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OBO लाइव तरही मुशायरा-6(closed now)

परम स्नेही स्वजन,
आज दसवीं तारीख है और वक्त आ गया है कि दिसम्बर के तरही मिसरे की घोषणा कर
दी जाय, तो जैसा कि पहले ही संपादक महोदय ने महाइवेंट के दौरान एक मिसरे को
तरही के लिए चुना था तो उन्ही की आज्ञा को शिरोधार्य करते हुए पेश है आपके
समक्ष तरही मिसरा|

खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत
१२२ १२२ १२२ १२२
फऊलुन फऊलुन फऊलुन फऊलुन
बहर: बहरे मुतकारिब मुसम्मन सालिम
हिंदी में इसे भुजंगप्रयात छन्द के बाण छन्द  के नाम से जाना जाता है जिसका विन्यास है यगण(यमाता) ४ बार|
अब रही बात रद्दीफ़ और काफिये की तो इसे फ़नकारो की मर्ज़ी पर छोड़ा जा रहा
है चाहे तो गैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल कह दें या रद्दीफ़ के साथ, बस इतना ख़याल
रखें की ये मिसरा पूरी ग़ज़ल में मिसरा ए ऊला या मिसरा ए सानी के रूप में
कहीं ज़रूर आये|

इस बार नियमों में कुछ बदलाव भी किये गए हैं अतः निम्न बिन्दुओं को ध्यान से पढ़ लें|

१) मुशायरे के समय को घटाकर ३ दिन कर दिया गया है अर्थात इस बार मुशायरा दिनांक १५ से लेकर १७ दिसम्बर तक चलेगा|
२) सभी फनकारों से निवेदन है की एक दिन में केवल एक ग़ज़ल ही पोस्ट करें अर्थात तीन दिन में अधिकतम ३ गज़लें|

आशा है आपका सहयोग मिलेगा और यह आयोजन भी सफलता को प्राप्त करेगा|
यह बताने की आवश्यकता नहीं है की फिलहाल कमेन्ट बॉक्स बंद रहेगा और १४-१५ की मध्यरात्रि को खुलेगा|
तो चलिए अब विदा लेते हैं और मिलते है १४-१५ की मध्यरात्रि को|

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Replies to This Discussion

are wah.. dharmendra ji.. aapka bahut bahut aabhaar..

वाह धर्मेन्द्र सर |

दिखने में कमजोर वो शख्स, ज़माने से लड़ गया

वाह रे तेरी ये कलाकारी मोहब्बत ...

वाह अनिता जी वाह ...

क्या सुंदर बात कही आपने..

लिखने के लिए धन्यवाद

mujhe pata hai bhaskar ji.. mere man ke bhao to acchhe ho sakte hain.. lekin sabdon ka sanyojan thik nahi hai.. sadar dhanyawad aapka...

लगे तो न छूटेगी ये ताउमर फिर

है ऐसी हँसी इक बिमारी मुहब्बत

 

कभी पल में सदियाँ कभी सदियों में पल

हैं जाते चढ़े जब खुमारी मुहब्बत

 

शानदार, सुंदर ख्याल..

अनीता जी के शब्दों को क्या गजल में बांधा है आपने

इश्क जब जूनून बन जाता है, महबूब ही खुदा हो जाता है

कायनात पर है ये भारी मुहब्बत...

 

दिखने में कमजोर वो शख्स, ज़माने से लड़ गया

वाह रे तेरी ये कलाकारी मोहब्बत ...

गजल से इतर सुंदर ख्याल

इक बार लो लग जाए, ताउम्र छूटती नहीं,

ऐसी है ये बीमारी मोहब्बत

vah kis tarah se muhabat ko betaya hai bedhaye ho

 

अनीता जी!
स्वागत. आपकी रचना का कथ्य अच्छा है. पंक्तियों को पढ़ने में एक सामान समय लगे इसे ध्यान में रखते हुए शब्द घटा-बढ़ाकर बात कहें तो अधिक आनंद आएगा. आपको अपना मानते हुए आपकी रचना में कुछ परिवर्तन करता हूँ. शायद आपको रुचिकर लगे... न रुचे तो भूल जाइएगा. कम से कम बदलाव के कारण पूरी तरह दोषहीन नहीं, किन्तु जितना आप कर सकेंगी उतना बदल रहा हूँ. आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा है.

हर शै से हमको है, प्यारी मुहब्बत      
खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत.. 

लग जाए तो छूटती ही नहीं है.
सदा साथ देती बीमारी मुहब्बत.. 

पल हो सदी सा, सदी होती पल सी.

ऐसी ही है ये खुमारी मुहब्बत..

हुआ इश्क महबूब लगता खुदा है,

कायनात पर है ये भारी मुहब्बत...

अच्छी रचना अनीता जी, आप बस पोस्ट पढ़ती रहे और प्रयास करती रहे , आपके ख्यालात अच्छे है , आप ग़ज़ल कह सकती है प्रतिभा है आप मे, बधाई |

अनीत जी खूबसूरत भाव समेटे हैं आपने। आपको गुणीजनों का सनिध्य प्राप्त हो ही गया है बस सक्रिय रहें और लिखते रहिये।

वाह ..शेष धर जी ..बचपन की हसीं यादों को बहुत खूबसूरती से शब्दों में ढाला है आपने .. बधाई ...

शेष धर भाई ... ये ग़ज़ल का अंदाज़ भी बहुत कमाल का है आपका ... सामाजिक संधर्भ मेंज लिखे शेर बहुत कमाल के हैं ..

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