For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक सत्यान्वेषी ,
मुक्ति का अभिलाषी
था उर्ध्वारोही।
कर रहा था आरोहण
पर्वत की दुर्लंघ्य ऊचाईयां का।
पर्वत से उतरती नदी ने कहा :
मैदानों में तो जीवन कितना सरल , सुगम है,
यहाँ जीवन है कितना दुष्कर।
अविचलित रहकर इसपर
दिया उसने उत्तर
मैंने भीतर जाकर देखा है,
वाह्य सौंदर्य तो धोखा है।
मैदानों में जीवन सरल है,
पर राह लक्ष्य की वक्र है।
जीवन रथ मे लगे
कर्म फल के दुष्चक्र हैं।
मैं राह सीधी लेना चाहता हूँ।
इसलिए नीचे से ऊपर जाना चाहता हूँ ।
दोनों महार्णव मिलन को आतुर
चल दिये,
अपने अपने यौक्तिक मार्ग पर ।
नदी नीचे जाकर लवण बन गयी।
........
मौलिक एवं अप्रकाशित 
……….
MOB No. 08873257666

Views: 657

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Neeraj Neer on February 25, 2015 at 3:40pm

बहुत बहुत धन्यवाद अदरणीय हरी प्रकाश जी ॥ 

Comment by Neeraj Neer on February 25, 2015 at 3:40pm

आभार आपका आदरणीय जितेंद्र भाई । इधर समय नहीं मिल पाया ॥ 

Comment by Neeraj Neer on February 25, 2015 at 3:39pm

इस प्रोत्साहन हेतू आपका हार्दिक आभार अदरणीय खुर्शीद जी । 

Comment by Hari Prakash Dubey on February 25, 2015 at 10:49am

आदरणीय नीरज जी ,सुन्दर प्रस्तुति ,बधाई आपको !

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 25, 2015 at 10:46am

आदरणीय नीरज जी, बहुत समय के बाद आपकी रचना पढने को मिली. इस गहन प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by khursheed khairadi on February 25, 2015 at 9:58am

मैंने भीतर जाकर देखा है, 
वाह्य सौंदर्य तो धोखा है। 
मैदानों में जीवन सरल है, 
पर राह लक्ष्य की वक्र है। 

आदरणीय नीरज जी ,बहुत सुन्दर पंक्तियाँ हैं |हार्दिक बधाई स्वीकार करें |सादर अभिनन्दन |

Comment by Neeraj Neer on February 25, 2015 at 8:48am

हार्दिक धन्यवाद इस प्रोत्साहन हेतू आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी ॥ 

Comment by Neeraj Neer on February 25, 2015 at 8:47am

आभार आपका महर्षि त्रिपाठी जी ॥ 

Comment by Neeraj Neer on February 25, 2015 at 8:47am

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव साहब आपकी सलाह शिरोधार्य है। हार्दिक आभार आपका। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 25, 2015 at 1:55am

आदरणीय नीरज जी इस सुन्दर प्रस्तुति पर आपको बहुत बहुत बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
15 hours ago
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service