परम आत्मीय स्वजन,
"ओबीओ लाइव तरही मुशायरा" के 40 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है |
मुशायरे के नियमों में कई परिवर्तन किये गए हैं इसलिए नियमों को ध्यानपूर्वक अवश्य पढ़ें |
इस बार का तरही मिसरा, हिन्दुस्तान के मशहूर शायर जनाब इकबाल अशर की एक ग़ज़ल से लिया गया है, पेश है मिसरा-ए-तरह...
"इक आफताब के बे बक्त डूब जाने से"
इ/1/का/2/फ/1/ता/2/ब/1/के/1/बे/2/वक्/2/त/1/डू/2/ब/1/जा/2/ने/2/से/2
1212 1122 1212 22
मुफाइलुन फइलातुन मुफाइलुन फेलुन
(बह्र: मुजतस मुसम्मन् मख्बून मक्सूर )
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है. मुशायरे की शुरुआत दिनांक 30 अक्टूबर, दिन बुधवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक 31 अक्टूबर, दिन गुरुवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें :
विशेष अनुरोध :
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें. ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियाँ अवश्य दूर कर लें. मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन से पूर्व किसी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें. ग़ज़लों में संशोधन संकलन आने के बाद भी संभव है. सदस्यगण ध्यान रखें कि संशोधन उनके लिए एक सुविधा की तरह है न कि उनका अधिकार.
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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सच कहूं तो संतुष्टि नहीं मिली रमेश भाई जी, आपसे ज्यादे की उम्मीद रहती है, बधाई इस प्रस्तुति पर ।
अच्छी ग़ज़ल हुई है...अंतिम शेर तो कमाल का है॥दाद कुबूल करें !
सुन्दर प्रस्तुति है भाई जी मगर और प्रयास होना चाहिए था
इस सुन्दर कोशिशों के लिए दिल से बधाई भाईजी.
सादर
मिलेगा क्या उन्हें रूदाद-ए-ग़म सुनाने से
वो मुतमइन ही नही जब मेरे फ़साने से
न जाने कितने चराग़ों ने ख़ुदकुशी की है
नक़ाब-ए-रुख़ तेरे यकबारगी उठाने से
बहुत शानदार आदरणीय
//न जाने कितने चराग़ों ने ख़ुदकुशी की है
नक़ाब-ए-रुख़ तेरे यकबारगी उठाने से//
वाह वाह !! इस बढ़िया कलम के लिए मेरी दिली दाद स्वीकार करे मोहतरम गुलशन खैराबादी साहिब.
खूबसूरत ग़ज़ल। पहले मत्ले में ईता दोष पर नज़र डालना चाहेंगे।
आदरणीय बहुत ही सुंदर गजल कही आप ने बधाई बधाई
न जाने कितने चराग़ों ने ख़ुदकुशी की है
नक़ाब-ए-रुख़ तेरे यकबारगी उठाने से ...आहा लाजवाब अशफाक साहिब वाह
सुन्दर ग़ज़ल हुई है बहुत बहुत बधाई आपको
न जाने कितने चराग़ों ने ख़ुदकुशी की है
नक़ाब-ए-रुख़ तेरे यकबारगी उठाने से.... वाह! वाह!
शानदार गजल के लिए सादर बधाई स्वीकारें अशफाक़ साहिब....
आदरणीय अशफाक भाई , बहुत लाजवाब गज़ल कही है , आपको तहे दिल से बधाई !!!!! आदरणीय तिलक राज सर की बात को ध्यान रखें भाई जी !!!!!
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