For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पहचान लिए जाने का डर

कोई तोड़ दे

उसका सर 

जोर से

मार कर पत्थर 

हो जाए ज़ख़्मी वो 

 

कोई दे उसे 

चीख-चीख कर

गालियाँ बेशुमार 

कि फट जाएँ उसके कान के परदे 

घर या दफ्तर जाते समय 

टकरा जाए उसकी गाडी 

किसी पेड़ या खम्भे से 

चकनाचूर हो जाए उसकी गाडी 

और अस्पताल के हड्डी विभाग में 

पलस्तर बंधी उसकी देह गंधाये...

और एक दिन 

सुनने में आया 

कि किसी ने उसके सर पर

....मार दिया पत्थर 

कि किसी ने उसे बीच चौराहे

...जी भर गरियाया है 

कि लड़ गई उसकी गाडी

किसी बाउंड्रीवाल से या ट्रक से

जानते इतिहासकार

कि डरपोक हैं वे

कायर हैं वे

पहचान लिए जाने से

डरते हैं वे....

इसीलिये उठा नहीं सकते वे

कोई  परिवर्तनकारी कदम 

उनसे डर कर 

उनके खिलाफ वे नहीं आते 

वे सिर्फ

मानते हैं मन्नतें 

करते है पूजा-अरदास 

और ज्यादा हुआ तो

देते हैं उसकी ह्त्या की सुपारियाँ 

वो मरता नहीं है 

वो कभी भी नहीं मरता....

(मौलिक अप्रकाशित )

Views: 366

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 10, 2013 at 3:52pm

आदरणीय अनवर सुहैल जी 

आज की व्यस्था में पसरे गुंडाराज पर जम कर आक्रोश बरसा है आपकी अभिव्यक्ति में साथ ही भीरु मन की लाचारी भी व्यक्त हुई है.. सार्थक अभिव्यक्ति के लिए शुभकामनाएँ 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on September 8, 2013 at 4:37pm

आदरणीय सुहैल जी, सादर अभिवादन.

आपके अन्दर के दर्द को समझा जा सकता है बेहतरीन कोसा काटी ... सादर!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 7, 2013 at 3:52pm

बेहतरीन रचना के लिए हर्दिक्ब बधाई 

Comment by रविकर on September 6, 2013 at 12:21pm

गजब गजब गजब


आदरणीय-
इतना रोष इतना क्षोभ ।
वो दुष्ट तो यह पढ़ कर ही मर जाए-
शुभकामनायें स्वीकारिये-
सादर

कोसा-काटी कोहना, कुल कौवाना व्यर्थ ।
दुष्कर्मी दुर्दांत यह, सचमुच बड़ा समर्थ ।
सचमुच बड़ा समर्थ, पाप का घड़ा बड़ा है ।
हरदम जिए तदर्थ, अडंगा कहाँ पडा है ।
कह रविकर कविराय, कीजिए किन्तु भरोसा ।
वही दंड यह पाय, आपने जैसे कोसा-

कोसा-काटी = गाली दे दे कर कोसना -
कौवाना = अंड-बंड बकना

Comment by Shyam Narain Verma on September 6, 2013 at 10:58am
बहुत ही सुन्दर! हार्दिक बधाई आपको!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तस्दीक अहमद जी, सादर अभिवादन। लम्बे समय बाद आपकी उपस्थिति सुखद है। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक…"
6 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल 221, 2121, 1221, 212 इस बार रोशनी का मज़ा याद आगया उपहार कीमती का पता याद आगया अब मूर्ति…"
15 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"जनाब, Gajendra shotriya, आ.' 'मुसाफिर ' साहब को प्रेषित मेरा प्रत्युत्तर आप, कृपया,…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मुसाफिर' साहब मैं आप की टिप्पणी से सहमत  नहीं हूँ। मेरी ग़ज़ल के सभी शे'र …"
2 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, सादर अभिवादन। मुशाइरे में सहभागिता के लिए बहुत बधाई। प्रस्तुत ग़ज़ल के लगभग…"
3 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय महेन्द्र जी। थोड़ा समय देकर  सभी शेरों को और संवारा जा सकता है। "
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। यह गजल इस बार के मिसरे पर नहीं है। आपकी तरह पहले दिन मैंने भी अपकी ही तरह…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल कुछ शेर अच्छे हुए हैं लेकिन अधिकांश अभी समय चाहते हैं। हार्दिक…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई महेंद्र जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए हार्दिक बधाई।"
8 hours ago
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

आंचलिक साहित्य

यहाँ पर आंचलिक साहित्य की रचनाओं को लिखा जा सकता है |See More
8 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हर सिम्त वो है फैला हुआ याद आ गया ज़ाहिद को मयकदे में ख़ुदा याद आ गया इस जगमगाती शह्र की हर शाम है…"
9 hours ago
Vikas replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"विकास जोशी 'वाहिद' तन्हाइयों में रंग-ए-हिना याद आ गया आना था याद क्या मुझे क्या याद आ…"
9 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service