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(1)

मोहक वन
सरि की कलकल
बहका मन

(2)

कोयल प्यारी
नित कूँ कूँ करती
जान हमारी

(3)

कार्तिक मास
झूम रही धरती
बुझेगी प्यास

(4)

यात्रा में रेल
दौड़ता सबकुछ
लगता खेल

(5)

मनवा भावे
सुन्दर है नईया
वायु हिलोर

"मौलिक व अप्रकाशित" 

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Comment

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Comment by Pawan Kumar on November 15, 2014 at 11:13am

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सादर अभिवादन, हाइकु की सराहना व उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 13, 2014 at 11:09pm

इस सुगढ़ प्रयास केलिए बधाई.. .

Comment by Pawan Kumar on November 6, 2014 at 2:26pm

आदरणीय डा0 गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी सादर अभिवादन, आपने रचना पे समय दिया इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद. आपके बताए अनुसार अन्तिम हाइकु सही कर ले रहा हूँ.
मार्गदर्शन हेतु हार्दिक आभार!

Comment by Pawan Kumar on November 6, 2014 at 2:24pm

आदरणीय लक्ष्मण रामानुज जी सादर अभिवादन, उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार!

Comment by Pawan Kumar on November 6, 2014 at 2:24pm

आदरणीय गिरिराज भण्डारी जी सादर अभिवादन, प्रोत्साहन हतु हार्दिक आभार!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 3, 2014 at 11:15am

प्रिय पवन

आपने सुन्दर रचना की है  i अंतिम हायकू में-- सुन्दर है नईया /पार लगावे में नाव का सम्बन्ध पार लगाने से है जबकि हायकू में सभी पंक्तिया  स्वतंत्र  होती हैं  I  यदि ऐसा करें -मनवा भावे
                                                        सुन्दर है नईया
                                                        वायु हिलोर ------------------------- सस्नेह i

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 3, 2014 at 10:07am

सुंदर हाइकु रचे है | बधाई श्री पवन कुमार जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 1, 2014 at 8:25pm

बहुत खूब ! भाई पवन जी , बधाई इन हाइकु के लिये ।

Comment by Pawan Kumar on November 1, 2014 at 10:55am

आदरणीय सुशील सरना जी सादर अभिवादन, प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार!

Comment by Pawan Kumar on November 1, 2014 at 10:55am

आदरणीय श्याम नरायन वर्मा जी सादर अभिवादन, आपने रचना पर समय दिया इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद, हार्दिक आभार!

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