परम आत्मीय स्वजन,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 32 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का तरही मिसरा जनाब ज़िगर मुरादाबादी की गज़ल से लिया गया है |
"अब यहाँ आराम ही आराम है "
2122 2122 212
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
अवधि :- 26 फरवरी दिन मंगलवार से दिनांक 28 फरवरी दिन गुरूवार
अति आवश्यक सूचना :-
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य, प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन
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आपने सही कहा है .. भाई संदीपजी..
यहाँ का मैं सामान्य बोलचाल वाला ’मैं’ नहीं है. यह अहं का परिचायक मैं है जो अन्तःकरण की अस्मिता का निरंकुश प्राकट्य है.. और जिस पर विजय हेतु समस्त उपनिषद मार्ग बताते हैं ..प्रस्थानत्रयी का विशद ज्ञान इसी मैं रूपी विकार को दूर करने का विधान कहता है.
तभी हमने असंप्रज्ञात समाधि का उद्धरण दिया है. आपके मतले में हम व्यक्ति या प्रबुद्ध मनस का परिचायक है ..तभी सटीक अर्थ संभव हो रहा है.
विश्वास है .. अब आप उस तथ्य को स्पष्ट रूप से समझ पाये जिसके आलोक में मैंने उपरोक्त प्रतिक्रिया दी है.
अन्य शेर भी उस ऊँचाई के हों यही मेरा निवेदन है और पुनः कहता हूँ कि पकड़ वो हो जैसा यह् मतला है या पीछली ग़ज़ल का मक्ता हुआ था. आपमे वह संभावना है.
शुभ -शुभ
जी आदरणीय गुरुदेव मैं अपनी ओर से पूरा प्रयास करूँगा ................स्नेह और आशीष बनाये रखिये सादर प्रणाम सर जी
शुभ-शुभ .. .
खुद ब खुद सत्ता थमा दी चोर को
मुफलिसी उसका बड़ा इनआम है
जय हो
व्यवस्था के खिलाफ इस बुलंद तेवर की जितनी तारीफ़ की जाये कम है
अच्छी ग़ज़ल हुई है
आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय वीनस सर जी ...........इस जर्रानवाजी के लिए स्नेह यूँ ही बनाये रखिये और मार्गदर्शन करते रहिये जय हो
उम्र भर “मैं” को रखा गुमनाम है
कर लिया हमने कठिन ये काम है
बहुत खूब...
आदरणीय संजीव सर जी सादर प्रणाम
उत्साहवर्धन हेतु आपका सादर आभार सर जी स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
मतला बहुत बढ़िया बना है संदीप भाई !उसके अलावा-
बढ़ रहा आतंक शासक सो रहे
खामखा इक कौम क्यूँ बदनाम है...... पते की बात कह दी ! गज़ल को इसी तरह ज़मीन से जुड़े रहना चाहिए ! जय हो !
आदरणीय अरुण भाई जी सादर
ग़ज़ल को मान देने हेतु आपका सादर आभार
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
उम्र भर “मैं” को रखा गुमनाम है
कर लिया हमने कठिन ये काम है......वाह ! बहुत सुन्दर कथ्य
खूबसूरत ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई
आदरणीया डॉ प्राची जी उत्साहवर्धन हेतु आपका बहुत बहुत आभारी हूँ स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
उम्र भर “मैं” को रखा गुमनाम है
कर लिया हमने कठिन ये काम है .....बहुत कठिन काम है इस मैं को साधना...बहुत खूब
बढ़ रहा आतंक शासक सो रहे
खामखा इक कौम क्यूँ बदनाम है ....सही कहा अब तो भगवा जैसे सात्विक रंग से कुछ लोगों द्वारा आतंक का नाम जोड़ देने की कई कोशिश की जारही है...सही कहा..... करे कोई भरे कोई..
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