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सलवटें करवटें औ याद सहर से पहले

मिली हैं करवटें औ याद सहर से पहले
पिए हैं इश्क़ के प्याले जो जहर से पहले  

जो दिल के खंडहर में अब बहें खारे झरने  
यहाँ पे इश्क की बस्ती थी कहर से पहले

ग़ज़ब हैं लोग खुश हैं देख यहाँ का पानी
नदी बहती थी जहाँ एक नहर से पहले

कहाँ उलझा हुआ है गाफ़ अलिफ में अब तक
रदीफ़ो काफिया संभाल बहर से पहले

नहीं आसां है उजालों का सफ़र भी इतना  
जले है दीप सारी रात सहर से पहले

संदीप पटेल "दीप"

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by वीनस केसरी on July 27, 2013 at 1:06am

कहाँ उलझा हुआ है गाफ़ अलिफ में अब तक
रदीफ़ो काफिया संभाल बहर से पहले

हा हा हा ... क्या कहने :))))))))))))


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 17, 2013 at 6:32pm

नहीं आसां है उजालों का सफ़र भी इतना  
जले है दीप सारी रात सहर से पहले ----वाह शानदार मकता ,बढ़िया ग़ज़ल दाद कबूल करें 

Comment by राजेश 'मृदु' on July 17, 2013 at 5:32pm

जय हो, आदरणीय सुंदर गजल पेश की है, सादर

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 17, 2013 at 2:19pm

वाह प्रिय मित्रवर वाह क्या कहने बहुत ही सुन्दर लाजवाब लाजवाब लाजवाब

ग़ज़ब हैं लोग खुश हैं देख यहाँ का पानी
नदी बहती थी जहाँ एक नहर से पहले .... वाह इस शेर की गहराई ने लूट लिया भाई जी लूट लिया.

हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on July 17, 2013 at 12:08pm

aadarneey Shijju S. ji saadar prnaam

aapka bahut bahut dhanyvaad

ji haan mujhe bhi lag rhaa hai ab ki eb hai

bahut bahut aabhar aapka sneh yun hi banaye rakhiye


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 16, 2013 at 5:45pm

//मिली हैं करवटें औ याद सहर से पहले
पिए हैं इश्क़ के प्याले जो जहर से पहले//

बेहतरीन शेर संदीप जी

आपके ग़ज़लों की कमी खल रही थी संदीप जी, बेहतरीन ग़ज़ल बन पढ़ी है

//जो दिल के खंडहर में अब बहें खारे झरने
यहाँ पे इश्क की बस्ती थी कहर से पहले//

यहाँ कहीं तकाबुले रदीफ़ तो नही हो रहा है.

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