवाँ लोग-लइका पढ़े सत, अहिंसा के कथवा, धनि धनि धनि ए हमार देशवा।
धनि धनि धनि ए हमार देशवा।।
जहवाँ बहेली जमुना, गंगा मतवा, धनि धनि धनि ए हमार देशवा।
जहवाँ पीयर सरसों से भरल खेतवा, धनि धनि धनि ए हमार देशवा।
जहवाँ माई की ममता में पले बचवा, धनि धनि धनि ए हमार देशवा।
जहाँ हिनु, मुसलमान होखे मितवा, धनि धनि धनि ए हमार देशवा।
धनि धनि धनि ए हमार देशवा।।
***
(2)
कहवाँ बिला गइल हमार देशवा
आजु लोग किरकेट, टीबी में अझुराइल
गरीब-गुरुबा सब महँगाई में पेराइल
चोर, उचक्का, भस्टाचारी काटे मलवा
कहवाँ बिला गइल हमार देशवा।
भजन, अजान कहाँ केहू गावता
गीता, कुरान अब काहाँ भावता
चारू ओर छा गइल फिलिम गीतवा
कहवाँ बिला गइल हमार देशवा।
देस पर गुमान ना अपनी पर गुमान बा
आजु हमार देस, अपनन से परेसान बा
असांति के माहौल बा छा गइल मितवा
कहवाँ बिला गइल हमार देशवा।
देस की विकास में इ कवन दौर आइल
ए विकास में गरीब-गुरबे खूब पिसाइल
गाँधीजी के सपना ना भइल साकार बबुआ
कहवाँ बिला गइल हमार देशवा।
आजु लोग-लइका माई-बाप के कदरो ना देता
गरभ में ही लोग माई, लक्ष्मी के जान लेता
माई भारती की नैनन से चुवे अँसुवा
कहवाँ बिला गइल हमार देशवा।
***
(3)
चलS सखी तोहके हम भारत घुमाईं.......
(अमेरीका में नोकरी क रहल एगो भारतीय लइकी अपनी अमेरीकी सहेली से कहतिया)
का कहतिया जी...सुनाई नाँ.....
सुनीं......
चलS सखी तोहके हम भारत घुमाईं,
भारत घुमाईं तोहके भारत देखाईं,
अपनी हम देशवा के दरसन कराईं,
चलS सखी तोहके हम भारत घुमाईं। चलS सखी तोहके हम......।
अच्छा ई मवका बा कुंभ नहवाइबि,
कुंभ नहवाइबि संघे काशियो घुमाइबि,
दिल्ली में हम छब्बीस जनवरियो देखाइबि,
चलS सखी तोहके हम भारत घुमाईं। चलS सखी तोहके हम......।
तोहके हम अपनी घर-परिवार से मिलाइबि,
कचरस पियाइबि अउर धोंधा खिआइबि,
धोंधा खियाइबि अउर कंचा खेलाइबि,
चलS सखी तोहके हम भारत घुमाईं। चलS सखी तोहके हम......।
राम अउर किस्न से हम तोहके मिलाइबि,
तोहके मिलाइबि, गंगा-जमुनी संस्कृति देखाइबि,
गीता, रमायन, बाइबिल, कुरान पढ़ाइबि,
चलS सखी तोहके हम भारत घुमाईं। चलS सखी तोहके हम......।
सत, अहिंसा अउर ग्यान के जहां दिउवा जरेला,
जहां दिउवा जरेला संघे लोग सबके आदर करेला,
अतिथि देवो भव जहां घर-घर में गूँजेला,
चलS सखी तोहके हम उ भारत घुमाईं। चलS सखी तोहके हम......।
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आपन देस ( गीत )
सोनवा से सुगहर बाटे इ आपन देस हो
रुपवा अस चम् चम् चमके इ आपन देस हो।
1 मटिया उगीले सोना हथवा लगाई ल
कनक अस बलिया फरके छोड़ा परदेस हो
सोनवा .......
2 खेती किसानी हवे देसवा क सान हो
सहरी बघार छोड़ बदला अब भेस हो
सोनवा .......
3 बेद पुरान एइजा बाँचल रटल जाला
भइलें महान जिन्ही लिह्ले ह लेस हो
सोनवा ........
4 सोलह संसकार रोजे बीनल बोवल जाला
सहरी किरिनिया से जनि डार मेस हो।
सोनवा ..............
5 सागर चरन चूमे मथवा परबत हो
बारी बारी कुलही मौसम के देस हो।
सोनवा .......
6 जोग अ मन्तर के बड़ा गन्तन्तर
जग में मिसाल नाही परब के देस हो।
सोनवा ......
7 तुलसी दल भोग पाई हरखें भगवान हो
हर हर महादेव गूंजत जयदेस हो।
सोनवा .....
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(1)
चला चला साथी अपने देसवा की ओर
चला चला साथी अपने देसवा की ओर
जहँवा पहले सूरजवा उगेला
तारन संग चन्दा टहलेला
चकोर तकेला ओही ओर
चला चला साथी अपने देसवा की ओर
बालापन के संगी साथी रहिले
किस्सा कहानी मिल संग बुझइले
बीते रात कबे हो जाएल भोर
चला चला साथी अपने देसवा की ओर
छूट गईले मोरे नैहरवा
जाई बसल अपने पीहरवा
ना छूटल प्रेमवा की डोर
चला चला साथी अपने देसवा की ओर
***
(2)
नीमन लागे नीमन लागे
जगवा नीमन लागेला
मिले गोरिया प्यार तोहरा
जगवा नीमन लागेला
कारे कारे बलवा तोरे
लहरायेला नगनिया
कमरिया कमरबंद आटे
पैरन माँ पैजनिया
चले जबहीं बयार गोरी
झूमर हीले लागेला
मिले गोरिया प्यार तोहरा
जगवा नीमन लागेला
नीमन लागे नीमन लागे
जगवा नीमन लागेला
अमराई मा पड़ेला झुलवा
गेंदा गुलाब चमेली फुलवा
कोयलिया कूक मारे
नाचे मन मयुरिया
गर्जेला बदरवा गोरी
बिजुरी आँख मारेला
मिले गोरिया प्यार तोहरा
जगवा नीमन लागेला
नीमन लागे नीमन लागे
जगवा नीमन लागेला
धानी चुनरिया पाँव पैजनिया
टिकुली माथे कमर कर्धनिया
सीमा अपनी हा खतरे मा
भारत मईया रही पुकार
करा तू हमनी का विदा
भुजा फडकन लागेला
मिले गोरिया प्यार तोहरा
जगवा नीमन लागेला
नीमन लागे नीमन लागे
जगवा नीमन लागेला
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गाँधीजी के सपना टूटत, जाता अन्हार में देसवा
कबो रहे जे सोन चिरइया,
उहाँ न बा अब सोना चाँदी !
बहत रहे जहँ नदी दूध के,
उहाँ भूखि से मरे अबादी !
चोर पहुँचि गइलन सन सत्ता, धरि नेता जईसन भेषवा !
गाँधीजी के सपना टूटत, जाता अन्हार में देसवा !
ढाई सदी रहे गोरन के,
फेर जाके आईल खादी !
लाख पूत आ सेनुर कीमत
बड़ महंग बा ई आजादी !
बाकिर कीमत आजादी के, नहीं समझे देस नरेसवा !
गाँधीजी के सपना टूटत, जाता अन्हार में देसवा !
भ्रष्टतंत्र के दीमक लागल !
खोखल हो गईल इमान सब !
पईसा की रँगन में रँगि के,
बा बदल गईल इंसान सब !
प्रेम, त्याग, सुख कमे लऊके, बस लऊके कलह कलेशवा !
गाँधीजी के सपना टूटत, जाता अन्हार में देसवा !
अनगिनत समस्या बादो भी,
बा झिलमिल आस के दीयना !
युवा खून, ई देश बचाई
बा ई बिस्वास के दीयना !
युवा बनी जनता के सेवक, न नेता जईसन बलेशवा !
गाँधीजी के सपना पूजी, उबरी अन्हार से देसवा !
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(प्रतियोगिता से अलगा)
(1)
देसवा के आन पे लुटाई देहले जान हो ,
भोजपुरिया ललन जेकर कुँवर सिंह नाम हो .
अस्सी बरिसवा में जागल जोसवा .
देहलन उड़ाई अंगरेजवन के होसवा .
गंगा माई के देइ देहलन काट भुजा दान हो .
भोजपुरिया ललन जेकर कुँवर सिंह नाम हो .
जिला भोजपुर जगदीशपुर धमवा .
करे इतिहास जेकर काम के बखनवा .
कुँवर सिंह पे देस के बा आजो अभिमान हो .
भोजपुरिया ललन जेकर कुँवर सिंह नाम हो .
धन - धन देस आपन धन -धन बिहार हो .
कुँवर सिंह जइसन मिले जोस - संस्कार हो .
देस आपन दीन - धरम देसवे परान हो .
भोजपुरिया ललन जेकर कुँवर सिंह नाम हो
***
(2)
देसवा सोन के चिरइयाँ एकर मान रखिहऽ .
कवनो आवे ना बहेलिया धियान रखिहऽ .
पंजरा ना सटे दुसमन दुर तक खदेड़ीहऽ .
हाथ जे उठावे ओकर पँखुरा कबरीहऽ .
देस बदे मुट्ठी में परान रखिहऽ .
कवनो आवे ना बहेलिया धियान रखिहऽ .
आँख जे तरेरे ओकर ढेंढ़र नीकलिहऽ .
करे जे गद्दारी देस से चिउंटी जस मसलिहऽ .
मन में जय जवान अउर किसान रखिहऽ .
कवनो आवे ना बहेलिया धियान रखिहऽ .
देस आपन आबरू ह देस आपन सान ह .
देस गुरुग्रंथ, गीता , बाइबिल , कुरान ह .
संख के अवाज में अजान रखिहऽ .
कवनो आवे ना बहेलिया धियान रखिहऽ
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(1)
(एगो विरहीन के भाव बा)
सुन सुन ए सजनवाँ तनीको लागे नही मनवाँ
छोड गईल हमके ईहवाँ हमहुँ चलम बाड जहवाँ
बिखरल बा केश भईल पगली के भेष हो
आजा घरे परदेशी लौट के आपन देश हो
खेतवा मे सरसोँ फुलाईल पियर पियर
आईल गईल देखते देखते हैपी न्यु ईयर
ना चाही रूपीया गहना ना चाही साडी बिदेशी
आजा घरे परदेशी लौट के आपन देश हो
बसवरियाँ के पिछवरियाँ से निहार हम रहियाँ
कह के गईल जल्दी आईम अब ले अईल ना सँईया
नैना बिलख के रोवे दुखवाँ बढल जाता बेसी हो
आजा घरे परदेशी लौट के आपन देश हो
हमरो पलक नही गीरे जब ले साँझ ना हो जाला
देख चेहरा हमार सब कहे कुछ चाहा बा बुझाला
आई के देख हमके भईल कईसन दशा हो
आजा घरे परदेशी लौट के आपन देश हो
***
(2)
ई कईसन देश के हालत हो गईल
भ्रष्टाचार के चारो ओर हुकुमत हो गईल
सोचले ना होईहे जनता कि आई अईसन दिन हो
कि हर केहु के अधिकार जाई छिन हो
सरकार दाम बढा के कहे बानी हम लाचार
केहु के हक नईखे एकरा पे करे के बिचार
सब केहु आपन बैँक बैलेन्स बढावे मे लागल बा
गाँव मे किसान अपना खेत मे रात भर जागल बा
अब त हमके लागत बा कि नया कवनो उपाय कईले बिया सरकार
गरीबो को हटा दो गरीबी अपने आप हट जायेगी इसके आगे सब उपाय है बेकार
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गीत
जबसे बाबू अपना देशवा के जुगाड़ छा गइल
तबसे अमरीका के अँखिया में अन्हार छा गइल...
डॉक्टर - इंजीनियर इहां से पहुँचतारे कुल
दुनिया भर में भारतीय नाव करतारे कुल,
जबसे अच्छा अउर सस्ता के बहार आ गइल
तबसे बड़का-बड़का देश के बोखार आ गइल...
जनता क संख्या बरदान साबित होत बा
अपना देश एक बड़ बजार साबित होत बा,
जबसे हमनी के ठीक से ब्यवपार आ गइल
तबसे बहुते अपना छवी में सुधार आ गइल....
पहिले अमरीका दादागीरी देखावल करे
जबे देखा तबे आपन चाबुक चलावल करे,
जबसे पाक के समझ में कुव्यवहार आ गइल
तबसे ओकरा अपना भारत प प्यार आ गइल....
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रहट रहा खेत में
और कोल्हू सिवान मे
रात भर रखावे खेत
बैठी के मचान में
पेट में न अन्न जुरै
देहि पे न नरखा
प्रेम औ पिरिति रही
रीति रही, नीति रही
तब जीऊ अहान में
का इहै ऊ गाँव या
का इहै ऊ देस या
गाँव गाँव बिजुरी के
अञ्जोर चौधियात बा
मकुनिऔ का को कोंचा ना
जुहात रहा जेकेर ,
तीन जूनि दाल रोटी
साग और भात बा ,
हर नाए हेंगा नाए
फर नाए बर्द नाए
थ्रेसर और ट्रेक्टर बा
खेत खलिहान बा ,
ऐका अंजोर कही या की अँधियार कही ?
भूली गएँ रीती निति
प्रेम पिरीती निति
केऊ किहुसे बोले ना ,
क़ेऊ दुआरे डोले ,
साझें से कुलि जवाँर
देखत बिग बॉस बा ,
का इहै ऊ गाँव या
का इहै ऊ देस या ?
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जेकर सौर्य अउरी सक्ती सब्दन में ना समाई ।
कुछ बात बाटे अइसन आपन देस के ए भाई ।।
सिंगार जेकर जीवन साहस हवे जवानी ,
इतिहास में लिखल बा हर बात के कहानी ,
एकर गोड़ धोवे सिन्धू पहरा देबे हिमालय ,
जहां हर आदमी पुजारी हर घर बनल देवालय ,
हर खेत,नदी ,नाहर एह धरा के सुघराई ।
कुछ बात बाटे अइसन आपन देस के ए भाई ।।
आंगन में झांक देखs हर घर में खेले सीता
जब गोड़ डगमगाला उपदेस देले गीता ,
श्रीराम जइसन राजा हनुमान जइसन भक्ती ,
इहां कर्ण जइसन दानी बा भीम जइसन सक्ती ,
रचे प्रेम परिभासा राधा संगे कन्हाई ।
कुछ बात बाटे अइसन आपन देस के ए भाई ।।
आपन गोद में खेलावे आपन देस के इ माटी ,
एह माई से बढ़ी के जग में ना केहू आटी ,
जब आंच आवे इनपर त डट के होजा तीना (खड़ा)
ल लोहा जम के एतना की दुस्मन छोड़े पसीना ,
ह देस आपन भारत हइ भारती जी माई ,
कुछ बात बाटे अइसन आपन देस के ए भाई ।
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भोजपुरी दोहे:
रउआ आपन देस में, हँसल छाँव सँग धूप।
किस्सा आपन देस का, इत खाई उत कूप।।
रखि दिहली झकझोर के, नेता भाषण बाँच।
चमचे बदे बधाई बा, 'सलिल' न धेल साँच।।
चिउड़ा-लिट्टी ना रुचे, बिरयानी की चाह।
चली बहुरिया मेम* बन, घर फूंकन की राह।।
रोटी की खातिर 'सलिल', जिनगी भयल रखैल।
कुर्सी के खातिर भइल, हाय! सियासत गैल।।
आजु-काल्हि के रीत बा, कर औसर से प्यार।
कौनौ आपन देस में, नहीं किसी का यार।।
खाली चउका देखि के, दिहले मूषक भागि।
चौंकि परा चूल्हा निरख, आपन मुँह में आगि।।
रउआ रख संसार में, सबकी खातिर प्रेम।
हर पियास हर किसी की, हर से चाहल छेम।।
(*आयोजन के बाद एडिट कईल गईल बा )
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आदरणीय आचार्य जी, राउर सुझाव सर माथा पर , इंटरैक्टिव आयोजन के बाद सभे रचना के एक जगह इकट्ठा करके एही खातिर पोस्ट कईल जाला कि आयोजन ख़तम भईला के बादो साहित्य प्रेमी लोग आराम से सब रचना एके जगहा पढ़ सके अउर जदि चाहे त आपन बहुमूल्य विचारो दे सके।
dhanyavad.
एह मेहनत प हम फिरि-फिरि बेर-बेर धन्यवाद कहब, गनेस भाई. सउँसे रचना के एकजुरिये आ एकवटे करे प हिरदय से धन्यवाद. भोजपुरी रचना प्रतियोगिता के अंक - 1 के सफल संचालन प सउँसे टीम के धन्यवाद.
ई मेहनती कार ला बहुते धन्यवाद, गणेश भईया ! भोजपुरी काव्य प्रतियोगिता-१ सफल संचालित भईल एह ला बधाई आ पुनः धन्यवाद !
भोजपुरी काव्य प्रतियोगिता के सफल आयोजन के लिए आयोजक समूह, संचालक महोदय व ओबीओ प्रबंधन को हार्दिक बधाई
आदरणीय बाग़ी जी,
सादर अभिवादन
देख प्रकाशित २ रचनाएँ
दिल अपना हुआ शेर
यहाँ मिली सफलता
हर जगह होता था ढेर
बधाई.
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