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लगी प्यास मुझको,बुझा दे ख़ुदाया
करो आज नाचीज़ पर तुम इनायत
बुझा दे के साथ करो और तुम का प्रयोग ठीक नहीं है| इस ऐब को ऐब-ए-शुतुर्गरवा कहते हैं है|शुतुर=ऊँट और गरवा=बिल्ली अर्थात दो ऐसी चीजें जिनका कोई तुक ही नहीं है|
कई कारवाँ गुम हुए है यहाँ से
जगत ये नहीं है किसीकी अमानत ...
बहुत खूब अरविंद जी ... दार्शनिक अंदाज़ है है आपका ...
बहुत धन्यवाद दिगंबर जी...
अरविन्द जी !
बहुत सलीके से अपने अपनी बात कही है. हर शे'र मन को छूता हुआ. बधाई.
बहुत धन्यवाद सलील जी...
वाह अरविन्द सर वाह , बहुत सुंदर ,
लगी प्यास मुझको,बुझा दे ख़ुदाया
करो आज नाचीज़ पर तुम इनायत,
बेहतरीन , खुदा से बाते करता शेयर , बधाई
वन्दे मातरम नवीन जी,
ये जो शेर लिखे गये हैं उनमे तजुरबे का प्रभाव साफ़ दिखाई दे रहा है, रामायण और श्रीमदभागवत के प्रसंगों पर शेर पड़ना पुर सुकून रहा है
ब्रजभाषा में लिखा शेर मुझे तो आसानी से समझ आ रहा है, शायद सभी को आसानी से समझ आयेगा
तजुर्बों की है आलमारी मुहब्बत|
खयालों पे करती सवारी मुहब्बत|१|
//तजुर्बे की अलमारी और ख्यालों कि सवारी - बेहतरीन जुगलबंदी नवीन भाई जी !//
विनिर्दिष्ट सामाजिक स्वतंत्रता का एक असर ये भी:-
शहर छोड़, कस्बों से भी अब नदारद|
वो बारी उमर की कुँवारी मुहब्बत|२|
//बहुत सही फ़रमाया भाई जी !//
गिरह:-
खुदा की तरह सिर्फ़ महसूस होती|
खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत|३|
//बहुत खूब !//
नसीब अपना अपना:-
कहीं मस्त हो के बहारों में झूमे|
कहीं पे करे पल्लेदारी* मुहब्बत|४|
//पल्लेदारी शब्द मैंने ग़ज़ल में शायद पहले कभी नहीं देखा ! दो अलग अलग परिस्थितियों का बहुत सटीक चित्रण किया है आपने - वाह !//
शब्द बदलने से सरोकार नहीं बदलते:-
उन्हें प्रेम से हो जो परहेज, तो हो|
हमें तो है प्राणों से प्यारी मुहब्बत|५|
//इस सादगी पर कुर्बान भाई जान !//
अदब में मुहब्बत का मुकाम:-
अदब ने इसे बाअदब है कुबूला|
ग़ज़ब यार सब से है न्यारी मुहब्बत|६|
//बहुत सुन्दर !//
रामायण और श्रीमदभागवत माहात्म्य कथा के हवाले से एक शे'र:-
कहीं ये श्रवण@ के हृदय में बिराजे|
लजाता कहीं धुन्धकारी# मुहब्बत|७|
//आहा हा हा हा हा ! मोहब्बत के दो अलग अलग रूपों को बड़ी सुन्दरता से उकेरा है भाई !//
श्री मद्भगवद्गीता के हवाले से:-
अजब वाक़या, प्रेम-मूरत किसन ने|
कुरुक्षेत्र जा कर, नकारी मुहब्बत|८|
//क्या बात है , क्या बात है, क्या बात है ! //
सूर-सागर के हवाले से आख़िरी शे'र ब्रजभाषा में:-
कन्हैया कों ऊधौ संदेसौ यै दीजो|
हमें तौ परी भौत भारी मुहब्बत|९|
//हासिल-ए-ग़ज़ल शेअर !! आंचलिकता की महक से सराबोर - दिल से मुबारकबाद नवीन भाई !//
आपकी रचना पर टिप्पणी देना खुद मेरे लिए एक बहुत बड़ा लर्निंग प्रोसेस होता है नवीन भाई जी !
शहर छोड़, कस्बों से भी अब नदारद
वो बारी उमर की कुँवारी मुहब्बत ....
नवीन जी .. बहुत अच्छे से पहचाना है आपने ज़माने की रफ़्तार को ...
कहीं मस्त हो के बहारों में झूमे|
कहीं पे करे पल्लेदारी* मुहब्बत|४|
Gr8! Kya kahne!
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