परम आत्मीय स्वजन,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 56 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा -ए-तरह मशहूर शायर जनाब कैफ भोपाली साहब की ग़ज़ल से लिया गया है | पेश है मिसरा ए- तरह ....
"दिलों के खेल में खुद्दारियाँ नहीं चलतीं "
1212 1122 1212 22
मुफाइलुन फइलातुन मुफाइलुन फेलुन/फइलुन
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 27 फरवरी दिन शुक्रवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक 28 फरवरी दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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ग़ुरूर ,बुग़्ज़, अदावत,फ़रेब,मक्कारी
हमारे साथ ये बीमारियाँ नहीं चलतीं
"समर" मैं झूट के क़दमों में सर झुका देता
तो मेरे क़त्ल की तय्यारियाँ नहीं चलतीं
इस मनोहारी गजल पर आपको हार्दिक बधाई आ.समर कबीर जी |
बहुत खूब समर साहब।
हाँ किसी की भी अय्यारियाँ नहीं चलतीं
ख़ुदा के सामने मक्कारियाँ नहीं चलतीं
हमारे दर्द को कैसे समझ सकेगा भला
वह जिस के दिल पे कभी आरियाँ नहीं चलतीं
यहाँ तो सर को झुकाने से जीत मिलती है
"दिलों के खेल में ख़ुद्दारियाँ नहीं चलतीं"
ये अश’आर बेहद खूबसूरत लगे। दाद कुबूल कीजिए
वहाँ किसी की भी अय्यारियाँ नहीं चलतीं
ख़ुदा के सामने मक्कारियाँ नहीं चलतीं
यहाँ तो सर को झुकाने से जीत मिलती है
"दिलों के खेल में ख़ुद्दारियाँ नहीं चलतीं"
"समर" मैं झूट के क़दमों में सर झुका देता
तो मेरे क़त्ल की तय्यारियाँ नहीं चलतीं
वाह सर वाह क्या खूबसूरत ग़ज़ल कही है बधाई
बहुत बढ़िया गजल ... बहुत सुंदर भाव समेटे हैं आपने अपनी गजल में मान्यवर ॥
मिटादी उम्र रवादारियाँ निभाने में
ये क्या कहा कि रवादारियाँ नहीं चलतीं................ क्या कहने
और क्या खूब गिरह लगाई है
यहाँ तो सर को झुकाने से जीत मिलती है
"दिलों के खेल में ख़ुद्दारियाँ नहीं चलतीं"..... हार्दिक बधाई स्वीकारें ....
वहाँ किसी की भी अय्यारियाँ नहीं चलतीं
ख़ुदा के सामने मक्कारियाँ नहीं चलतीं
क्या मत्ला है सर वाह..!
समर" मैं झूट के क़दमों में सर झुका देता
तो मेरे क़त्ल की तय्यारियाँ नहीं चलतीं
और मक्ता कि तो बात ही क्या ..दिल जीत लिया कबीर जी वाह! हार्दिक बधाइयाँ!
आदरणीय समर कबीर जी, गज़ल के सभी अश'आर बाकमाल
वहाँ किसी की भी अय्यारियाँ नहीं चलतीं
ख़ुदा के सामने मक्कारियाँ नहीं चलतीं - इस शे'र के लिए खास दाद कबूल करें
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