For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कौन छोड़ा इस हवस के आदमी ने - गजल ( लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर ’ )


2122    2122    2122

**************************
घाट सौ-सौ  हैं  दिखाए  तिश्नगी  ने
कौन छोड़ा  इस  हवस के आदमी ने
**
करके  वादा   रोशनी  का हमसे यारो
रोज  लूटा  है   हमें   तो   चाँदनी ने
**
राह बिकते मुल्क  के सब रहनुमा अब
क्या किया ये  खादियों  की  सादगी ने
**
रात जैसे  इक  समंदर  तम  भरा  हो
पार जिसको नित  किया आवारगी ने
**
झूठ को जीवन दिया है इसतरह कुछ
यार  मेरे  सत्य को  अपना  ठगी ने
**
पास आना था हमें  यूँ भी कठिन पर
दूर   रक्खा   आप  को   नाराजगी ने
**

रचना मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर ’

Views: 734

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on July 27, 2014 at 5:37pm

इस बहुत सुन्दर गज़ल के लिए बधाई।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 27, 2014 at 9:33am

सभी आदरणीय विद्व जनों को उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद . आप सभी को ग़ज़ल पसंद आई यह मेरे लिए अति प्रशन्नता का विषय है .आप सभी का सुभाशीष पाकर धन्य हुआ . शुभ.. शुभ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 23, 2014 at 1:40pm

आदरणीय लक्ष्मण भाई , पूरी गज़ल बहुत शानदार कही है , बधाइयाँ ॥

करके  वादा   रोशनी  का हमसे यारो
रोज  लूटा  है   हमें   तो   चाँदनी ने
*राह बिकते मुल्क  के सब रहनुमा अब

क्या किया ये  खादियों  की  सादगी ने

पास आना था हमें  यूँ भी कठिन पर
दूर   रक्खा   आप  को   नाराजगी ने ---------- लाजवाब शे र , आपको ढेरों दाद ॥

Comment by someshwar pandeya on July 23, 2014 at 10:29am
राह बिकते मुल्क के सब रहनुमा अब
क्या किया ये खादियों की सादगी ने..................बहुत खूब
Comment by Dr. Vijai Shanker on July 22, 2014 at 7:28pm
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी ,
बात है " खादियों की सादगी " ने. सुन्दर रचना के लिए बधाई।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 22, 2014 at 3:32pm

इन दो शेरों ने बहुत ही प्रभावित किया है -

करके वादा रोशनी का हमसे यारो
रोज लूटा है हमें तो चाँदनी ने ... . 

पास आना था हमें यूँ भी कठिन पर
दूर रक्खा आप को नाराजगी ने

इस ग़ज़ल के लिए दिल से बधाई, आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी..

शुभ-शुभ

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 22, 2014 at 11:15am

धामी जी

अति सुन्दर i आखिरी शेर कमाल है i

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 22, 2014 at 8:32am

आदरणीय लक्ष्मण जी वर्तमान परिदृश्य को रचना के माध्यम से बखूबी चित्रित किया है आपने ..इस रचना पर मेरी तरफ से हार्दिक बधाई स्वीकार करे सादर 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 21, 2014 at 9:39pm

आज को बयां  करती हुई गजल, हर एक शेर बहुत लाजवाब। दिली बधाइयाँ आपको आदरणीय लक्ष्मण जी

करके  वादा   रोशनी  का हमसे यारो
रोज  लूटा  है   हमें   तो   चाँदनी ने..............सच! इंसान की फितरत

राह बिकते मुल्क  के सब रहनुमा अब
क्या किया ये  खादियों  की  सादगी ने.........ढोंगियों से भगवान बचाये

झूठ को जीवन दिया है इसतरह कुछ
यार  मेरे  सत्य को  अपना  ठगी ने.........बहुत कुछ कह दिया :))


Comment by Santlal Karun on July 21, 2014 at 9:32pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,

शे'र दर शे'र बड़े तरतीब से कहे गए हैं --

"घाट सौ-सौ  हैं  दिखाए  तिश्नगी  ने
कौन छोड़ा  इस  हवस के आदमी ने
**
करके  वादा   रोशनी  का हमसे यारो
रोज  लूटा  है   हमें   तो   चाँदनी ने"

...हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर कुंडली छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
4 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" "पर्यावरण" (दोहा सप्तक) ऐसे नर हैं मूढ़ जो, रहे पेड़ को काट। प्राण वायु अनमोल है,…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। पर्यावरण पर मानव अत्याचारों को उकेरती बेहतरीन रचना हुई है। हार्दिक…"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"पर्यावरण पर छंद मुक्त रचना। पेड़ काट करकंकरीट के गगनचुंबीमहल बना करपर्यावरण हमने ही बिगाड़ा हैदोष…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"तंज यूं आपने धूप पर कस दिए ये धधकती हवा के नए काफिए  ये कभी पुरसुकूं बैठकर सोचिए क्या किया इस…"
9 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार। त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।। बरस रहे अंगार, धरा…"
10 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' joined Admin's group
Thumbnail

धार्मिक साहित्य

इस ग्रुप मे धार्मिक साहित्य और धर्म से सम्बंधित बाते लिखी जा सकती है,See More
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"गजल (विषय- पर्यावरण) 2122/ 2122/212 ******* धूप से नित  है  झुलसती जिंदगी नीर को इत उत…"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"सादर अभिवादन।"
18 hours ago
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
Tuesday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service