जोन्ही भर के जोर पर, चिहुँकल छनकि अन्हार
ढिबरी भर के आस ले, मनवाँ सबुर सम्हार
रहि-रहि मन अकुतात बा, दुअरा लखन-लकीर
सीता सहमसु चूल्हि पर, बाया-बाया पीर
दर-दर भटकसु रामजी, रावन बड़हन पेट
चहुँप अजोध्या जानकी, भइली मटियामेट
तुलसी देई पूरि दऽ, भाखल अतने बात
बंस-बाँस के सोरि पर, कसहूँ नति हो घात
हमरो राजाराम के, लछमन भइले लाल
अँगना-दुअरा-खेत पर, सहमत लागो चाल
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(मौलिक व अप्रकाशित)
शब्दन के भावार्थ -
[जोन्ही - सितारे ; चिहुँकल - चौंकना ; छनकि - चट् से, छिनक कर ; अन्हार - अँधेरा ; सबुर - धीरज ; अकुताना - चंचल होना ; दुअरा - द्वार पर ; लखन-लकीर - लक्ष्मण-रेखा ; सहमसु - सहमती हैं ; चूल्हि - चूल्हा ; बाया-बाया - रोम-रोम ; पीर - दर्द, पीड़ा ; बड़हन - बहुत बड़ा ; चहुँप - पहुँच ; देई - देवी ; पूरि दऽ - पूरा कर दो ; भाखल - भाखा हुआ, मनता माना हुआ ; अतने - इतना ही ; सोरि - जड़, मूल ; नति हो - मत हो ; घात - षड्यंत्र, आघात ; सहमत लागो चाल - मतैक्यता बनी रहे ]
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आदरणीय सौरभ जी बहुतइ नीक लागल ...
भोजपुरी की मिठास मन में घर कर गयी ..देशज भाषा ऐसे ही बचायी जाए तो आनंद और आये सुन्दर रचना ..चहुंप ...देई..पूरि द सुन बहुत अच्छा लगा ...छठ पर आप की रचना का इन्तजार होगा
आभार
भ्रमर ५
आपका सादर धन्यवाद, आदरणीय सुरेंद्र भ्रमरजी.
आपको मेरे भोजपुरी दोहे रुचिकर लगे यह मेरे लिएभी संतोष की बात है. रचनाकर्म सकर्मक हुआ.
सादर
कई बेर इ दोहन के पढ़ चुकल बानी आजू फेरु निमन से एहमे डुबनी आ उतरईईनी ह, हर बेरु ओतने निक लागत बा, शब्द शब्द मे जेवन माटी के खाटी महक बा उ वोइसने लागत बा जैइसे खूब घाम से तपल धरती प बरखा होखला प महकेला |
बहुते निक लागल ई प्रस्तुति, बहुत बहुत बधाई और शुभकामना बावे |
सादर |
//माटी के खाटी महक बा, उ वोइसने लागत बा जइसे खूब घाम से तपल धरती प बरखा होखला प महकेला//
ओह ! अद्भुत उपमा ! निकहा खाँटी !
करेड़ तातल माटी पर परत बुनी से उमगल सोन्ह सुबास के नरम-नरम झोंका सउँसे छाती में भरि गइल !
दोहन के रुचला के निकहा हिरदा से धन्यवाद..
वाह वाह वाह...बहुत मजा आया...क्या कहने आ. सौरभ पाण्डेय जी...
रहि-रहि मन अकुतात बा, दुअरा लखन-लकीर
सीता सहमसु चूल्हि पर, बाया-बाया पीर ......................बड़ा निक लागल...ई दोहा...राउर बहुते आभारी बानी....नमन...!!!!!!
दर-दर भटकसु रामजी, रावन बड़हन पेट
चहुँप अजोध्या जानकी, भइली मटियामेट
तुलसी देई पूरि दऽ, भाखल अतने बात
बंस-बाँस के सोरि पर, कसहूँ नति हो घात //
भोजपुरी मिठास लिहले बहुते सुन्दर रचना | बधाई रउआ के | सादर
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