For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बह के पानी की तरह अब दूर तक वो जायेगा ( ग़ज़ल ) गिरिराज भंडारी

2122   2122  2122    212

बंदरों को फिर मिला शायद मसलने के   लिये

फूल ने मंसूबा कल बान्धा था खिलने के लिये

 

बह के पानी की तरह अब दूर तक वो जायेगा

दर्द  को मैने  रखा था  कल पिघलने के लिये 

 

वक़्त ने  कुछ वक़्त  देने की  नहीं हामी भरी

मैने  थोड़ा  वक़्त  मांगा था सँभलने के लिये  

 

सूर्य निकला तो समय में अस्त होगा भी ज़रूर                                  

चाँद को फिर हड़बड़ी क्यों है निकलने के लिये

 

किसने रख दी आँच उनकी ख़्वाहिशों के पास में

चंद  लम्हें  बच  गये  उनको  उबलने  के  लिये

 

हौसला  गर   है  शमा  सा  जो तुम्हारे पास तो  

खूब   परवाने   मिलेंगे   रोज़   जलने  के   लिये

 

कब इज़ाजत मुफ़लिसी देती है ख़्वाबों की उन्हें 

यूँ   मचलते  रोज़  हैं  अरमाँ  मचलने  के लिये

 

थरथराती  उँगलियाँ  कानों में मेरे कह रहीं

चल, इशारा  हो गया  है याँ से चलने के लिये

************************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित ( संशोधित )

Views: 605

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 18, 2014 at 1:14am

बंदरों को फिर मिला शायद मसलने के   लिये

फूल ने मंसूबा कल बान्धा था खिलने के लिये .... अच्छा मतला 

 

बह के पानी की तरह अब दूर तक वो जायेगा

दर्द  को मैने  रखा था  कल पिघलने के लिये .... बहुत बेहतरीन शेर 

 

वक़्त ने  कुछ वक़्त  देने की  नहीं हामी भरी

मैने  थोड़ा  वक़्त  मांगा था सँभलने के लिये ......... वाह्ह्ह उम्दा शेर 

 

सूर्य निकला तो समय में अस्त होगा भी ज़रूर                                  

चाँद को फिर हड़बड़ी क्यों है निकलने के लिये.... क्या खूब कहा!

 

किसने रख दी आँच उनकी ख़्वाहिशों के पास में

चंद  लम्हें  बच  गये  उनको  उबलने  के  लिये....वाह सर बहुत सुन्दर 

 

हौसला  गर   है  शमा  सा  जो तुम्हारे पास तो  

खूब   परवाने   मिलेंगे   रोज़   जलने  के   लिये ... अच्छा 

 

कब इज़ाजत मुफ़लिसी देती है ख़्वाबों की उन्हें 

यूँ   मचलते  रोज़  हैं  अरमाँ  मचलने  के लिये....बहुत बेहतरीन अशआर ...झूम गया पढ़कर 

 

थरथराती  उँगलियाँ  कानों में मेरे कह रहीं

चल, इशारा  हो गया  है याँ से चलने के लिये ..... बेहद उम्दा .... चल, इशारा  हो गया  है याँ से चलने के लिये... बहुत उम्दा 

इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए नमन आपको ... ढेर सारी बधाइयाँ 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 4, 2014 at 1:46am

ग़ज़ल पर बधाई स्वीकारें आदरणीय गिरिराजजी.

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 14, 2014 at 5:09pm

आदरणीया प्राची जी , आपका बहुत बहुत शुक्रिया आपने ग़ज़ल को इतना मान दिया ॥ तकाबुले रदीफ दोष की ओर ध्यान दिलाने के लिये आपका बहुत शुक्रिया ॥ संशोधन के लिये अभी डाल रहा हूँ , आपका पुनः शुक्रिया ॥


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 14, 2014 at 4:40pm

बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है आदरणीय गिरिराज भंडारी जी 

बह के पानी की तरह अब दूर तक वो जायेगा

दर्द  को मैने  रखा था  कल पिघलने के लिये ................वाह !

 

वक़्त ने  कुछ वक़्त  देने की  नहीं हामी भरी

मैने  थोड़ा  वक़्त  मांगा था सँभलने के लिये  ...............ये भी बहुत खूब 

किसने रख दी आँच उनकी ख़्वाहिशों के पास में

चंद  लम्हें  बच  गये  उनको  उबलने  के  लिये.................बहुत सुन्दर 

ठहर कर महसूस करने के लिए हुए हैं ये कुछ ख़ास शेर 

मकते के शेर में तकाबुले रदीफ़ का ऐब बन रहा है

बहुत बहुत दिली बधाई पेश है इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए 

सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 13, 2014 at 9:56pm

आदरणीय गुमनाम भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका तहे दिल शुक्रिया ॥

Comment by gumnaam pithoragarhi on February 13, 2014 at 9:52pm

सूर्य निकला तो समय में अस्त होगा भी ज़रूर                                  

चाँद को फिर हड़बड़ी क्यों है निकलने के लिये

 

हौसला  गर   है  शमा  सा  जो तुम्हारे पास तो  

खूब   परवाने   मिलेंगे   रोज़   जलने  के   लिये

khoob sir ji wah gazal achchhi lagi


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 13, 2014 at 5:33pm

आदरणीय आशुतोष भाई , गज़ल आपको बहुत पसन्द आई , मुझे बहुत प्रसन्ंता हुई !! सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ॥

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 13, 2014 at 5:04pm

आदरणीय गिरिराज भाईसाब ..आज आपकी इस ग़ज़ल की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है ..मैंने इस को कई बार पढ़ा ..अभी तक आपके द्वारा लिखी गयीए तमाम ग़ज़लों में ये मुझे सबसे अलहदा लगी ..किसी बिशेष शेर को उद्धृत कर पाना अत्यंत दुष्कर होगा ..मेरी तरफ से ढेरों बधायी स्वीकार करें ..सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 12, 2014 at 10:49am

आदरणीय जितेन्द्र भाई , गज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 12, 2014 at 10:47am

आदरणीया महिमा श्री जी , गज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका बहुत शुक्रिया ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service