For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मेरा तरूण सन्नाटा तोड़ो - लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

तुम कोमल कमसिन लता नवीन और विजन में खड़ा विटप मैं ।
चाहो तो तुम आलिंगित हो, मेरा तरूण सन्नाटा तोड़ो ।।

वात झूमती चलती जब भी, मौन मेरा भी वाणी पाता ।

लेकिन इसका लाभ कहो क्या, कौन विजन में गुनने आता ।

भाग में मेरे लिखा दिवाकर, तरस तनिक जो कभी न खाता ।

तूफानों से हुआ जो नाता, गिरने का भय डँसता जाता ।


निभर्य स्नेहिल जीवन जी लूँगा, मुझसे यदि नाता जोड़ो ।

चाहो तो तुम आलिंगित हो, मेरा तरूण सन्नाटा तोड़ो ।।

मेरे सूने जीवन की तो, सब मनुहारें तुमने ठुकराई ।

और धरा के हित में तूने, बांह सहज अपनी  फैलायी ।
सावन जैसे हरित रूप ने, मति तुम्हारी शायद भरमायी ।
किन्तु सहारा पाये बिन मेरा, प्राप्य नहीं तुमको ऊँचाई ।


इसलिए ओ! लता नवेली, यह मिथ्या मद तुम भी छोड़ो ।।

चाहो तो तुम आलिंगित हो, मेरा तरूण सन्नाटा तोड़ो ।।

सावन आये, फागुन बीते, हरियाया न कुछ जीवन में ।
धरे न दो पग यहाँ किसी ने, रहा जनम से सदा विजन में ।

निष्ठुरपन जो झलका तन में, पंछी तक न झाँका मन में ।

इसीलिए कुछ दर्प उगा है, मेरे प्यासे स्नेहिल मन में ।

लेकिन तुम बन कृषक बेटी, मेरे मन भावों को गोड़ो ।

चाहों तो तुम आलिंगित हो, मेरा तरूण सन्नाटा तोड़ो ।।

नारी का आभूषण लज्जा, समझ न पाया मैं अलबेला ।

वैसे भी यह कौन बताता, रहा विजन में सदा अकेला ।

यूँ तो रहा वसंती मेला, पर एकाकी खाया खेला ।

आकर तुम जो साथ रहो तो, मुस्का जाये जीवन बेला ।

मेरे सूने जीवन के हित, प्रेम की चूनर आ तुम ओढ़ो ।

चाहो तो तुम अलिंगित हो, मेरा तरूण सन्नाटा तोड़ो ।।

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 617

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vandana on February 2, 2014 at 7:47am

बहुत सुन्दर रचना आदरणीय 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2014 at 7:21am

आदरणीय भाई सौरभ जी , गीत कि प्रसंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद . आपकी सलाह जायज है , जरूर गौर करूँगा . इसी प्रकार मार्गदर्शन करते रहिये . तभी खुद को निखार पाउँगा . आभार .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2014 at 7:19am

आदरणीय भाई विजय  जी , गीत कि प्रसंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2014 at 7:18am

आदरणीय भाई अरुण जी , गीत कि प्रसंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद . आपकी सलाह जायज है , जरूर गौर करूँगा .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 2, 2014 at 3:55am

आपके गीतों का व्यावहारिक पक् तो मुगध कर गया, भाई लक्ष्मणजी. हृदय से बधाई स्वीकारें.

लयबद्धता यों कुछ विशेष शाब्दिक-विन्यास मांगती है, आप उस ओर भी ध्यान देंगे, ऐसी आशा है. इस मनभावन गीत के लिए पुनः हार्दिक बधाई

शुभ-शुभ

Comment by विजय मिश्र on January 30, 2014 at 1:00pm
भावप्रधान सुरम्य सुंदर रचना , बधाई लक्ष्मणजी |
Comment by अरुन 'अनन्त' on January 30, 2014 at 10:38am

आदरणीय लक्ष्मण जी बेहद सुन्दर गीत रचा है आपने भाव मन को बरबस ही आकर्षित करता है शब्द संयोजन बहुत ही अच्छा है किन्तु प्रवाह की कमी के कारण आनंद नहीं आया. खैर गीत बहुत पसंद आया इस हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 30, 2014 at 7:18am

आदरणीय भाई मीना जी गीत की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 30, 2014 at 7:18am

आदरणीय भाई बृजेश जी गीत की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 30, 2014 at 7:16am

आदरणीय भाई विजय निकोर जी गीत की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
7 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service