फिर चुनावी दौर शायद आ रहा है
द्वेष का बाज़ार फिर गरमा रहा है
मेंमने की खाल में है भेड़िया जो
बोटियों को नोंच सबकी खा रहा है
इस तरह से सच भी दफ़नाया गया अब
झूठ को सौ बार वो दुहरा रहा है
क्या वफ़ादारी निभायी जा रही है
देवता, शैतान को बतला रहा है
बोझ दिल में सब लिए अपने खड़े हैं
ख़ुद-से ही हर शख़्स अब शरमा रहा है
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
अदरणीय सौरभ जी बहुत शुक्रिया हौसला अफ़ज़ाई के लिए तथा मार्गदर्शन के लिए
आभार....
क्या वफ़ादारी निभायी जा रही है
देवता, शैतान को बतला रहा है
भाई नादिर खानजी, आपकी ग़ज़ल पर दिल दाद कह रहा हूँ. यह अवश्य है कि हाट शब्द स्त्रीलिंग क्रिया के साथ संतुष्ट होता है. बोलचाल में भले हाट लगा दिया जाय. वस्तुतः वह लगायी ही जाती है.
मतले के सानी को द्वेष का बाज़ार फिर गरमा रहा है किया जा सकता है.
एक अरसे के बाद आपको देख रहा हूँ, अच्छा लगा.
शुभेच्छाएँ
अदरणीय रविकर जी आपका तो कोमेंट्स देने का अंदाज़ भी निराला है ।
अपने अपने अंदाज़ से समझा भी दिया।
बहुत बहुत शुक्रिया....
शुक्रिया ram shiromani pathak जी
हाट सजा हटिया सजी, बजा अनोखा राग |
लिंग दोष दीखे नहीं, गजल लगी बेदाग़ ||
सुन्दर रचना //हार्दिक बधाई आपको
नादिर भाई, शुक्रिया की क्या बात है! हाँ, शब्दकोश अथवा लुगात देखना बेहतर है. www.hinkhoj.com अथवा www.shabdkosh.comजैसी साइट्स भी रेफर कर सकते हैं.
राज़ भाई कोमेंट्स के लिए शुक्रिया जहाँ तक मुझे याद पड़ता है, हाट गाँव में बाज़ार को कहते हैं। हमारे ख़याल से तो हाट,बाज़ार पुरलिंग ही है।।(अभी -अभी हमने 1 दोस्त से कन्फ़र्म भी किया है) वैसे कोयी और साथी इस पर टिप्पणी करें तो और क्लियर हो जाएगा वैसे सभी दोस्तों का सुझाओ सर आंखो पर... हम तो अभी कलम पकड़ना सीख रहे हैं ।
अच्छा प्रयास है नादिर भाई. मगर देख लें. संभवतः 'हाट' शब्द स्त्रीलिंग है.
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