फ़िदा है रूह उसी पर, जो अजनबी सी है
वो अनसुनी सी ज़बाँ, बात अनकही सी है//१
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धनक है, अब्र है, बादे-सबा की ख़ुशबू है
वो बेनज़ीर निहाँ, अधखिली कली सी है//२
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कभी कुर्आन की वो, पाक़ आयतें जैसी
लगे अजाँ, कभी मंदिर की आरती सी है//३
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ख़फ़ा जो हो तो, लगे चाँदनी भी मद्धम है
ख़ुदा का नूर है, जन्नत की रौशनी सी है//४
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वो क़त्अ, गीत, ग़ज़ल, नज़्म है रुबाई भी
ख़याल पाक़ मुक़म्मल, वो शाइरी सी है//५
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हवा है, आग़ है, दरिया है, आसमां है वो
ज़मीं की गोद में सिमटी, वो ज़िंदगी सी है//६
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वो दिलनशीन जवां, मयकदे की ज़ीनत है
लगे वो मय की सुराही, वो मयकशी सी है//७
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वो बूँद ओस की, जलता हुआ जज़ीरा मैं
वो ख़्वाबगाहे तमन्ना है, जलपरी सी है//८
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कभी है 'नाथ' की राधा कभी वो मीरा है
वो सुर है ताल है सरगम है बाँसुरी सी है//९
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"मौलिक व अप्रकाशित"
वज्न : फ़िदा-12/है-1/रूह-21/उसी-12/पर-2/जो-1/अजनबी-212/सी-2/है-2 [1212-1122-1212-22]
Comment
आदरणीय केसरी साहब...आपने जो सुझाव दिया है..उसपर जरूर अमल करूँगा...एक साथ--कुछ और ..गलतियाँ निकल आये..तो ...थी है...कुछ इंतज़ार और सही...........नमन आपको........!!!!!
बहुत बहुत शुक्रिया ज़नाब शकील जमशेद्पुरी साहब, coontee mukerjee जी...आभार इस स्नेह के लिए.....नमन !!!!
ख़फ़ा जो हो तो, लगे चाँदनी भी मद्धम है
ख़ुदा का नूर है, जन्नत की रौशनी सी है//.............बहुत खूब.
वो दिलनशीन जवां, मयकदे की ज़ीनत है
लगे वो मय की सुराही, वो मयकशी सी है//
उफ्फ्फ्फ्फ..........पढ़कर नशा छा गया। ढेरों दाद कबूल करें।
Bahut Bahut Aabhar Aadarniy Saurabh Pandey Sahab.......Naman Aapko Is Sneh Hetu.........!!!!!!!
हवा है, आग़ है, दरिया है, आसमां है वो
ज़मीं की गोद में सिमटी, वो ज़िंदगी सी है.. .. भाई, ये शेर तो जम गया मुझे. वाह वाह !
शुभेच्छाएँ
बहुत बहुत शुक्रिया शुशील भैया जी....नमन !!
आपको यह शे'र अच्छा लगा,,,,हार्दिक प्रसन्नता हुई....पुनश्च: आभार....!!!!!
बहुत बहुत शुक्रिया श्री नीरज साहब..आपका शंशय उचित है...लेकिन .अजनबी कहने का मतलब यह कतई नहीं के आप उसे..अपने ख्यालों में भी नहीं ला पायें..आप उसे महसूस भी न कर पायें...//..और उसको 'नाथ' की मीरा या राधा कहना भी अतिश्योक्ति नहीं है..जब आपके लिए सब कुछ वही हो....
बहुत बहुत आभार आपका...!!!!!
आदरणीय वीनस केसरी साहब...हार्दिक आभार....आपको ग़ज़ल अच्छी लगी..मुझे भी बहुत ख़ुशी हुई...कोशिश करता रहूँगा..इसी तरह लिखता रहूँ..और मेरा खजाना भरता रहे...........नमन !!!!!!
प्यारी ग़ज़ल कही है .... महबूबा को सुना दी जाए तो मर मिटे :)))))))))))))
ढेरो दाद ...
कभी कुर्आन की वो, पाक़ आयतें जैसी ... आयतों जैसी
ख़याल पाक़ मुक़म्मल, वो शाइरी सी है .... ख्याले पाक
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