For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वो सुबह कभी तो आयगी …………..

वो सुबह कभी तो आयगी …………..

उफ़्फ़ !
ये आज सुबह सुबह
इतनी धूल क्योँ उड़ रही है
ये सफाई वाले भी
जाने क्योँ
फुटपाथ की जिन्दगी के दुश्मन हैं
उठो,उठो,एक कर्कश सी आवाज
कानों को चीर गयी
हमने अपनी आंखें मसलते हुए
फटे पुराने चीथड़ों में लिपटी
अपनी ज़िन्दगी को समेटा
और कहा,उठते हैं भाई उठते हैं
रुको तो सही
तभी सफाई वाले ने हमसे कहा
अरे फकीरा ,आज तो लगता है
तुम्हारी किस्मत बदल जायेगी
कल यहाँ मंत्री जी का दौरा है
ये टूटा फूटा फुटपाथ भी नया बन जाएगा
बरसों से बंद ये लेम्प पोस्ट भी
रोशन हो जाएगा
अब तो लगता है
सरकार का ध्यान सिर्फ
गरीब और गरीबी पर केन्द्रित है
हमने अपनी काया की तरह
रूखे सूखे बेरौनक और बेजान बालों पर
हाथ फेरा और हौले से मुस्कुरा कर
एक अदद चाय की भीख के लिए
चाय की थड़ी पर आ गए
थडी वाले ने तरस खा कर
हमें चाय पिला दी
तभी दूर से
प्रचार की गाडी से आवाज आई
हर गरीब को
छत,रोटी और कपड़ा देना हमारा लक्ष्य है
बस एक बार हमारा साथ दो
हम हर गरीब को बदल देंगे
जनता से ये हमारा वादा है
धीरे-धीरे उम्मीदों की आवाज़ दूर होती गयी
पता नहीं हवा में उड़ते
कौन कौन से आश्वासनों के पर्चे
फुटपाथ की थकी हारी ज़िन्दगी के
मृतप्राय अरमानों को
नई सांसें देने की चेष्टा कर रहे थे
नेताओं के भाषण
भाषणों में आश्वासन
आश्वासन में राशन
सुनते सुनते हम
बचपन से बुढ़ापे तक आ गए
खुशकिस्मत हैं हम
जो उनके काम आ गए
अपनी छत कुर्बान कर
उनके आशियाने सजा गए
अपनी किस्मत की पीठ पर तो
फुटपाथ के चुभते पत्थर हैं
तपती हुई धूप है
सूखी जली रोटियाँ हैं
हम फटे जूते से झांकते पाँव तक तो
आज तक न ढक सके
हम अपनी किस्मत क्या संवार पायेंगे
हाँ मगर गरीब नाम की बैसाखी से
ये नेता ज़रूर खुशकिस्मत हो जायेंगे
बस यही सोचते सोचते फिर हम
फुटपाथ पर आ गए और
फिर से अपने फटे पुराने चीथड़ों में
अपनी ज़िन्दगी को लपेट
पीठ पर चुभते पत्थरों के दर्द को
अपनी किस्मत मान
दूर बजते गाने में धीरे धीरे खोने लगे
वो सुबह कभी तो आयेगी , वो सुबह कभी तो आयगी …………..

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 701

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on July 10, 2014 at 9:19pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी रचना पर आपकी स्नेहाशीष का हार्दिक आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 10, 2014 at 12:47am

यथार्थ को साझा करती हुई इस कविता के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय.. .

सादर

Comment by Sushil Sarna on July 7, 2014 at 12:02pm

आदरणीय अरुन शर्मा  जी रचना पर आपकी सकरात्मक स्वीकृति युक्त प्रशंसा का हार्दिक आभार 

Comment by Sushil Sarna on July 7, 2014 at 12:00pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी रचना के मर्म पर आपकी सकारात्मक प्रशंसा का हार्दिक आभार 

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 6, 2014 at 3:41pm

आदरणीय सुशील सर रचना बहुत सुन्दर है बहुत पसंद आई गहराई में उतरने पर पीड़ा भी बहुत हुई. कितनी सुन्दरता से आपने यथार्थ का सटीक चित्रण किया है. आपको दिल से बधाई प्रेषित करता हूँ स्वीकार करें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 6, 2014 at 11:22am

आदरणीय सुशील भाई , यथार्थ का आपने यथार्थ चित्रण किया है , बहुत सुन्दर ! आपको बहुत बधाइयाँ ॥ सब कुछ सही तो ईश्वर के जमाने में भी नही था भाई , दुनिया सभी रंगों से मिल कर बनी है सदा से ॥ रचना के लिये पुनः बधाई ॥

Comment by Sushil Sarna on July 5, 2014 at 5:53pm

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला  जी रचना की आत्मा को पहचान आपने जो मान दिया उसने रचना में प्राण फूंक दिए हैं।  रचना की पीठ पर मिलने वाली हर थपकी रचनाकार को सृजन की ऊर्जा देती है।  आपके इस कृत्य हेतु आपका हार्दिक आभार 

Comment by Sushil Sarna on July 5, 2014 at 5:48pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रचना के मर्म पर आपकी आशावादी प्रतिक्रिया का तहे दिल से शुक्रिया 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 5, 2014 at 5:23pm

नेताओं के भाषण 
भाषणों में आश्वासन 
आश्वासन में राशन 
सुनते सुनते हम 
बचपन से बुढ़ापे तक आ गए 

खुशकिस्मत हैं हम 
जो उनके काम आ गए ------बहुत सही लिखा आपने गरीब जनता नेताओं के काम ही आरही है उन्हें ताज दिलाती रही है |

पीठ पर चुभते पत्थरों के दर्द को 
अपनी किस्मत मान 
दूर बजते गाने में धीरे धीरे खोने लगे 
वो सुबह कभी तो आयेगी , वो सुबह कभी तो आयगी …………..उम्मीद जगाई है फिर कि अच्छे दिन आने वाले है |

बहुत सुन्दर, यथार्थ और साथक रचना के लिए हार्दिक बधाई श्री सुशील सरना जी 

Comment by Sushil Sarna on July 5, 2014 at 11:23am

आदरणीय डॉ गोपाल श्रीवास्तव जी रचना पर आपकी गहन प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार  … जानते हैं लेकिन नाउम्मीद नहीं  .... कैंसर जान लेवा बीमारी है लेकिन बावजूद उसके अंत को जानते हुए क्या इलाज़ में कोताही बरती जाती है ? शायद नहीं।  बस प्रयास प्रयास और प्रयास ही इसका इलाज़ है नाउम्मीदी नहीं  । आपकी इस प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार  . ये सिर्फ मेरे विचार हैं।  कृपया अन्यथा न लेवें। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरनीय आजी भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है हार्दिक बधाई ग़ज़ल के लिए "
5 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"अनुज बृजेश , ग़ज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
10 minutes ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज जी इस बह्र की ग़ज़लें बहुत नहीं पढ़ी हैं और लिख पाना तो दूर की कौड़ी है। बहुत ही अच्छी…"
7 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. धामी जी ग़ज़ल अच्छी लगी और रदीफ़ तो कमल है...."
7 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"वाह आ. नीलेश जी बहुत ही खूब ग़ज़ल हुई...."
7 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय धामी जी सादर नमन करते हुए कहना चाहता हूँ कि रीत तो कृष्ण ने ही चलायी है। प्रेमी या तो…"
7 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय अजय जी सर्वप्रथम देर से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।  मनुष्य द्वारा निर्मित, संसार…"
7 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
23 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
yesterday
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service