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सबने तो वाह वाह की

कैसे सुनाएँ दास्ताँ तरसी निगाह की ।

दौरे ग़मों में किस तरह हमने पनाह की ।

 

दर्दे सितम प्यार में मिलते रहे हमे ,

चुपचाप सह गए कभी हमने न आह की ।

 

बीती फकत जो ज़िन्दगी हमने किया नही ,

हमें सजा भी मिल गयी ऐसे गुनाह की ।

 

एक एक करके हसरतें दम तोड़ती गयीं ,

हमको मिला वही कभी जिसकी न चाह की ।

 

तूफाँ कभी न आया शायद मेरी डगर ,

उसकी डगर में ज़िन्दगी हमने तबाह की ।

 

हाले बयान  ये जो महफ़िल में कर दिया ,

ताली बजा के सबने तो वाह वाह की ।

 

मौलिक व अप्रकाशित

नीरज 'प्रेम'

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Comment

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Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on December 16, 2013 at 4:46pm

अच्छी ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें आ नीरज जी...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 14, 2013 at 2:47am

भाई नीरजजी, आपने तो एकदम से बीस कदम आगे की छलाँग लगा डाली.. !

दिल से बधाई.

सुधीजनों और शुभचिंतकों की बातों और सुझाव का ध्यान रखियेगा.

सादर

Comment by Neeraj Nishchal on December 7, 2013 at 11:42pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी और आदरणीय वीनस भाई आप दोनों
का तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ मैंने रचना में सुधार लाने की कोशिश की है
सादर

Comment by Neeraj Nishchal on December 7, 2013 at 11:06pm

आदरणीय निलेश भाई आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।

Comment by Neeraj Nishchal on December 7, 2013 at 11:00pm

आदरणीया कुंती जी बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by Neeraj Nishchal on December 7, 2013 at 10:57pm

आदरणीय भण्डारी आपका बहुत बहुत आभार
मैंने कुछ प्रयास किया है सही करने का ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 7, 2013 at 10:49pm

नीरज जी

हमने भी वाह वाह  की i

बहुत ख़ूबसूरत कही i  बधाई हो i

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 7, 2013 at 5:52pm

नीरज भाई जी धीरे धीरे बात बन रही है बस थोडा सा प्रयास और फिर क्या कहने यह प्रयास बहुत ही सुन्दर है भाई इस पर बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 7, 2013 at 12:32pm

एक एक करके हसरतें दम तोड़ती गयीं ,

हमको मिला वही कभी जिसकी न चाह की

आप के भाव को सलाम

Comment by वेदिका on December 7, 2013 at 11:18am

बढ़िया गज़ल! हार्दिक बधाई!!

कृपया ध्यान दे...

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