2122 2122 2122 2122
गर यक़ीं ख़ुद पर नहीं हर रास्ता दुश्वार होगा
ख़्वाब मे भी फूल देखोगे वहाँ पर खार होगा
बात बाहर जब गई है तो कोई गद्दार होगा
कल्पनाओं से ही तो छपता नही अखबार होगा
चौक में जो रात को चिल्ला रहा था बात सच्ची
आज लोगों ने कहा, पागल या बादाख़्वार होगा
जब सियासत खूब दंगों की यहाँ होने लगी है
अब किताबों की जगह बम हाथ मे स्वीकार होगा
साफ तो करना ही होगा तुमको अपना आइना, तब
ख़्वाहिशें जब भी करोगे , हर समय दीदार होगा
आज सुनता हूँ कि यारों वो सड़क पर मर गया कल
साल पैंसठ ख़्वाब देखा जो मेरा घर बार होगा
तुम जहाँ की सभ्यता से आज बचपन सींचते हो
हर जवाँ में ज़ह्र होगा , मुल्क ये बीमार होगा
साहिलों पे बैठ के तूफाँ के किस्से क्या लिखोगे ?
अब लिखेगा वो ही जिसके हाथ मे पतवार होगा
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बादाख़्वार = शराबी
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मौलिक एवँ अप्रकाशित ( संशोधित )
Comment
आदरणीया वन्दना जी , ग़ज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिये आपका तहे दिके से शुक्रिया ॥
आदरणीय सौरभ भाई ,आपकी सराहना ने मेरा हौसला दोगुना कर दिया है , सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥
आदरणीया प्राची जी , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥
बात बाहर जब गई है तो कोई गद्दार होगा
कल्पनाओं से ही तो छपता नही अखबार होगा
तुम जहाँ की सभ्यता से आज बचपन सींचते हो
हर जवाँ में ज़ह्र होगा , मुल्क ये बीमार होगा
बहुत खूब आदरणीय बहुत बढ़िया ग़ज़ल
जय जय ..
किस एक की बात करूँ, आदरणीय गिरिराजभाईजी ! सारे शेर ग़ज़ब की सचबयानी करते हुए सामने आते हैं. हालिया दौर पर आपकी बहुत ही सशक्त गज़ल से दो-चार हो रहा हूँ. हृदय से बधाई स्वीकार करें. इस ग़ज़ल को साझा करने के लिए धन्यवाद.
शुभेच्छाएँ
बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है आ० गिरिराज भंडारी जी
बात बाहर जब गई है तो कोई गद्दार होगा
कल्पनाओं से ही तो छपता नही अखबार होगा........वाह! वाह! क्या शानदार बात कही है
आज सुनता हूँ कि यारों वो सड़क पर मर गया कल
साल पैंसठ ख़्वाब देखा जो मेरा घर बार होगा............इसमें कहन कुछ स्पष्ट नहीं हुआ
कई शेर बहुत पसंद आये
हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति पर
आदरणीया राजेश कुमारी जी , आपकी सराहना ने ग़ज़ल का मान बढ़ा दिया !! आपकी सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ॥ आपने सही कहा है , साहिलों पर या पे कहना चाहिये था , आपका बहुत शुक्रिया , मै सुधार कर लूंगा ॥
आदरणीय बड़े भाई अखिलेश जी , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥
जब सियासत खूब दंगों की यहाँ होने लगी है
अब किताबों की जगह बम हाथ मे स्वीकार होगा ----जबरदस्त शेर
साहिलों मे बैठ के तूफाँ के किस्से क्या लिखोगे ?----बहुत सुन्दर शेर ,साहिलों पर कर लीजिये (किनारों/तटों पर होता है ...नाकि किनारों में )
अब लिखेगा वो ही जिसके हाथ मे पतवार होगा
बहुत सुन्दर ग़ज़ल ....दाद कबूले आ० गिरिराज जी
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छोटे भाई गिरिराज
हार्दिक बधाई इस गज़ल पर।
साफ तो करना ही होगा तुमको अपना आइना, तब
ख़्वाहिशें जब भी करोगे , हर समय दीदार होगा......... बहुत सुंदर
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