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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
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वॉय होय, क्या बात है समशी भाई, किस शे'र की तारीफ़ करू और किसकी ना करू , सभी के सभी शे'र टुन्न है , पैग , गिलास , पानी , अंडा नमकीन , यार मेला की सभी सामान तो इकट्ठा है , फिर ये घर सूना कहा , बहुत ही शुरुर वाली ग़ज़ल ,
और शम्स साहिब लस्सी में मिलाकर पीना ठीक नहीं , हो हो हो हो
बधाई कुबूल कीजिये , महफ़िल को टुन्न करने के लिये |
जय हो जय हो
मेरा मयखाना सजा है आना है तो आ
पी के मर्जी हो तेरी तो भाड़ में घुस जा
टाईप शेर हैं
हा हा हा
दिल खुश हो गया
जब आपने झेलाया है तो अब दो शेर मेरे भी झेलिये
होली आई रे कन्हाई ,, होली आई रे $$$,,,......
हम होली के एक महीना पाहिलहिन से ही बौरा जाते हैं कोई बुरा न मानै भैया
हम ने बुरा नहीं माना भईया ! "कोई बिन पिये बौराए, हमका का !"
होली है...!!!
एक ना सुनता कोई, चाहे हजार बार कहें।
इसे वक्त का तकाजा या, उम्रे-मैयार कहे।।
मुँह पे शहद सी बातें, पीठ पे इक्फार कहे ।
ऐसे दकियानूस को हम क्या सरकार कहे ।
कथनी औ करनी जुदा, फर्ज ना कर सके अदा
आठो पहर गमजदा, क्या इसे इकरार कहे ।
सब के सब यहां पे, ख्वाईशो के गुलाम है ।
फिर हम किस मुँह से, खुदी को सुददार कहे ।
महाजन के खाते में, पहले ही बकाया है,
चुकाये-बिन फिर कैसे, देने को उधार कहे ।
उसकी आँखो में जंगल, जिस्म जैसे महके संदल
बियाबान को बाराबाँ, कैसे गुलजार कहे ।
सफेद कपड़ो में बाबा उन्हें, तन, मन औ धन गर हो काला
बता सियासतदाँ वतन परस्त या गद्दार कहे ।
धर्म औ इमां को, जो बेचकर खा गये ‘‘चन्दन’’
ऐसे बेईमानों को ही भूमि पे भार कहे ।
सूरच, चन्दा, सागर, पर्वत, खुदा की खुदाई है ‘‘चंदन’’
हम कैसे इस बात को माने, कहने को संसार कहे।।
नेमीचन्द पूनिया ‘‘चंदन’’
सब के सब यहां पे, ख्वाईशो के गुलाम है ।
फिर हम किस मुँह से, खुदी को सुददार कहे ।
bahut khub kaha aapne puniya sahab.....saare ke saare sher ek par ek hain......bahut hi badhiya likha hai aapne
पुनिया साहिब, कमाल की ग़ज़ल कही है आपने, कुछ शे'र तो काफी बुलंद बन पडे है ....
धर्म औ इमां को, जो बेचकर खा गये ‘‘चन्दन’’
ऐसे बेईमानों को ही भूमि पे भार कहे । वाह वाह , यह ख्याल बिलकुल सामयिक है |
महाजन के खाते में, पहले ही बकाया है,
चुकाये-बिन फिर कैसे, देने को उधार कहे । बहुत खूब , "कर्ज लो और घी पियों" के सिधांत वालों के मुह पर करारा चाटा |
बधाई स्वीकार करे श्रीमान |
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