आदरणीय सुधीजनो,
दिनांक -15 दिसंबर’ 13 को सम्पन्न हुए ओबीओ लाइव महा-उत्सव के अंक-38 की समस्त स्वीकृत रचनाएँ संकलित कर ली गयी हैं. सद्यः समाप्त हुए इस आयोजन हेतु आमंत्रित रचनाओं के लिए शीर्षक “पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा” था.
महोत्सव में 27 रचनाकारों नें दोहा, रोला, कुंडलिया, सार छंद, घनाक्षरी, नवगीत, चौका, ग़ज़ल, व अतुकान्त आदि विधाओं में अपनी उत्कृष्ट रचनाओं की प्रस्तुति द्वारा महोत्सव को सफल बनाया.
यथासम्भव ध्यान रखा गया है कि इस पूर्णतः सफल आयोजन के सभी प्रतिभागियों की समस्त रचनाएँ प्रस्तुत हो सकें. फिर भी भूलवश यदि किन्हीं प्रतिभागी की कोई रचना संकलित होने से रह गयी हो, वह अवश्य सूचित करे.
सादर
डॉ. प्राची सिंह
संचालक
ओबीओ लाइव महा-उत्सव
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1. सौरभ पाण्डेय जी
अपने ही में रहता हूँ
धुन में अपनी बहता हूँ
तिस पर भींचें मुट्ठी-जबड़े, मेरे पापा कहते हैं..
’बड़ाऽऽ नाम करेगा.. !’
इक तो दुनिया बहुत बुरी
किस्मत झण्डू, खरी-खरी
पर सपने चमकीले हैं
बातें मेरी हरी-भरी !
मेरी तितली-फूल-कली पर मेरे पापा कहते हैं..
’बड़ाऽऽ नाम करेगा.. !’
कौतुक भौंचक सुनें खबर
मॉल-सिनेमा या घर पर
भीड़-भड़क्का रौनक है
नई उमर क्यारी भर-भर
इत्ते-इत्ते रूप-खज़ाने, मेरे पापा कहते हैं..
’बड़ाऽऽ नाम करेगा.. !’
मेरा भी मन कढ़ता है
इस पर पारा चढ़ता है
मेरी सोच, खयालों से
प्रेशर उनका बढ़ता है
आँखें मूंदे, कुछ-कुछ हँस कर मेरे पापा कहते हैं..
”बड़ाऽऽ नाम करेगा.. !’
2.सुशील जोशी
(पैरोडी गीत) (फिल्म – क़यामत से क़यामत तक)
पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा
बेटा हमारा भी इलेक्शन लड़ेगा
मगर ये तो
सारे ही जानें
कि अपने वोटर
हैं कहाँ...
.
वोटर हमारे
सारे के सारे
पापा के कामों से
नाराज़ हैं.
ऐसे में अपनी
गिनती कहाँ है
बस हार का ही ये
आगाज़ है.
‘नोटा’ का कोई बटन दबाएगा
या देने वोट नहीं कोई आएगा
क्योंकि ये तो
सारे ही जानें
कि अपने वोटर
हैं कहाँ...
.
मेरा है सपना
गर कर सकूँ मैं,
चाहे ज़माने से
ताना मिले.
भूखे और नंगे
जो फिर रहे हैं
उनको भी कपड़ा और
खाना मिले.
सबके हितों में ही काम करूँगा
देश में नहीं, दिल में नाम करूँगा
बिन कुर्सी के
भी सब कहेंगे
कि अपना नेता
है यहाँ...
पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा.....
3. उमेश कटारा जी
फंसा हुआ है जीवन सारा
दुनिया की दुनियादारी में
भ्रष्टाचार अब चढा आसमाँ
धन दौलत की बीमारी में
पथ है बडा पथरीला कौन चलेगा
पापा कहते हैं बडा नाम करेगा
मत संसद की तुम बात करो
लोगों की किस्मत रचती है
पर पूँजी पतियों के हाथों
अब खुलेआम ये बिकती है
मजहब की आग कबतक देश सहेगा
पापा कहते हैं बडा नाम करेगा
4. रविकर जी
प्रथम प्रस्तुति :कुण्डलिया
पापा कहते हड़बड़ा, नाम करेगा पूत |
गली मुहल्ला है त्रसित, असहनीय करतूत |
असहनीय करतूत, शिकायत घर में आये |
तोड़-फोड़ खिलवाड़, फटे में टांग अड़ाए |
तोड़ा रेस्टोरेंट, जला के चौखट तापा |
बड़ा करेगा नाम, बोल बैठे तब पापा ||
दूसरी प्रस्तुति-
आशा अपने राम को, नारायण आशीष ।
खड़ा बड़ा साम्राज्य हो, दर्शन की हो फीस ।
जोड़े रकम अकूत ।
नाम करेगा पूत ।। १॥
राहु-केतु लेते चढ़ा, खींच खींच आस्तीन ।
दोष दूसरे पर मढ़े, दंगाई तल्लीन ।
जीते पर यमदूत ।
नाम करेगा पूत ॥ २॥
छींका टूटा भाग्य से, बिल्ली गई अघाय ।
दिल्ली थोड़ी दूर बस, बस देगी पहुंचाय ।
दिखे आप मजबूत।
नाम करेगा पूत ॥ ३॥
अनशन पर आये नहीं, यद्दपि ज्यादा लोग ।
लोकपाल पर आ गया, बढ़िया यह संजोग ।
रविकर कर करतूत ।
नाम करेगा पूत ॥ ४ ॥
कुंडलियां
लेना-देना भूलता, कुछ व्यवहारिक ज्ञान |
कूट कूट लेकिन भरा, बेटे में ईमान |
बेटे में ईमान, खड़ा दुविधा का रावण |
टाले कुल शुभकर्म, कराये अशुभ अकारण |
घटी तार्किक बुद्धि, जगत देता है ठेना |
किन्तु करेगा नाम, कभी ईमान खले ना ॥
5. कल्पना रामानी जी
पापा मेरे करें न चिंता
पापा कहते हैं, मैं पढ़-लिख,
जग में नाम कमाऊँ।
चौराहे पर सोच रहा मन,
कौन दिशा में जाऊँ।
शिक्षक तो बन जाऊँ लेकिन,
बात न ये आएगी रास।
कोरे ठेठ अँगूठों को भी,
लोग कहेंगे कर दो पास।
हो गुमराह नई पीढ़ी, वो,
कैसे द्वार दिखाऊँ।
इंजीनियर बनूँ या डॉक्टर,
पर है मन में प्रश्न वही।
रिश्वत बिना कहाँ बजती है,
इस मारग पर भी तुरही।
स्वाभिमान को खोकर कैसे,
खुद से नज़र मिलाऊँ।
बन किसान लूँ हाथ अगर हल,
खाद-बीज होंगे भूगत।
ब्याज मूल की खातिर साहू,
कर देगा ख़ासी दुर्गत।
दे न सकूँ मैं अगर निवाले,
क्यों फिर वंश बढ़ाऊँ।
बनूँ राजनेता तो शायद,
भूल चलूँ अपना चेहरा।
मक्कारी बाँधेगी मेरे,
सिर पर एक नया सेहरा।
कैसे अपनी मातृभूमि का,
मैं फिर कर्ज़ चुकाऊँ।
पापा मेरे, करें न चिंता,
पूर्ण आपके होंगे ख्वाब।
बनूँ सिपाही इससे बढ़कर,
भला कौनसा और सबाब।
मिटकर अपने संग आपका
नाम अमर कर जाऊँ।
6.संदीप कुमार पटेल जी
अतुकांत रचना
दिन रात काम काम काम
बस काम
मेरी ख़ुशी
जहाँ भर से प्यारी
अपनी इच्छाओं को दबाये
मुझे सर पे चढ़ाए
कोई कमी नहीं होने देते वो
फिर भी सीख
लगती हैं बुरी
जो वो देते हैं यदा कदा
शायद उसमें वो झूठ की मिश्री नहीं घोल पाते
मुख पर कभी क्रोध आया तो
पल में मुस्कुराहटें भी
जानते हैं
उम्र की रवानी को
अनुभव हैं उन्हें
जवानी का
हर बात पर सहज होना
हर बात पर एक गुंजाइश
के
और बेहतर होगा
और अच्छा करोगे
कोई बात नहीं आज नहीं तो कल होगा
हिम्मत मत हारना
हर गलती पर स्नेह भरी डांट
और फिर भी न माने तो ...........
लेकिन नहीं कहा
तो कभी नाकारा
नालायक
उन्हें यकीन है मुझमें
और शायद मेरी सोच में
किन्तु मैं
मैं जब देखता हूँ
भीड़
सफलता के द्वार पर
असफल हुए लोगों की
जो सर पीट पीट के
कभी अपनी किस्मत को कोसते हैं
कभी अपनी जात को
और कभी औकात को
तो डर जाता हूँ
फिर शायद समझता हूँ
मुँह बाए आसमान को ताकते हुए
सोचता हूँ
के आखिर क्यूँ
पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा
7.गिरिराज भंडारी जी
अतुकांत – एक चिंतन
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नाम -बदनाम
दुख - सुख
अँधेरा - उजाला
अच्छा - बुरा
सब सापेक्षिक हैं
नाम होना भी ,
हो जाता है / हो सकता है
बदनाम होना
किसी के लिये !!!
वरदान भी होता है
अभिशाप,
किसी नज़रिये से !!!
अँधेरा किसी का सुख है ,
तो , दुख का कारण भी
और किसी के लिये !!!
तो,
नाम हो जाने की परिभाषा
पापा की / बच्चों की
अलग भी हो सकती है
मेरे से,/ मेरे लिये /पापा से /पापा के लिये
फिर / इसलिये
मै कहता हूँ ,
बच्चों से , अपने ,
नाम हो न हो
तुम्हारे किये
काम से
निर्माण जरूर हो !
क्योंकि
विध्वंस भी अगर किया जाये
निर्माण के उद्देश्य से
तो वो हिस्सा बन जाता है
निर्माण का !!!!!
8.अजीत शर्मा ‘आकाश’ जी
कविता
पापा का ये कहना है
पथ पर चलते रहना है
ऐसा कोई काम करो
जग में ऊँचा नाम करो
पढ़-लिख कर विद्वान बनो
इक अच्छे इन्सान बनो
बाधाओं से डरना क्या
हरदम आहें भरना क्या
हर बाधा को पार करो
ख़ुद को यूँ तैयार करो
मत सोचो कठिनाई है
राहों में जो आई है
दिन हो चाहे रात रहे
बस हिम्मत का साथ रहे
मंज़िल से क्यों दूरी हो
चाहे जो मजबूरी हो
अन्धकार से मत डरना
इस दुनिया का तम हरना
दीप बनो जलते जाओ
राह सभी को दिखलाओ
हरदम चलते जाना है
लक्ष्य तुम्हें यदि पाना है
कर्म करो फल पाओगे
दुनिया पर छा जाओगे
9.गणेश जी ‘बागी’
घनाक्षरी
उसके तो बेटे चार, फिर भी है क्यों उदास,
कहते हैं जन सभी, बुलंद सितारा है ।
पहला इंजीनियर, दूजा है बड़ा डाक्टर,
तीसरे की फैक्ट्री उसका भी वारा न्यारा है ।
चौथा नहीं पढ़ सका, आगे नहीं बढ़ सका,
चहुँओर शोर है कि, वह तो आवारा है ।
तीनों जा विदेश बसे, खुद में जो व्यस्त दिखे,
वृद्ध माई बाप का आवारा ही सहारा है ॥
10. सचिन देव जी
पापा कहते हैं ?
अबके पापा कहाँ कुछ कहते हैं
जिस दिशा ले जाएँ बच्चे
उस दिशा मैं ही बहते हैं
अबके पापा कहाँ कुछ कहते हैं
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बेटा आपका है नटखट बड़ा
धक्के से उसके मेरा बेटा गिर पड़ा
पडोसी आ–आकार रोज ताना देते हैं
फिर भी पापा चुप रहते हैं
अबके पापा कहाँ कुछ कहते हैं
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कक्षा मैं खूब हुडदंग मचाता
टेस्ट मैं भी नंबर कम लाता
टीचर्स को भी खूब सताता
मीटिंग मैं टीचर्स ये कहते हैं
फिर भी पापा चुप रहते हैं
अबके पापा कहाँ कुछ कहते हैं
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बच्चों को थोडा डांटते रहो
अच्छे संस्कार बाटते रहो
कमियों को उनकी छाँटते रहो
हम भी पापाओं से ये कहते हैं
फिर भी पापा चुप रहते हैं
अबके पापा कहाँ कुछ कहते हैं
11. ज्योतिर्मयी पन्त जी
पापा रहते आस में ,बेटे पढ़- लिख जाँय
अपने पैरों हो खड़े ,वे तीरथ कर आँय .
बेटों से उम्मीद हो ,रौशन होगा नाम
लगती उनको बेटियाँ, बस चिन्ता की खान .
अवसर जो मिल जाय तो ,पूरे हों अरमान
पापा फिर कहते फिरें ,बेटी घर की शान .
चकाचौंध धन की बड़ी ,बेटे बसें विदेश
नाम -ग्राम वे भूलते,मात -पिता के क्लेश.
बेटे उन्नति पथ बढ़ें ,मात -पिता के साथ
सुख इससे बढ़ कर नहीं,शीश बड़ों का हाथ .
12. अरुण श्री जी
कभी कभी -
विस्मृतियों से निकल मेरे सपने में लौट आते हैं पिता !
पूछते है कि उनके नाम के अक्षर छोटे क्यों हैं !
मैं उन अक्षरों के नीचे एक गाढ़ी लकीर खिंच देता हूँ !
जाते हुए अपना जूता मेरे सिरहाने छोड़ जाते हैं पिता !
मैं दिखाता हूँ अपने बनियान का बड़ा होता छेद !
और जब -
मैं खड़ा होता हूँ संतुष्टि और महत्वाकांक्षा के ठीक बीच ,
मेरे पैर थोड़े और बड़े हो जाते हैं !
मैं देखता हूँ पिता को उदास होते हुए !
कभी कभी -
अहाते में अपने ही रोपे नीम से लटके देखता हूँ पिता को !
अधखुली खिडकी से मुझे देखती पिता की अधमरी रूह -
बताती है मुझे नीम और आम के बीच का अंतर !
कुछ और कसैली हो जाती है कमरे की हवा !
मैं जोर से साँस अंदर खींचता हूँ ,
खिडकी की ओर पीठ कर प्रेयसी को याद करता हूँ मैं !
लेकिन सित्कारों के बीच भी सुनता हूँ खांसने की आवाजें !
पिता मुस्कुरा देते हैं !
कभी कभी -
मैं अपने बेटे से पूछता हूँ पिता होने का अर्थ !
वो मुट्ठी में भींची टॉफियाँ दिखाता है !
मुस्कुराता हुआ मैं अपने जूतों के लिए कब्र खोदता हूँ !
अपने आखिरी दिनों में काट दूँगा नीम का पेड़ भी !
नहीं पूछूँगा -
कि मेरा नाम बड़े अक्षरों में क्यों नहीं लिखा उसने !
उसे स्वतंत्र करते हुए मुक्त हो जाऊंगा मैं भी !
अपने पिता जैसे निराश नहीं होना चाहता मैं !
मैं नहीं चाहता कि मेरा बेटा मेरे जैसा हो !
13. रमेश कुमार चौहान जी
प्रथम प्रस्तुति
बाप सदा से कहते आया, सदा खुश रहो लाला ।
सदा तुझको हर मंजिल मिले, मिले न गम का प्याला ।।
बाप सदा से कहते आया, सुन लो मेरे लाला ।
तुझ में देखू अपनी छाया, उम्मीदों की ज्वाला ।
बाप सदा से कहते आया, बुढ़ापे का सहारा ।
बेटा तुझ में ही समाया, मेरा जीवन सारा ।।
बाप सदा से कहते आया, तुझ को सबकुछ माना ।
तेरे लिये जीना मुझे तो, तेरे लिये मर जाना ।।
बाप सदा से कहते आया, काम करो कुछ ऐसे ।
मेरा नाम हो जग में बेटा, सूरज चमके जैसे ।
बाप सदा से कहते आया, बेटा दिया ना कान ।
जब से पाया बीबी बच्चा, खुद बन गया महान ।।
बाप सदा से कहते आया, बेटा जब बना बाप ।
तब उसको समझ में आया, नेक कह रहे थे आप ।।
द्वितीय प्रस्तुति: चोका
रोपा है पौध
रक्त सिंचित कर
निर्लिप्त भाव
जीवन की उर्वरा
अर्पण कर
लाल ओ मेरे लाल
जीवन पथ
सुघ्घड़ संवारते
चुनते कांटे
हाथ आ गई झुर्री
लाठी बन तू
हाथ कांप रहा है
अंतःकरण,
प्रस्पंदित आकांक्षा,
अमूर्त पड़ा
मूर्त करना अब,
सारे सपने,
अनगढ़े लालसा
प्रतिबम्ब है
तू तन मन मेरा
जीवन समर्पण
14. शिज्जू शकूर जी
अपने अधूरे सपने मेरी आँखों को देकर,
कुछ अधुरी ख्वाहिशों को,
पूरा करना चाहा है पिता ने,
छू न सके आसमां जो,
मेरे हाथों से छूना ये
अरमां बना है उनका,
मेरे बहाने वो हँसें,
मेरे दम पे वो चलें,
उनकी वो ठहरी हुई आँखें,
खामोश लब कहते हैं…
हाँ! मेरे पापा कहते हैं,
बड़ा नाम करेगा...
15. नीरज कुमार ‘नीर’ जी
वह जब लिखता है
कविता या बनाता है
कोई चित्र.
चढ़ जाती हैं त्यौरियां,
तन जाती हैं भवें,
उठते हैं कई सवाल,
फुसफुसाहट का शोर
गूंजता है मन के
भीतर तक ,
भेदता है अस्तित्व को गहरे ,
हो जाती हैं गहरी
पापा के माथे की लकीरें,
होने लगती है चर्चा,
यूँ ही करेगा व्यर्थ जीवन
या कोई काम करेगा .
होती है फिर कोशिश
गढ़ने की जिंदगी के
नए आयाम
तराशी जाती है एक
बिना आत्मा की अनगढ़ मूरत
बनने की होती है कोशिश
एक इंजीनियर , मैनेजेर
या ऐसा ही कुछ .
और तन जाती है गर्दन
पापा की
फुल जाता है सीना,
पलता है ख्वाब
ढेर सारे दहेज़ का,
होकर आत्माभिमानी
पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा !
16. लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला जी
कुंडलियाँ छंद
भाग्यशाली पूत जना, लाजवाब है योग,
जन्म कुण्डली कह रही,सुन्दर है संयोग |
सुंदर है संयोग, राज का योग बना है
इसका रखना ध्यान, यही हमको कहना है
बेटा करता नाम, बने जब वह बलशाली
माँ का हो सत्कार, जने पूत भाग्यशाली ||
*संशोधित
17. नादिर खान जी
अतुकांत रचना
पिता ने जब सुना शहर की पढ़ाई के बारे में रख दिया गिरवी पुश्तैनी खेत और भेज दिया शहर के बड़े हॉस्टल अपने बेटे को
जब पढ़ानी थी, इंजीनियरिंग पिता ने बेच दिया गाँव का पुश्तैनी मकान
फिर जब नौकरी नहीं मिली और खड़ा करना चाहा बेटे ने खुद का व्यवसाय पिता ने बेच डाला बचा-खुचा भी ये सोच कर एक दिन बेटा नाम करेगा ।
व्यवसाय चल पड़ा तो शादी भी कर दी बड़ा नाम है, इंजीनियर साहब का शहर के बड़े ठेकेदार भी हैं पिता के साथ-साथ रोशन कर रहे हैं गाँव का नाम भी अरे!! बड़े फरमाबरदार हैं इंजीनियर साहब अपने व्यस्त शिड्यूल से हर माह वक्त निकाल लेते हैं वृद्ध आश्रम में माँ-बाप से मिलने सपरिवार ज़रूर जाते हैं।
18. अखंड गहमरी जी
नित्य प्रात: जब मैं सो कर उठता झाडू पोछा घर के काम मैं करता पढ़ना लिखना मैं कभी ना चाहता देख कर मेरा चालन चलन दुख से पापा कहते बडा नाम करेगा पत्नी सेवा में इतिहास रचेगा
अपनी शादी कि तैयारी मैं करता मेहर वाले मैं सब काम समझता सारा दिन देखो मैं कपड़े सिलता चाल ढ़ाल सब देखकर व्यंग से पापा कहते है बड़ा नाम करेगा पत्नी सेवा में इतिहास रचेगा
पढ़ी लिखी है मुझको मेहर लाना नौकरी है हमको बीबी से करना नाज नखरे उसके है हमे उठाना सुन कर हमें मेहर की कमाई खाना पापा कहते है बडा नाम करेगा पत्नी सेवा में इतिहास रचेगा
देश माता पिता की सब सेवा करता इनके हित की ही सब बाते करता पत्नी सेवा पर सब हसी है करता पत्नी सेवा पर कोई ध्यान न करता सुन कर मेरी बेसिर पैर की बाते पापा कहते है बडा नाम करेगा पत्नी सेवा में अखंड इतिहास रचेगा
19. अरुण कुमार निगम जी
छंद कुण्डलिया : (१) पापा कहते हैं बड़ा , नाम करेगा पूत होगी बेटे से अहा , वंश - बेल मजबूत वंश - बेल मजबूत , गर्भ में बेटी मारी क्यों बेटे की चाह , बनी इनकी लाचारी नहीं करो यह पाप ,नहीं खोना अब आपा बेटा - बेटी एक , समझ लो मम्मी-पापा ||
(२) पापा कहते है बड़ा , नाम करेगा लाल इच्छायें सब थोप दीं , बेटा हुआ हलाल बेटा हुआ हलाल, न कर पाया मनचीता खूब लगे प्रतिबंध, व्यर्थ में जीवन बीता अभियंता का स्वप्न, कुदाली गैंती रापा अब बेटे के हाथ, बहुत पछताये पापा ||
(३) पापा कहते हैं बड़ा , नाम करेगा पुत्र पहले प्रतिभा भाँपिये,यही सरलतम सूत्र यही सरलतम सूत्र , टोकना नहीं निरंतर सब हो युग अनुरूप,न हो पीढ़ी का अंतर सफल हुये वे लोग , जिन्होंने अंतर ढाँपा साथ बढायें पाँव , पुत्र औ’ मम्मी - पापा ||
20. चन्द्र शेखर पाण्डेय जी
हिन्दी गजल पुत्र की यह एषणा मानुष के उत्कट तर्क तक।
राम के वन में सुमित्रा के कठिन अवदान में,। पुत्र के उस त्याग से बलिदान के इस फर्क तक।
भीम के गर्जन में अर्जुन के कठिन शरचाप में, कर्ण के परित्याग से दिनकर के इस प्रत्यर्क तक।
राष्ट्र पर धृतराष्ट्र के दावों से उपजे युद्ध में, टूटती जंघा से दु;शासन लहू के अर्क तक।
नाम का अभिमान है अविराम जपता लोक यह, द्रोण के हर क्षोभ से, देवों से हर संपर्क तक
21. संजय मिश्रा ‘हबीब’ जी
प्रथम प्रस्तुति : कुण्डलिया अम्बर को छू आ रही, बिटिया देखो आज।
द्वितीय प्रस्तुति : धनाक्षरी
आया जब दुनिया में, बाप सीना चौड़ा किये,
22. अशोक कुमार रक्ताले जी
कुण्डलिया छंद. पापा जी का समझ लो, हो गया बँटाधार, पुत्र मोह में कर लिया, हद से अधिक उधार | हद से अधिक उधार, भरेगा बेटा अपना, होगा उससे नाम, देखते झूठा सपना, जान हकीकत आज, खो चुके अपना आपा, हो गया बँटाधार, आप का अब जी पापा ||
23. वंदना जी
अब भी झांकती हैं चश्मे के पीछे से वर्जनाएं अभिलाषाएं आज भी क़ैद हैं मुठ्ठियों में जिन्हें बगल में दबाये खड़े होते हो तुम परछाइयों की तरह कि जब भी चाहता हूँ कोई लक्ष्मण-रेखा लाँघना सोचता था हो जाऊँगा बड़ा इतना कि मेरा बेटा नहीं ताकेगा पडोसी की लाल साईकिल भरा रहेगा फ्रिज चाकलेट टॉफी से व कमरा उन खिलौनों से जिन्हें हम देखा करते थे दूर से कमरा आज वाकई भरा है खिलौनों से जहाँ तुम्हारा लाडला पोता बैठा है रूठा हुआ कि दिलवाया नहीं प्ले-स्टेशन और ना ही देता हूँ उसे स्कूटर चलाने की इजाजत क्योंकि महज सातवीं में है वो और कमरे की दहलीज पर अपनी ऊष्मा से बर्फ पिघलाते हुए तुम उसे सहलाते समझाते दे रहे हो सांत्वना मुझे कि कामनाओं के असीम आकाश से अनुकूल सितारे चुन लेना ही होता है बड़ा काम
24. अविनाश एस० बागडे जी
क्या खाकर वो नाम करेगा ? उलटे - सीधे काम करेगा ! पापा ने तो नाम कमाया , ये उनको बदनाम करेगा। -- पापा जी पाजी कहते हैं। पल-पल बस राजी कहते हैं ! कुछ भी कर ले लल्ला उनका शरारते ताज़ी कहते है!!! -- चैनल सब कुछ बाँट रहें हैं ! बेटे वो सब चाट रहें है !! नाम करेंगे खाक ये पुत्तर , सबके पापा डांट रहे है। -- पापा कहता नाम करेगा। काम जो सुबहो -शाम करेगा। घुसा कान में मोबाईल है, बिटवा बस कोहराम करेगा।
25. मीना पाठक जी
रखा महीनों गर्भ में
26. सुशील सरना जी
रोला छंद तज प्राणों का मोह ,वतन पे जान लुटाना कर दुश्मन का नाश ,लौट कर घर को आना
हो भारत को नाज़ ,सपूत सच्चा बन जाना मिट जाना मिट्टी पर ,मिट के अमर हो जाना
27. अलबेला खत्री जी
पापा कहते हैं बड़ा काम करेगा |
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aadrneeya Dr.Prachi Singh jee is sundr sanklan ke liye haardik badhaaee aur aabhaar
वाह वाह .. !
मैं अपने कार्यालयी व्यस्तताओं के चलते आयोजन में आखिरी कुछ प्रविष्टियों पर अपनी प्रतिक्रिया दे ही नहीं पाया था. इसका बहुत खेद है. लेकिन यही विवशता है.
आयोजन की रचनाओं को इकट्ठे पढ़ना कई-कई तथ्य स्पष्ट करता है.
इस सफल आयोजन की प्रस्तुतियों के संकलन कार्य के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद, आदरणीया प्राचीजी..
सादर
इस बेहतरीन संकलन के लिए बहुत 2 बधाई आदरणीया प्राची जी
एक विषय में अलग अलग शैली में लिखी गई रचनाओं को पढ़कर यकीनन बहुत सुखद अनुभूति हो रही है । आदरणीया प्राचीजी काबिले तारीफ मज़मूआ के लिए मुबारकबाद ......
Bahut khub.. aadrneeya Dr.Prachi Singh jee haardik badhaaee
jitani padhi ..sabhi khubsurat
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महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
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