For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तेरे नाम का लिये आसरा - अनुभव एवं काव्य प्रतिभा का संग्रहणीय संकलन

हमेशा से मेरा ये मानना है कि ज़िन्दगी मुसलसल हर सांस के साथ फ़ना होती है और हर सांस के साथ शुरू । किसी काम के करने का मुनासिब वक्त कौन सा है? मेरा जवाब है जब शुरू करो वही वक्त मुनासिब है। ठीक उसी प्रकार सीखने की उम्र क्या है?  बड़ा बेतुका सवाल है हर कोई जानता है कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती। श्री गिरिराज भंडारी जी उन लोगों में हैं जिनमें सीखने एवं समझने की प्रवृत्ति नैसर्गिक है, ऐसे लोग ये नहीं देखते कि सिखानेवाला कौन है बड़ा या छोटा। ये वही शख़्सियत है जिन्होने रिटायरमेंट की उम्र में ग़ज़ल सीखना शुरू किया।  ग़ज़ल की बारीकियाँ जहाँ से जिससे सीखने को मिली सीखी, उन्होंने एक विद्यार्थी की तरह हर पाठ को ग्रहण किया। उनके अनुभव एवं काव्य प्रतिभा को जब ग़ज़ल की शिल्प का साथ मिला तो एक के बाद एक खूबसूरत रचनायें सामने आईं हालाँकि उन्हें अब भी एक लम्बा सफर तय करना है। उनकी पहली किताब तेरे नाम का लिये आसरा से जब मैं गुज़रा तो ऐसा लगा मानो पल भर में मैंने एक उम्र जी ली हो। उम्र के साथ आने वाला सहज तज़्रिबा, परिस्थितियों को समझने की खूबी यह उनकी शख्सियत की कुछ विशेषतायें हैं। उनकी सबसे बड़ी ताकत उनकी सकारात्मकता है, उनकी आशावादिता इस किताब पहले शे’र से ही झलकती है

“प्यास में अब पानी न मिले शबनम ही सही

ख्वाब तो हो सच्चा न सही मुबहम ही सही

 

कभी कभी इनकी ग़ज़लें तपती धूप में सर्द फुहारों सी लगती है। बड़ी मुलायमियत से अपनी बात रखते हैं कि दिल बेसाख्ता वाह कर उठता है।  उनकी सादादिली, सकारात्मकता का एक उदाहरण ये दो अशआर हैं-

“ये कैसी रश्मियाँ हैं धूप की झुलसा रही हैं

मगर किस सिम्त से ठंडी हवायें आ रही हैं

 

“ज़िन्दगी तो रोज़ आँसू बाँटती है

हम चुराते हैं हँसी हर वाकिये से

 

उनके जीवन में संघर्ष तो बहुत था आसानी से उस दौर से निकल भी आये संभवतः यही वजह थी सकारात्मकता उनकी रचनाओं में उभर के आती है। उनका अनुभव कभी कभी दार्शनिकता का पुट लिये ग़ज़ल में, किसी शेर में सहज ही आ जाता है-

“ज़िन्दगी का हाल तुमको क्या बताऊँ दोस्तों

पहले गुज़री पाप करते बाकी अब धोते हुये

 

वे सीधी सच्ची बातें ही कहते हैं बहुधा ये हमारे दैनिक जीवन से जुड़े होते हैं। ये अपने आपको मजबूत करने के लिये तकलीफों से गुज़रने से भी गुरेज नहीं करते

“पैरों को मजबूतियाँ भी चाहिये कुछ

चल ज़रा काँटो पे चलके देखते हैं

 

काँटो पर चलना यानि मुसीबतों से वाबस्ता होना जो हर सूरत में एक इंसान को नापसंद होता है, शायद यही वजह है कि वे सच्चाई को मानते हुये हद में रहते हुये खुद को आजमाने की बात करते हैं।

नज़ाकत के साथ ज़रुरत के समय एक दृढ़ता भी उनके स्वभाव में झलकती है ये दृढ़ता कुछ आक्रामकता लिये हुये है-

 “वो जिसने कल मेरे ख्वाबों को चीर डाला था

मैं उसके आज ही अरमान सब कुतर आया

वक्त के हिसाब से इंसान को थोड़ा तल्ख होना ही पड़ता है या कहूँ इंसान में स्वाभाविक रूप से तल्खी आ ही जाती है।

इनके कुछ और अशआर देखिये

“और भी हैं आसमाँ इस आसमाँ में

एक अपना भी जहाँ है इस जहाँ में”

 

“अबस उम्मीद में बैठे हो सूरज से कि ठंडक दे

तुम्हें ये जानना होगा जलाना उसकी फितरत है”

 

“फिर वही खत किताबें वही गुफ्तगू

वक्त ज्यूँ प्यार का फिर तराना हुआ”

 

कुछ इसी तरह अलग अलग रंगों से सजी हुई अलग अलग मिजाज़ की ग़ज़लों का संग्रह है तेरे नाम का लिये आसरा जिसे अंजुमन प्रकाशन ने साहित्य सुलभ संस्करण के तहत अत्यंत कम दाम में मुहैया कराया है । अंजुमन प्रकाशन ने रचनाकारों को प्रोत्साहित करने के लिये एक अच्छी पहल की है।

 

शिज्जु शकूर

रायपुर (छग)

9303436440

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 806

Replies to This Discussion

’तेरे नाम का लिये आसरा’ मात्र एक किताब नहीं जिसमें ग़ज़लें हैं, बल्कि तिल-तिल जिये अनुभवों की यह एक शाब्दिक परिणति है जिनका शिल्प ग़ज़लों का है.  जब किसी ग़ज़ल की किताब में ग़ज़लकार के तौर पर नाम गिरिराज भण्डारी का हो तो फिर उनको जानने वाले जानते हैं कि उस किताब में गहन अनुभव, तोषकारी तार्किकता और सतत अभ्यास के संस्कार शब्दों में करीने से ढले मिलेंगे.

आदरणीय गिरिराज भाई की इस पहली पुस्तक पर भाई शिज्जू शकूर की समीक्षा हर तरह से मार्गदर्शक है, पठनीय है.  न कोई अतिशयोक्ति, न कोई अनावश्यक खींचातानी. यह समीक्षा उन पाठकों के लिए सही सुझाव की तरह है जो किसी किताब को पढ़ने के पूर्व समीक्षाओं से किताब पर अंदाज़ मिल पाने की अपेक्षा पाले रहते हैं.

इस किताब के मुताल्लिक एक वाकया साझा करना प्रासंगिक समझ रहा हूँ.
हलद्वानी के हालिया दौरे के दौरान मैं कई अदीबों के साथ था. मशहूर ग़ज़लकार मारुफ़ रायबरेलवी की हाथों में ’तेरे नाम का लिये आसरा’ देख कर अच्छा लगा. बातचीत किताब की ग़ज़लों पर चल रही थी. मारुफ़ रायबरेलवी का कहना था कि ग़ज़लकार की अंतर्दृष्टि ने बहुत चौंकाया है. ग़ज़ले बाबहर हैं. सर्वोपरि इनमें ग़ज़लियत है. इतना उम्दा ग़ज़लकार आजतक उनकी नज़रों से कैसे छिपा रह गया था ? वीनस भाई ने कहा कि इस ग़ज़लकार की कुल ’लेखकीय ज़िन्दग़ी’ केवल तीन वर्षों की है. अब मारुफ़ भाई ये मानने को कत्तई तैयार ही नहीं. वापसी के दौरान ट्रेन में भी उन्होंने इस किताब के कई शेर उद्धृत किये जिनपर बेसाख़्ता ’वाह’ निकल पड़ रहा था. कहना न होगा, मारुफ़ भाई ओबीओ पर तारी साहित्यिक माहौल और यहाँ के ’सीखने-सिखाने’ की बन गयी इतनी उन्नत परिपाटी पर बार-बार आश्चर्य प्रकट कर रहे थे.

अपने आत्मीय और अनन्य आदरणीय गिरिराजभाई की लेखकीय क़ामयाबी की मैं तहेदिल से दुआ करता हूँ. और जिस स्पष्टता के साथ भाई शिज्जू शकूर ने इस किताब से सम्बन्धित अपनी बातें साझा की हैं, मैं उन्हें हार्दिक शुभकामनाएँ देता हूँ.
शुभेच्छाएँ

आदरणीय सौरभ भाई , गज़ल संग्रह पर आपकी आत्मीय प्रतिक्रिया के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ । मै  दिल से मानता और स्वीकार करता हूँ  कि , अगर मेरी रचना मे कुछ भी शुभ है , सुन्दर है तो इस सफलता में  सबसे आखिरी हक़ मेरा है , वो भी बाँटने से बचा तो । अगर संग्रह मे कुछ भी सराहना योग्य है तो इसपे आपका , आ. वीनस भाई जी का और समस्त ओ बी ओ परिवार का हक़ पहले है । और अगर कुछ कमियाँ हैं , जो कि मै जानता हूँ कि हैं , वो मेरे सीखने में रह गई कमियाँ हैं  । मैं आपको  और आपके  माध्यम से  समस्त  ओ बी ओ परिवार को विश्वास दिलाता हूँ कि मै अभी भी सीखने से अलग नहीं हुआ हूँ और न ही जीवन भर होऊँगा , प्रयास रोज़ ब रोज़ ज़ारी है , कि कुछ और कर पाऊँ । सफलता मै ईश्वराधीन मानता हूँ ॥ मै आशा करता हूँ कि आगे कुछ और अच्छा कर पाऊँगा ॥

आदरणीय सौरभ भाई , वाकया सुना कर आपने सच में मेरी हौसला अफज़ाई ही नहीं की, मेरी एक चिंता भी दूर कर दी , जिसे मै यहाँ नहीं कह पा रहा हूँ ॥ आपका हृदय से आभारी हूँ ॥  

आदरणीय शिज्जु भाई , मेरे प्रथम प्रयास मे आपको इतना कुछ कहने लायक और अच्छा कहने लायक मिला , ये आपकी मुहब्बतों का ही उदाहरण   है । हौसला अफज़ाई का शुक्रिया । उन वाक्यों के लिये और भी आभारी हूँ जो आपने मेरे सीखने की प्रवृत्ति के लिये कहा है , आपकी इस समझ के सामने नत हूँ ।

सच है , मै जीवन को सीखने की एक  सतत प्रक्रिया मानता हूँ , मुझे मेरी रचनाओं की कमियों का भी भान है , अभी इस मंच के गुणिजनो से बहुत कुछ सीखना और सुधरना है । आप लोगों के मार्गदर्शन मे आगे कुछ और अच्छा कर पाऊँगा इसका मुझे पूर्ण विशवास है ।

ग़ज़ल संग्रह मे कुछ तथ्य की बात खोज पाने के लिये आपका सदा आभारी हूँ ॥

आदरणीय शिज्जु भाई जी इस स्पष्ट समीक्षा के लिए बधाई और हार्दिक धन्यवाद भी.

आदरणीय गिरिराज सर के संकलन को कई दफे पढ़ा है कभी कोई ग़ज़ल तो कभी कोई ग़ज़ल.... हर बार नए अनुभव हुए ... नए अहसास के साथ फिर गुनगुनाता रहा...

आपकी समीक्षा को पिछले दो दिनों से देख रहा हूँ कई बार  कमेंट्स करना चाह लिए बैठा किन्तु इस ख़ुशी को शब्द ही नहीं दे पा रहा था... आज बिना कुछ सोचे समझे लिखना शुरू कर दिया ...

जब से मंच पर आया हूँ आदरणीय गिरिराज सर से बहुत प्रभावित हूँ और सही कहूं तो उनका अनुगामी बन गया हूँ ... उनकी शुरूआती  ग़ज़लों से लेकर आज तक पोस्ट  हो रही सभी गज़लें पढ़ रहा हूँ ... बीच में उनकी अतुकांत कविता पढ़ी तो उस पर भी हाथ आजमाया.... उनके नक़्शे-कदम पर चलने का लगातार प्रयास करते रहता हूँ. मेरे हठात 'सर' संबोधन पर सदैव विरोध दर्शाते है और कच्ची ग़ज़ल पर तुरंत बड़ी ही मृदु भाषा में लताड़ लगाते है. ऐसे आत्मीय संबध (जिसे गुरु कहना मंच पर वर्जित है) वाले परम आदरणीय की किताब आई तो बड़ी ख़ुशी हुई लेकिन कहते है कि जिसकी समीक्षा आ जाए वो विशिष्ट और बड़ी किताब होती है वैसा ही कुछ इस समीक्षा को पढ़कर झूम गया हूँ. लग रहा है मेरे लिए ही ये समीक्षा लिखी गई है. सब अपने आप टाइप होता गया है.   इस समीक्षा पर आदरणीय गिरिराज सर शेर से ही आभार व्यक्त करते हुए उनके लफ़्ज़ों में मेरे दिल की बात -

फिर से तेरी सोच में डूबा हुआ हूँ 

तू ही तू छाया मेरे चिंतन मनन में 

फिर से आँखे टिक गई है शून्य में अब 

कुछ नए सपने बसा के फिर नयन में 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Vikas is now a member of Open Books Online
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
Monday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी छन्द पर उपस्तिथि और सराहना के लिए हार्दिक आभार आपका। दीपोत्सव की हार्दिक…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service