For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इन्द्रजाल ......(दोहावली)// डॉ० प्राची

आँख मिचौली खेलता, मुझसे मेरा मीत 

अंतरमन के तार पर, गाए मद्धम गीत 

जैसे सूरज में किरण, चन्दन बसे सुगंध 

प्रियतम से है प्रीत का, मधुरिम वह सम्बन्ध  

क्यों अदृश्य में खोजता, मनस सत्य के पाँव 

सहज दृश्य में व्याप्त जब, उसकी निश्छल छाँव 

संवेदन हर गुह्यतम, सहज चित्त को ज्ञप्त

आप्त प्रज्ञ सम्बुद्ध वो, ज्ञानांजन संतृप्त 

प्रीत प्रखरता जाँचती, नित्य नियति की चाल 

मोहन लोभन फाँसते, छद्म इन्द्र के जाल 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 941

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 1, 2013 at 9:50am

आदरणीय बृजेश जी 

दोहावली के भाव आपको संतुष्ट कर सके ये मेरे लेखन के लिए परम संतोष का कारण है... 

आपका हार्दिक आभार 

सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 1, 2013 at 9:46am

आदरणीय सौरभजी 

प्रतिदोहा भाव मर्म पर आपसे अनुमोदन मिलना सम्प्रेषण की सफलता के प्रति आश्वस्त करता है...जिसके लिए मैं ह्रदय से आभारी हूँ. ख़ास तौर से पांचवे दोहे के मर्म पर आपका भावार्थ देना आत्मीय संतुष्टि प्रदान कर गया....सादर.

//आप सही कहते हैं आदरणीय अनुबंध की जगह सम्बन्ध शब्द ही सर्वथा उचित प्रतीत होता है//... ये भी बिलकुल सच है कि आत्मस्वरुप ( जिसे यहाँ प्रियतम कहा गया है) से एकत्व किसी सम्बन्ध से भी परे ही होता है.. बिम्ब इसी भावप्रस्तुति के अनुरूप ही चयनित किये गए हैं.. लेकिन उस उच्च भाव का सौम्य मानवीकरण अगली पंक्ति में सरल शब्दों में प्रस्तुत किया गया है.. तो सम्बन्ध ही कह देना उचित लगता है.. 

मार्गदर्शन के लिए आभार आदरणीय 

सादर 

Comment by बृजेश नीरज on October 1, 2013 at 6:54am

अनुपम दोहे! भावाभिव्यक्ति और शिल्प दोनों के लिहाज से अप्रतिम! इस सुन्दर प्रस्तुतीकरण पर आपको हार्दिक बधाई!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 30, 2013 at 10:47pm

डॉ. प्राची, क्या छंद हुए हैं !! अनुपम !!!


जहाँ पहला दोहा सुफ़ियाना अंदाज़ से अश-अश कर रहा है, वहीं दूसरा जीवात्मा के गुणधर्म को हमसे साझा करता हुआ सामने आता है. तीसरा मानो अंतरमन की सार्वभौमिकता को सटीक शब्द देता हुआ साग्रह है, तो चौथा स्थितप्रज्ञ की परिभाषा गढ़ उस अत्युच्च भावदशा को संतुलित करता हुआ-सा है. पाँचवें छंद में संयम (मूलतः धारणा, ध्यान और समाधि) के प्रभाव में अत्युच्च भावना को प्रतिपल सचेत रहने की चेतावनी है ताकि क्लिष्ट वृत्तियाँ मुलायम भावों को प्रदूषित न कर दें !
वाह वाह !
हृदय से बधाई स्वीकारिये, आदरणीया.

एक बात :
सूरज और किरण, चन्दन और सुगंध, उद्दात प्रेम का कोई भाव-धारक, ये सभी किसी अनुबन्ध को नहीं जीते. बल्कि, एक से दूसरा स्वयं-प्रस्फुटित हो चमत्कार का सुन्दर कारण हुआ करता है.  ऐसे में, अनुबन्ध  के स्थान पर सम्बन्ध अधिक सार्थक शब्द हो सकता है, ऐसा मेरा मानना है. वैसे तो, स्वतः-प्रस्फुटीकरण या किसी प्राकट्य का कारण पारिभाषित समस्त सम्बन्धों के भी परे जाता है. उक्त दोहे में प्रयुक्त बिम्बों को इस धरातल पर रख कर देखने की आवश्यकता है.
सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 30, 2013 at 10:35pm

अभिव्यक्ति के भाव व शिल्प पर सराहना के लिए धन्यवाद आ० रमेश चौहान जी  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 30, 2013 at 10:33pm

दोहावली पर आपकी उपस्थिति के लिए सादर धन्यवाद आ० महिमा श्री जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 30, 2013 at 10:31pm

आदरणीय विजय मिश्र जी 

दोहावली के मर्म पर आपकी सराहना के लिए ह्रदय से आभारी हूँ 

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 30, 2013 at 10:28pm

आ० संदीप पटेल जी 

दोहावली पर उत्साहवर्धन करती सराहना  के लिए हार्दिक धन्यवाद 

Comment by रमेश कुमार चौहान on September 30, 2013 at 10:04pm

भाव एवं शिल्प दोनो उत्कृष्ट दीदीजी कोटिश बधाई

Comment by MAHIMA SHREE on September 30, 2013 at 9:10pm

क्यों अदृश्य में खोजता, मनस सत्य के पाँव 

सहज दृश्य में व्याप्त जब, उसकी निश्छल छाँव .... बहुत ही सुंदर दोहावली.. ..आदरणीया प्राची जी बधाई स्वीकार करें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"चल मुसाफ़िर तोहफ़ों की ओर (लघुकथा) : इंसानों की आधुनिक दुनिया से डरी हुई प्रकृति की दुनिया के शासक…"
7 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"सादर नमस्कार। विषयांतर्गत बहुत बढ़िया सकारात्मक विचारोत्तेजक और प्रेरक रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"आदाब। बेहतरीन सकारात्मक संदेश वाहक लघु लघुकथा से आयोजन का शुभारंभ करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन…"
9 hours ago
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"रोशनी की दस्तक - लघुकथा - "अम्मा, देखो दरवाजे पर कोई नेताजी आपको आवाज लगा रहे…"
19 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"अंतिम दीया रात गए अँधेरे ने टिमटिमाते दीये से कहा,'अब तो मान जा।आ मेरे आगोश…"
20 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"स्वागतम"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ

212 212 212 212  इस तमस में सँभलना है हर हाल में  दीप के भाव जलना है हर हाल में   हर अँधेरा निपट…See More
Tuesday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"//आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी, जितना ज़ोर आप इस बेकार की बहस और कुतर्क करने…"
Saturday
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत धन्यवाद"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी, जितना ज़ोर आप इस बेकार की बहस और कुतर्क करने…"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आ. रचना बहन, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आ. भाई संजय जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service