3 मुक्तक …
१.
ऐ खुदा मुझ को बता कैसा तेरा दस्तूर है
तुझसे मिलने के लिए बंदा तेरा मजबूर है
जब तलक रहती हैं सांसें दूरियां मिटती नहीं
नूर हो के रूह का तू क्यूँ उसकी रूह से दूर है
२.
हिसाब तो साथ ज़िंदगी के पूरा हुआ करता है
साँसों के बाद ज़िस्म फिर धुंआ हुआ करता है
टुकड़ों में बिखर जाता है हर पन्ना ज़िन्दगी का
ज़मीं का बशर फिर आसमाँ का हुआ करता है
३.
हम परिंदों को खुदा से बन्दगी नहीं आती
कैदे-कफ़स में जीनी ज़िन्दगी नहीं आती
पर काट के परवाज़ का हौसला न आजमा
हम परिंदों को इन्सां सी दरिंदगी नहीं आती
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी - मुक्तकों पर आपकी गहन सुझावात्मक प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार - कृपया तोषदायक शब्द का अर्थ बताने का कष्ट करें।
मुक्तक चाहे शास्त्रीय छन्द के हों या अरुज़ के अनुसार बह्र आधारित, किसी न किसी वर्ण-व्यवस्था या मात्रिकता को मानते हैं, जबतक कि वे अतुकान्त न हों. कृपया आप साझा करें आदरणीय, कि ये किस व्यवस्था के अंतर्गत हैं .. .
वैसे भी भावदशा के अनुसार आपकी यह प्रस्तति भी बहुत ही तोषदायक है.
सादर
आदरणीया पारुल पंखुड़ी जी मुक्तकों पर आपकी मधुर प्रशंसा का हार्दिक आभार
आदरणीय विजय मिश्र जी मुक्तकों पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार
बहुत सुन्दर एवं सार्थक मुक्तक !
आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला जी मुक्तकों पर आपके आत्मीय प्रशंसनीय अभिव्यक्ति का हार्दिक आभार
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मुक्तकों पर आपके मधुर वचनों का हार्दिक आभार
लाजवाब मुक्तक रचना हुई है | तीनो मुक्तक सुंदर और सार्थक रचे है | विशेषकर तीसरा मुक्तक बेहद पसंद आया -
पर काट के परवाज़ का हौसला न आजमा
हम परिंदों को इन्सां सी दरिंदगी नहीं आती ---- बहुत खूब
आ० सुशील जी इस प्रयास के लिए हार्दिक बधाई l
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