For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पुस्तक समीक्षा : उन्मेष, कवियित्री:मानोशी, समीक्षक:राणा प्रताप सिंह

इन्टरनेट जगत में सक्रिय कोई पाठक शायद ही टोरंटो, कनाडा निवासी मानोशी के नाम से अपरिचित हो| आपका काव्य संग्रह 'उन्मेष' हाल ही में अंजुमन प्रकाशन से प्रकाशित होकर आया है| संकलन में गीत, ग़ज़ल , मुक्तछंद, हाइकू, क्षणिकाएं तथा दोहा विधा में रचनाएँ है| गीत और ग़ज़ल मानोशी की प्रमुख विधाएं हैं, यह संकलन में उन्हें प्राप्त स्थान से ही परिलक्षित होता है|

गीतों में प्रकृति का चित्रण अत्यंत प्रभावशाली है जो उन्हें  प्रसिद्ध छायावादी कवियों की श्रेणी में ले जाकर सीधे खड़ा करता है| प्रकृति के अनछुए बिम्बों से गीतों में एक अलग ही ताज़गी का एहसास होता है| संध्या, धूप , भोर, फागुन, बसंत, गर्मी, शीत के गीतों को पढ़ते समय पाठक एक अलग ही दुनिया में चला जाता है, एक बानगी प्रस्तुत है 

बूढी सर्दी हवा सुखाती
कलफ लगाकर कड़क बनाती,
छटपट उसमे फंसी दुपहरी
समय काटने ठूंठ उगाती,
चमक रहा है सूर्य प्राण पण 
देखो हारा सा वह चेहरा| 
.
पुनः शीत का आँचल फहरा|
ठेठ दुपहरी में ज्यों काली 
स्याही छितर गई ऊपर से 
श्वेत रुई के फाहों जैसे 
धब्बे बरस पड़े ओलों के 
.
बादल को स्याही के जैसा छितरा होना लिखने के लिए प्रकृति का सूक्ष्म निरीक्षण और उन बिम्बों को गढ़ने की कला का होना आवश्यक है जिसमे मानोशी की सिद्धहस्तता है|
.
आगे के गीतों में श्रृंगार की प्रधानता है| उनके गीत अपने प्रियतम से संवाद स्थापित करते नज़र आते हैं,ये गीत सर्वस्व समर्पण की भावना , पुरानी सुधियों का तारतम्य, जीवन की तमाम विसंगतियों के मध्य प्रेम की लौ जलाए रखने की बाध्यता, मन के अन्दर की ऊहापोह आदि विषयों को केंद्र में रखकर लिखे गए हैं| मानोशी का श्रृंगार न संयोग का श्रृंगार है और न वियोग का, यह तो उनकी तरफ से एक पुकार है, एक निवेदन है, एक आशा है| कहीं कहीं पर गीतों में सूफीवाद की झलक भी दृष्टव्य है|
.
चलो आज हम 
सुनहरे सपनों के 
रुपहले गाँव में घर बसायें 
तुम्हारी आशा की राहों 
पर बांधे थे खाबों से पुल 
आज चलो उस पुल से गुजरें
और क्षितिज के पार हो जाएँ|
.
दीप बनाकर याद तुम्हारी, प्रिय मैं लौ बनकर जलती हूँ|
प्रेम थाल में प्राण सजाकर, लो तुमको अर्पण करती हूँ
 .
वह अपरिचित स्पर्श जिसने 
छु लिया था इस ह्रदय को 
अनकही सी कई बातें 
खोल जाती थी गिरह जो
और तब से प्रेम हाला
जाम भर भर पी रही हूँ|
.
मानोशी की काव्य यात्रा में वतन से दूर होने का दर्द भी उभर कर आया है, देश की माटी छोड़कर आने पर उनका मन टीसता है, बार बार उद्वेलित करता है, मातृभूमि का प्रेम सहज ही इन पंक्तियों से प्रस्फुटित होता है
.
सीमाएं तज ,
भटक भटक कर
थका चूर है,
घर सुदूर है,
श्रांत मन, चल शांत हो
अब लौट चल घर
.
घर विदेश, स्वप्न देश
चमक-दमक, भिन्न वेश,
दूर हुआ, प्रिय स्वदेश,
हिय घिर घन छाया,
फिर फागुन आया
.
कोई खुशबू कहीं से आती है 
मेरे घर की ज़मीं बुलाती है
संकलन के दूसरे खंड में ग़ज़लों को स्थान दिया गया है| कहते हैं कि जब कोई सिद्धहस्त गीतकार गजलें लिखता है तो उसका गीतकार ग़ज़लों पर हावी हो जाता है और इसी प्रकार जब कोई शायर गीत लिखता है तो उसके गीतों में ग़ज़ल का अंदाज़ अनचाहे ही आ जाता है| परन्तु मानोशी इस मान्यता को तोड़ती हुई अपनी ग़ज़लों को लेकर दृढ़ता के साथ खड़ी नज़र आती है| गज़ल विधा संकेत की भाषा बोलती है और गीत बिम्बों और प्रतीकों की पटरी पर चलते हैं| ग़ज़ल मासूमियत के साथ सवाल पूछती है और खुद ही उत्तर भी देती है| ग़ज़ल को साफगोई पसंद है, किसी भी तरह की बनावट ग़ज़ल को ग़ज़ल नहीं रहने देती| मानोशी की साफगोई देखिये
.
ये जहां मेरा नहीं है 
या कोई मुझ सा नहीं है 
.
मेरे अपने आईने में 
अक्स क्यों मेरा नहीं है 
.
मानोशी की ग़ज़लों में आज के दौर में कही जा रही ग़ज़लों की तरह ज़माने की फ़िक्र भी नज़र आती है 
.
यूँ तो मेहमां बनकर आये थे वो मेरे घर मगर
जाते जाते मुझको मेरे घर में मेहमां कर गए 
.
टूटते रिश्तों में पलता टूटता बचपन यहाँ 
राह में भटकी जवानी गोली ही बरसायेगी 
.
ग़ज़लों में अगर मिटटी की सोंधी खुशबू मिल जाए तो क्या कहने, मानोशी के कुछ अशार देखिये 
.
नई है मिटटी मन सोंधा है 
कटती जुडती सी कड़ियाँ हैं
तेरा प्यार से गाल चिकुटना
छोटी छोटी सी खुशियाँ हैं 
.
रातों को तेरी यादों से 
लुकछुप मिलती दो सखियाँ है
.
संकलन में और भी कई बेशकीमती गज़लें हैं, मेरे इस कथन की पुष्टि आप तब करेंगे जब आप संकलन स्वयं पढेंगे|
संकलन के अन्य खण्डों में मुक्तछंदों, हाइकु तथा दोहों को स्थान दिया गया है|
.
जहां उन्मेष की भूमिका में प्रख्यात नवगीतकार यश मालवीय लिखते हैं कि इस संकलन से गुज़रना उनकी व्यक्तिगत उपलब्धि रही है तो जाने माने शायर एहतराम इस्लाम का मानना है की मानोशी के कई अशआर ज़माने की जुबां पर चढ़नें की हैसियत रखते हैं|
.
मैं इस संकलन को अपने पुस्तकालय में अग्रिम पंक्ति में स्थान देना पसंद करूंगा|
पुस्तक की आकर्षक छपाई , नयन सुलभ फॉण्ट, उत्तम किस्म का कागज़ तथा प्रूफ की कोई भी गलती का न होना इस संकलन को उच्चतम स्तर प्रदान करते हैं, जिसके लिए अंजुमन प्रकाशन बधाई के पात्र हैं|
.
पुस्तक का विवरण इस प्रकार है|
.
उन्मेष (काव्य संग्रह - मानोशी)
पृष्ठ - ११२ 
संस्करण - प्रथम - २०१३ हार्ड बाउंड 
मूल्य - २०० रुपये 
प्रकाशक - अंजुमन प्रकाशन (इलाहाबाद)
.
समीक्षक
राणा प्रताप सिंह

Views: 1050

Replies to This Discussion

मानोशी के काव्य संग्रह उन्मेष के प्रकाशन पर रचनाकार और प्रकाशक को हार्दिक बधाई और शुभकामनाए तथा समीक्षक आदरणीय श्री राणा जी के प्रति आभार जो इस महत्व पूर्ण संकलन से अवगत कराया | समीक्षा पढ़कर जान पा रहा हूँ मानोशी जी की कविताओं में ताजगी और मधुरता है शब्द चित्र बिम्ब सभी बहुत प्रभावी हैं | रचनाकार का बारम्बार अभिनन्दन !! 

धन्यवाद अभिनव जी। आप इस पुस्तक को अंजुअन प्रकाशन के वेबसाइट से प्राप्त कर सकते हैं। यह किताब बहुत जल्द फ़्लिपकार्ट पर भी उपलब्ध होगी।

सादर,

मानोशी

यह समीक्षा इतने सुगढ़ तरीके और बारीकी से लिखी गयी है कि बरबस पुस्तक की सारी विविधता और रचनाकार का कौशल साफ नजर आता है।

आभार जानकारी के लिए

बिना संदेह उन्मेष जहाँ गहन चिंतन और सधे हुए हाथों का सुफल है तो इसका पुस्तक स्वरूप एक सफल स्थापना की उद्घोषणा.

भाई राणाजी आपने यथार्थ भावों को साझा कर पुस्तक के प्रति उत्सुकता ही बढ़ायी है जिससे सम्बनधित लगातार सकारात्मक प्रतिक्रियाँ और टिप्पणियाँ आ रही हैं.

आदरणीया मानोषी जी को मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ तथा उनके प्रथम पुस्तक-पुष्प के लिए अनेकानेक बधाइयाँ.

सौरभ जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद। 

आदरणीय राणा प्रताप जी,

पुस्तक की इतनी बारीकी से सामीक्षा करने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद। आप लोगों की शुभकामनायें व आशीर्वाद इसी तरह बना रहे, यही कामना है।

सादर,

मानोशी

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
14 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service