For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओपन बुक्स आन लाइन, लखनऊ चैप्टर की मासिक काव्य गोष्ठी दिनांक 25 जनवरी 2015 पर एक रिपोर्ट

        गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या दिन रविवार दिनांक 25 जनवरी 2015 की जल-भीनी मोहक संध्या को ओपन बुक्स आन लाइन , लखनऊ चैप्टर की मासिक काव्य गोष्ठी, सेंट्रल आइडिया आफिस, द्वितीय तल एवं द्वितीय लेन, करामत मार्केट, निशातगंज, लखनऊ में यथा पूर्व सूचना सायं 2 बजे प्रख्यात हास्य कवि श्री आदित्य चतुर्वेदी की अध्यक्षता में प्रारंभ हुयी I इसका कुशल संचालन श्री मनोज शुक्ल ‘मनुज’ द्वारा किया गया I इससे पूर्व अध्यक्ष महोदय द्वारा माँ सरस्वती की प्रतिकृति पर माल्यार्पण किया गया और सभी उपस्थिति कवियों ने माँ के चरणों में फूल चदाये I कार्यक्रम में निम्नांकित कवियों ने भाग लिया I

  सर्व श्री/सुश्री

1- आदित्य चतुर्वेदी                   अध्यक्ष

2- मनोज शुक्ल ‘मनुज’                    संचालक

3- डा0 गोपाल नारायन श्रीवास्तव        संयोजक

4- डा0 एस सी ब्रह्मचारी

5- केवल प्रसाद ‘सत्यम’

6- आत्म हंस मिश्र ‘वैभव’

7- प्रदीप कुमार शुक्ल

8- अनिल ‘अनाडी’  

9- पं0 विजय लक्ष्मी मिश्र

10- कु0  नैना नाज पाण्डेय      

 

      गोष्ठी का प्रारंभ माँ सरस्वती की वन्दना से हुआ I स्वयं संचालक मनोज शुक्ल ‘मनुज’ ने सिंहावलोकन छंदों में स्वर एवं व्यंजन मैत्री युक्त रचना संगठन से वातावरण को भक्ति-रस-मय कर दिया I तदनंतर केवल प्रसाद ‘सत्यम’ ने वातावरण में पसरे समकालीन शीत को सुन्दर दोहों के माध्यम से अभिव्यक्त किया और कुछ फुटकर दोहे भी सुनाये I बानगी इस प्रकार है –

 

सर्दी से घबरा गयी    क्रूर सूर्य की आग I

कुहरे में सिमटी मिली खाकर सरसों साग II

यह मन ऐसा बावरा ,प्रीति करे नित सोच I

रोज दुश्मनी कर रहे    नही सोच संकोच II   

  

          कवि और सम्मानित वैज्ञानिक डा0 एस सी ब्रह्मचारी  ने भी शीत काल में अलसाई धूप का बड़ा ही मोहक चित्र प्रस्तुत किया I  शीत के आधिक्य से गौरैय्या पक्षी भी दुबक जाती है I काव्य चित्र इस प्रकार है –

 

जाने क्यों अलसाई धूप

          कुहरा आया छाए बादल

          टिप टिप बरसा पानी

          जाने कब मौसम बदलेगा

          हार  धूप   ने  मानी

गौरय्या  भी  दुबकी सोचे  जाने क्या सकुचाई

माघ महीन सुबह सवेरे जाने क्यों अलसाई धूप

 

           इसके बाद  डा0 गोपाल नारायन श्रीवास्तव ने एक गीत के साथ ही साथ मुक्तिबोध की परंपरा में माँ गंगा पर आधारित एक लम्बी फैंटेसी का पाठ  भी किया , जिसकी कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार है

 

मैने पूंछा- कौन हो तुम?’

उसने मुझे सर से पांव तक घूरा

बोला- मै बैताल हूँ

पर तुम कौन ?’

मै इंसान -------

बेताल हंसा – ‘यहाँ मध्य रात में

इंसान का क्या काम ?’

मैंने कहा –‘यहाँ पर रोती है

कोई भग्न नारी

जिसकी आवाज पर भटकता हूँ मै

बेताल हंसा – ‘यहाँ रोते है प्रेत और पिशाच

चुड़ैले करती है वीभत्स नाच

तुम्हे सुनायी देता है रोने का स्वर

बड़े ही भोले हो मानव प्रवर

मै मल्लाह हूँ, यहाँ से वाकिफ

यहाँ अर्द्ध रात्रि में नारी कब आयी ?

मुझे तो नहीं देता कुछ भी सुनायी

मेरी मानो बाबू जी वापस लौट जाओ

फिर मत कभी आना रात में अकेले

कौन जाने कब टूटे गंगा का कगार’ 

 

        हास्य कवि के जाने-माने कवि अनिल ‘अनाडी’ ने नेताओ की कलई खोलते हुए उनकी आजादी की परिभाषा पर गहरा व्यंग्य किया I उनकी बात उनकी ज़ुबानी इस प्रकार है –

 

कैसे ये मानव है I दैत्य है या दानव हैं I

जादूगारी दिखाते हैं I लोहा तक खा जाते हैं I

कलाकारी में अभ्यस्त हैं I हाजमे इनके मस्त हैं I

राजसी योग है I बिलकुल न वियोग है I

जनता को देते ये अवसाद हैं  I

कहते हम आजाद हैं

 

         युवा वैज्ञानिक एवं कवि प्रदीप कुमार शुक्ल ‘प्रदीप’ ने लीक से हटकर एक ऐसे विषय पर कविता सुनायी जिसकी सामान्यतः लोग कल्पना भी नहीं करते I वैश्विक बाजारीकरण के अंतर्गत जब अमिताभ बच्चन ने ‘छोटू मैगी’ का विज्ञापन किया तो कवि की समझ में इस विज्ञापन के लिए अमिताभ ने पारिश्रमिक नहीं लिया होगा क्योंकि शहर के बाद अब यह सीधे ग्रामीण वर्ग के शोषण से संबधित था I कवि कहता है –

 

शहरो पर है राज कर चुकी गांवों की बारी आयी I

अमिताभ जी लेकर आये ‘छोटू मैगी’ भाई I

 

        कवयित्री विजय लक्ष्मी मिश्र ने पहले पड़ोसी देश की आतंकी गतिविधियों की खबर ली और फिर ‘तीर और तलवार चलाना जानू मै I भारत माँ की लाज बचाना जानू मै I’ कविता से अपने अस्तित्व का बोध कराया I इस कार्यक्रम का सबसे बड़ा विस्मय फर्स्ट-ईयर की छात्रा एवं कवयित्री विजय लक्ष्मी मिश्र की पुत्री नवोदित कवयित्री कु0 नैना नाज पाण्डेय थी I उनकी आयु देखकर उनके कवयित्री होने पर संदेह होता था I परन्तु उन्होंने बड़ी सशक्त रचनायें सुनाई I उनके मुक्तक जितने चुटीले थे गजल उतनी ही संजीदगी से भरा और वैसा ही कोमल-कान्त स्वर I ऐसी प्रतिभा के लिए आशीष के स्वर स्वतः निकलते है I इनका एक शेर बानगी की तौर पर प्रस्तुत है –

 

आने लगे  हो पेश  बड़ी  बेरुखी  से तुम

मिलते हो ऐसे जैसे किसी अजनबी से तुम  

 

        संचालक ‘मनुज’ ने अपने सुमधुर गीत से सभी का मन मोहा और इस मुक्तक से सबको स्तब्ध कर दिया –

 

कफस कफस है कोई आशियाँ नहीं होता

दिल का हर दर्द जुबां से बयां नहीं होता

ये तो तनहाइयां मेरी हमसफ़र रही वर्ना

तेरे  महबूब का  नामोनिशान नहीं होता

 

        आत्म हंस मिश्र ‘वैभव’ किसी परिचय के मुहताज नहीं है i इन्हें माननीय अटलबिहारी बाजपेयी द्वारा दो बार पुरस्कृत भी किया जा चुका है I यह वीर-रस के धुरंधर कवि है I वैसी ही बुलंद आवाज I

पर ये अपने को ‘ज्वाला’ का कवि कहते है I इन्होने अपने पाठ से समाँ बाँध दिया –

 

जलधर सामान कोई भी दानी नहीं रहा

रावण सामान कोई भी ज्ञानी नहीं रहा

रावण के वंशजों न हमें और सताओ

अब वो हमारी आँख में पानी नहीं रहा I

 

      कार्यक्रम के अंत में अध्यक्ष आदित्य चतुर्वेदी का काव्य पाठ हुआ I  उन्होंने दो सुन्दर गीत सुनाये I पर मूलतः वह क्षणिकाओ के कवि है i उनकी एक क्षणिका कुछ इस प्रकार है –

 

नेता जी ने कहा –

‘तुम मुझे खून दो ,

मै तुम्हे आजादी दूंगा I’

आज के नेता –

‘तुम मुझे वोट दो

मै तुम्हे बर्बादी दूंगा I

 

       अध्यक्ष की कविता पाठ के बाद संयोजक गोपाल नारायन श्रीवास्तव ने आभार ज्ञापन करते हुए सभी कवियों के योगदान को सराहा और कार्यक्रम समाप्ति की घोषणा की I

 (मौलिक व् अप्रकाशित )

      

Views: 1250

Reply to This

Replies to This Discussion

बधाई , सादर।

विजय सर !

अभिभूत हूँ आपका स्नेह मुझे हर सोपान पर मिलता है i  सादरi

आदरणीय गोपाल नारायनजी, लखनऊ शहर में ओबीओ के भौतिक मंच की जो अलख जगी है, उसके सतत प्रज्ज्वलित रहने में आप जैसे कर्मयोगी रचनाकर्मियों के योगदान को जान लेने के बाद प्रत्येक साहित्य अनुरागी नत हो जायेगा. जिन परिस्थितियों में भाई केवल प्रसादजी तथा डॉ एस सी ब्रह्मचारीजी की सात्विक संलग्नता बनी है, हम सभी सदस्य इसे खूब समझ रहे हैं और हृदय से आप सबकी जागरुक प्रतिभागिता को स्वीकार करते हैं.
आदरणीय शरदिन्दुभाईजी तथा आदरणीया कुन्तीजी की अनुपस्थिति में जिस तरह से आप सभी का सम्मिलन सहज हुआ है वह अभिभूत कर रहा है. मैं मुग्ध हूँ, आदरणीय. विभोर हूँ.
मौसम की चुहलबाजियों के बावज़ूद कार्यक्रम को सफलता के सोपान पर रखना दृढ़ संकल्पित मन की ही ताकत है.

भाई मनोज शुक्ल ’मनुज’ के साथ-साथ समस्त उपस्थित कवियों के प्रति हृदय में सम्मान के भाव हैं. आयोजन के अध्यक्ष आदित्य चतुर्वेदीजी के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करते हुए मैं आप सभी के मंगल की कामना करता हूँ.
विश्वास है साहित्य के संवर्द्धन की शलाका यों ही निरंतर जलती रहेगी.
सादर
 

आ० सौरभ जी

आपके स्नेह और प्रेरणा का ही परिणाम है कि हम  कार्यक्रम  संतोषजनक ढंग से कर पा रहे है i बस ऐसे ही वरद हस्त बना रहे i सादर i

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर आपने संपन्न सफल आयोजन की जीवंत रिपोर्ट प्रस्तुत कर, हमें भी खूब दर्शन कराये आयोजन के.

 डा0 एस सी ब्रह्मचारी जी की शीत काल में अलसाई धूप वाली  मोहक पंक्तियाँ, आपकी कौन जाने कब टूटे गंगा की कगार वाली कालजयी पंक्तिया, कवि अनिल ‘अनाडी’ जी की  नेताओ की कलई खोलती पंक्तियाँ, कवि प्रदीप कुमार शुक्ल ‘प्रदीप’ जी की छोटू मैगी कमाल की,  नवोदित कवयित्री कु0 नैना नाज पाण्डेय जी का उम्दा शेर (मतला) ,  संचालक ‘मनुज’ जी के  सुमधुर गीत की पंक्तियाँ , ‘वैभव’  जी की अब वो हमारी आँख में पानी नहीं रहा I और अध्यक्ष महोदय की क्षणिका ... सफल आयोजन हेतु बधाई ... साधुवाद 

आदरणीय वामनकर जी

आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी से मन आश्वस्त हुआ i सादर i

आदरणीय, लगभग एक महीने के प्रवास के बाद लखनऊ वापस आने के साथ ही टूटी-छूटी कड़ियों को जोड़ने के उद्देश्य से आपसे सम्पर्क किया था. लेकिन कुंती जी के अचानक अस्वस्थ हो जाने के कारण इस वर्ष की पहली गोष्ठी का विवरण पढ़ने में देर हो गयी. सबसे पहले आप सभी को साधुवाद कि बेहद ठण्डे मौसम के उपरांत हमारी संस्था के मासिक कार्यक्रम की निरंतरता में आपने कोई बाधा नहीं आने दी. जैसा कि आदरणीय सौरभ जी कह चुके हैं, यह नितांत प्रशंसनीय है. उक्त कार्यक्रम में प्रतिभागी सभी का मैं व्यक्तिगत तौर पर आभार व्यक्त करता हूँ. सम्भवत: हमारे कानपुर के साथी मौसम की वजह से ही नहीं आ सके. आशा करता हूँ कि फ़रवरी माह से नियमित उनका साथ मिलेगा. काव्य-पाठ के साथ ही किसी आकर्षक विषय पर चर्चा होने से ऐसे कार्यक्रम की गरिमा भी बढ़ती है और ज्ञानवर्धन भी होता है. आप अवगत ही नहीं, पिछले दिनों सक्रिय रहे हैं इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु. यदि उसी परम्परा को प्रोत्साहन देते हुए आगे के कार्यक्रम आयोजित करें तो सर्वांगीण सफलता और परिपूर्णता मिलेगी ओ.बी.ओ. लखनऊ चैप्टर के प्रयासों को. मैं जानता हूँ यह संस्था आपके, केवल जी के, मनोज जी के और ब्रह्मचारी जी के योग्य हाथों में खूब पनपेगी और नयी ऊँचाईयों को छूएगी. सादर शुभकामनाएँ.   

आदरणीय दादा

        आपके द्वारा प्रशस्त पथ  पर हम सब चलने का प्रयास कर रहे है i आपके न रहने से उत्तरदायित्व बहुत बढ़ जात्ता है  i  हम मिशाल तब तक प्रज्वलित रखने का सतत प्रयास करते रहेंगे जब तक वह आपके वरद  हाथो में फिर से न पहुच जाये i सादर i

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )

११२१२     ११२१२       ११२१२     ११२१२  मुझे दूसरी का पता नहीं ***********************तुझे है पता तो…See More
46 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"आदरणीय रवि भाई , वाह ! बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है , दिली बधाई स्वीकार करें "
49 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदरणीय  निलेश भाई  हमेशा की तरह अच्छी ग़ज़ल हुई है,  हार्दिक  बधाई वीकार…"
52 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण  भाई , अच्छी ग़ज़ल कही , बड़ी कठिन रदीफ़ चुनी आपने , हार्दिक  बधाई आपको "
55 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post करेगी सुधा मित्र असर धीरे-धीरे -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , अच्छी ग़ज़ल हुई है , बधाई स्वीकार करें मक्ता शायद अपनी बात नहीं कह पा रहा…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति हमेशा प्रेरणा दाई  होती है , ग़ज़ल के कुछ शेर आपको अच्छे…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
22 hours ago
Chetan Prakash commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदाब, आदरणीय,  ' नूर ' मैंने आपके निर्देश का संज्ञान ले लिया है! "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"बहुत बहुत आभार आ. सौरभ सर ..आप से हमेशा दाद उन्हीं शेरोन को मिलती है जिन पर मुझे दाद की अपेक्षा…"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदरणीय नीलेश भाई,  आपकी इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद और कामयाब अश'आर पर…"
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. शिज्जू भाई "
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. चेतन प्रकाश जी,आपको धुआ स्वीकार नहीं हैं तो यह आपका मसअला है. मैंने धुआँ क़ाफ़िया  प्रयोग में…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service