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जन्माष्टमी पर विशेष   

 

                                                   मनमोहन  माधव मधुसूदन I

वात्सल्य रसामृत से जिनके ब्रज का आप्यायित है जीवन I

 

  वे    ग्वाल-बाल  वे   गोपीजन

             वे   कुंज  लताओं  के  वितान I

 वह हरी-भरी मृदु भूमि मृदुल

             वह मंद पवन मधुमय विहान I

 

जिसकी   पावन    स्मृति  से    ही    अंतस    में    होता   स्पंदन I

                                                     मनमोहन  माधव मधुसूदन I

 

 शत-शत गायों के झुण्ड प्रबल

             यमुना सरि की वह धार प्रखर I

 गूंजती    हवा     में    मधु ताने

              मुरली के मोहन मादक स्वर I

 

खुलता है  धीरे  से  अब  भी  मानस   का    व्याकुल वातायन I

                                                    मनमोहन  माधव मधुसूदन I

 

ब्रज की होली वह मधुर फाग

                वह मधुवादन वह मधुर राग I

लीलाधर का   आह्लाद   प्रबल

                वे सानुराग !        वे वीतराग !

 

रूपायित करता है समग्र यह प्रिय भारत का जन-गण-मन I

                                                   मनमोहन  माधव मधुसूदन I

 

अभिसार    चांदनी    की छाया

                 लोकोत्तर     राधा    की     क्रीड़ा I

वह रास रहस्य अजान अमर

                  वह मौन ह्रदय की मधु पीड़ा I

हे कृष्ण !  नहीं   है वर्चनीय   यह  मेरा    आकुल    अवचेतन I

                                                  मनमोहन  माधव मधुसूदन I

 

 

 माता   यशुदा    के   गौरव क्षण

                 प्रभु का वपु आकर्षक नीला I

मथुरा-नरेश    के     छल   प्रपंच  

                 नारायण  की   नर सी लीला  I

अद्भुत चरित्र   अविरल गाथा अनुपम है    सारा कृष्णायन I

                                                 मनमोहन  माधव मधुसूदन I

 

 

इतिहास मुखर उर में अंकित

                 मानस     में  घिरती    है रेखा I

कल्पना जगत में कवि निमग्न

                 चाक्षुष किसने वह क्षण देखा I

 

वह महापुरुष ! वह महाभाव !  शब्दों का अर्पित अभिनन्दन I

                                                     मनमोहन  माधव मधुसूदन !

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

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Replies to This Discussion

कृष्ण की परिचयात्मकता और उनके व्यक्तित्व विस्तार को अत्यंत सक्षम तथा आत्मीय शब्द मिले हैं जिनके कारण यह भावाभिव्यक्ति उच्च स्तर की बन गयी है, आदरणीय गोपाल नारायनजी.
आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई तथा जन्माष्टमी की अनेकानेक शुभकामनाएँ.

आदरणीय सौरभ जी

आपकी अनुशंसा  का आभारी हूँ i  सादर i

बहुत ही सुन्दर , उत्कृष्ट , मनभावन ,दर्शन से ओतप्रोत रचना .
अभिसार चांदनी की छाया
लोकोत्तर राधा की क्रीड़ा I
वह रास रहस्य अजान अमर
वह मौन ह्रदय की मधु पीड़ा I
हे कृष्ण ! नहीं है वर्चनीय यह मेरा आकुल अवचेतन I
मनमोहन माधव मधुसूदन I
एक अमर -कृति तुल्य , बहुत बहुत बधाई आदरणीय डॉ o गोपाल नरायन जी ,
सादर .

आदरणीय विजय जी

सहमती हेतु धन्यवाद 

शत-शत गायों के झुण्ड प्रबल

             यमुना सरि की वह धार प्रखर I

 गूंजती    हवा     में    मधु ताने

              मुरली के मोहन मादक स्वर I

 

खुलता है  धीरे  से  अब  भी  मानस   का    व्याकुल वातायन I

                                                    मनमोहन  माधव मधुसूदन I

 वाह्ह कितनी सुन्दरता से आपने श्री कृष्ण की लीलाओं का स्मरण कराया है ,भक्ति भाव से औत प्रोत इस सुन्दर गीत के लिए हार्दिक बधाई 

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