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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
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उससे दो थप्पड़ खाकर हंसना मेरी मजबूरी है,
दुनिया क्या जाने वो मेरा बेटा लगता है।
दर्द की कोई ख़ुदाई सीमा तो हो जीवन में,
अब जीने से अच्छा मुझको मरना लगता है।
waah...bahut hi badhiya sher kahe hain Dr Saab.... bahut bahut badhai...
उससे दो थप्पड़ खाकर हंसना मेरी मजबूरी है,
दुनिया क्या जाने वो मेरा बेटा लगता है।
वाह वाह वाह ! संजय साहिब कलेजा चीर देंगे क्या ? आज के सभ्य समाज के सभ्य औलादों को अपनी सभ्यता पर एक बार पुनः विचार करनी होगी |
बेहद खुबसूरत ग़ज़ल , दाद कुबूल कीजिये श्रीमान |
बढ़िया गज़ल संजॉय जी क्या शेर है बहुत खूब--
छुटपन से ही बेईमानी उसको आती है,
वो भारत के मुस्तक़बिल का नेता लगता है।
बधाई \
बृज भूषण साहब खुशामदीद
यह गज़ल आपके ख्यालों की पुख्तगी का जीता जगाता नमूना है| इंसान के जीवन मे होने वाले अप्स और डाउन्स को बड़ी शिदत के साथ गज़ल के शक्ल मे पेश करने के लिए ढेरों दाद कबूल फरमाएं||
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