For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रेम करें खुद से ही नही इस प्रकृति से भी

भक्ति में शक्ति है1 ईश्वर की भक्ति जीवन का अंतिम लक्ष्य है1  योग साधना है1योग हो या भक्ति दोनों ईश्वर तक पहुँचने का माध्यम हैं1योग हमारे शरीर, मन –मस्तिष्क को स्वस्थ रखता है और इस साधना के बगैर भक्ति संभव नही1 हम बहुत सौभाग्यशाली हैं कि हमें मनुष्य जीवन मिला1 हम जन्म से लेकर मृत्यु तक सांसारिक बंधनों में लिप्त रहतें हैं1 बल्कि हमारा उदेश्य तो सांसारिकता को छोड़कर ईश्वरीय अराधनाओं में होना चाहिए वही तो सच्चा ज्ञान है1जब तक हम शिक्षित नही होंगे पहचानेगें कैसे कि सच क्या है? हमें इस जीवन का सच्चा अर्थ खोजना है उस पर चिंतन करना है मनन करना है1 ये शरीर तो नश्वर है1 हमें अपनी सोच सकारात्मक रखनी होगी1 तभी तो हम बाधाओं से लोहा ले सकेंगे1 युवावस्था मनुष्यका प्रगति काल है निरंतर प्रगति करना जबकि बुढ़ापा समाप्ति काल1 इस बुढ़ापे को निश्चित बनाने के लिए हमें विचार करना होगा1 आत्मा जब तक शरीर में निवास करती है तब तक हमें अपने कर्मों के द्वारा मनुष्य होने का प्रमाण देना होगा1 निश्चय ही हमने भौतिकता की दौड़ में तरक्कि पा ली है पर हम वास्तव में कितने पिछड़ते जा रहे हैं पर जो परम सुख है आत्मिक सुख उसकी और हमारा ध्यान  ही नही जाता1 दिन और रात की भाँति ही हमारा सूर्य उदय हुआ है तो अस्त भी होगा1 जन्म लिया तो मरण भी होगा1 क्यों न हम अपने इस जीवन को सार्थकता दें1 हम इस बात को समझें की युवावस्था की बुरी आदतें हमारे बुढ़ापे को बर्बाद कर देंगी1 हमें तो कुछ ऐसा करना चाहिए कि अपने लिए ही नही अपनी आने वाली पीढ़ी को विरासत में देकर जाएँ1 वसुधैव कुटुम्बकम की भावना के साथ जिए1 समाज के उत्थान में योगदान दें1 वर्तमान की अच्छाइयाँ ही भविष्य को सुरक्षित रख पाएँगी1 प्रेम करें खुद से ही नही इस प्रकृति से भी1  प्रेम की परिभाषा को समझें1 परमेश्वर ने हमें प्रकृति की देखभाल का कार्य सौंपा है हम अपने कर्मों से इसे नुकसान ना पहुँचाएँ1 वरना परम पिता परमात्मा ने प्रकृति का जो सुंदर उपहार दिया है कहीं वही उपहार हमसे रूष्ट ना हो जाए1 प्रकृति भी ईश्वर के विभिन्न रूपों में से एक है1 इससिए  हमारा कर्तव्य  बनता है कि हम इस अनमोल उपहार की परवाह करें1ये परम सत्य है कि हम आए हैं तो हमें जाना भी होगा पर जाने से पहले ऐसा कुछ कर जाना होगा कि मरने के बाद भी हम महकते रहें1 प्रेरित करें खुद को भी और दूसरों को भी1 बने हरियाली के दूत1 राधा और कृष्ण से निश्चल प्रेम की तरह प्रेमी बनें प्रकृति के, उसकी भक्ति करें1 उसकी साधना करें1जरूर लगाएँ एक नन्हा पौधा, उसे सींचे, पालें-पोषें अपने बच्चों की तरह पालें, ताकि बड़ा होकर वे हमारे सच्चे प्रेमी होने का प्रमाण दें1  

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 465

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by aman kumar on June 10, 2013 at 9:21am

विकाश के नाम पर पलायन और प्रक्रति विनाश ही तो हुआ है|

फिर प्रक्रति तो जीवन का अभिबज्ये अंग है |
विषय का चयन के लिए विशेष बधाई !

Comment by yatindra pandey on June 10, 2013 at 12:09am

HAILO MAM

SUNDAR KRITI

AABHAR SWEKARE

YATINDRA

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 8, 2013 at 10:13am

बढ़ते शहरो में खोटी हरियाली के देखते हुए एक पौधा लगाने सींचने और बच्चों की तरह पालने पोषने के सुन्दर सन्देश के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारे, आज इसकी महती आवश्यकता है | इसका सब अनुसरण करे तो बात बने 

Comment by शुभांगना सिद्धि on June 8, 2013 at 2:31am

सुन्दर

Comment by Vinita Shukla on June 7, 2013 at 7:00pm

सुन्दर और अनुकरणीय पोस्ट. बधाई प्रज्ञा जी.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service