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क्यों होती बेटियाँ

थोड़ी पराईं सी ?

होती हैं बेटियाँ

माँ की परछाईं सी।  

 

घर से वो निकलें जब

थोड़ा सा सहम-सहम

करती वो गलती बुरे

लोगों पर रहम कर

क्यों होती बेटियाँ

थोड़ी पछताईं सी?

 

जग करता मुश्किल

उनकी हर राहें

करतीं हैं पीछा शातिर निगाहें

क्यों होतीं बेटियाँ

तोड़ीं घबराईं सी ?

 

पैरों में उनके रिश्तों की पायल

तानें देके सभी करते हैं घायल

क्यों होती बेटियाँ

थोड़ी ठगाईं सी ?

 

पड़ता है उनको दूजे घर जाना

कैसे भी रिश्ते हों उनको निभाना

क्यों होतीं बेटियाँ

थोड़ी सकुचाईं सी ?

 

क्यों होती बेटियाँ

थोड़ी पराईं सी?

होती हैं बेटियाँ

माँ की परछाईं सी ।

मौलिक व अप्रकाशित

कल्पना मिश्रा बाजपेई    

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Comment

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Comment by kalpna mishra bajpai on July 30, 2014 at 12:41pm

आप सभी गुणी जनों की आभारी हूँ , और पाण्डेय सर, आप ने बिल्कुल सही कहा है।  मैं पूरा ध्यान दूँगी बहुत शुक्रिया 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 28, 2014 at 10:30am

बेटियों को लेकर सुन्दर भाव लिए रचे गीत के लिए हार्दिक बधाई 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 26, 2014 at 2:06pm

प्रस्तुति की कहन के लिए हार्दिक बधाई. यों, आपके प्रयास में गठन की आवश्यकता है आदरणीया .. प्रयासरत रहें.

सादर

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 25, 2014 at 11:08am

माननीया

आपका अंदाज बढ़िया है i आप पहले उत्तर दे देती है फिर प्रश्न करती है  i  आपका कथन बहुत सुन्दर है i

कृपया ध्यान दे...

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