For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-58

परम आत्मीय स्वजन,

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 58 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह उस्ताद-ए-मोहतरम जनाब फरहत एहसास साहब की एक बहुत ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल से लिया गया है|

 

"मेरा इश्क भी कोई इश्क है कि न खुश करे न मलाल दे"

11212 11212 11212 11212

मुतफाइलुन मुतफाइलुन मुतफाइलुन मुतफाइलुन

(बह्र: कामिल मुसम्मन सालिम )
रदीफ़ :- दे
काफिया :- आल (मलाल, ज़वाल, निकाल, उछाल  आदि )

 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 24 अप्रैल  दिन शुक्रवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक 25 अप्रैल दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 24 अप्रैल दिन शुक्रवार  लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 10050

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आदरणीय बागी सर ग़ज़ल के प्रयास पर आत्मीय सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार।

आदरणीय मिथलेश वामनकर सर, क्या ख़ूबसूरत ग़ज़ल कही आपने! वाह.. बधाईयाँ.. बधाईयाँ..

आदरणीय सुनील भाई जी सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार।

आदरणीय मिथिलेश जी एक मुकम्मल ग़ज़ल पेश करने के लिए दिली मुबारकबाद कबूल कीजिये| शेर दर शेर अपनी राय हाज़िर कर रहा हूँ

तू बड़ा रहीम-ओ-करीम है, मेरा दर्द दिल से निकाल दे

मैं तो इक सदी से हूँ आइना, मुझे कोई अक्स-ए-जमाल दे...............शानदार मतला ..बहुत खूब 

 

हैं अजब-गज़ब तेरी ताकतें, जिसे दे तू औज-ए-कमाल दे

जिसे चाहे कोह-ए-वबाल दे, जिसे चाहे क़ूत-ए-हलाल दे............वह वाह ...कमाल का शेर है 

 

कि नसीब से जो तरक्कियां, जिसे मिल गई वही बदगुमां

जिसे जीत कर भी न हो गुमां, कोई हो अगर तो मिसाल दे.........पहले मिसरे में आया कि भर्ती का है और काफिये रदीफ़ भी शेर के साथ न्याय नहीं कर रहे हैं ..नज़रे सानी कर लें 

 

मेरे रहबरों के फरेब से, जो बचा सके मुझे राह में

किसी मोड़ पे जो उठा सकूं, मुझे ऐसा हर्फ़-ए-सवाल दे...वह वाह वाह ...बहुत खूब 

 

तेरे नूर से मेरी जिंदगी, रही मुद्दतों से ही अजनबी

मुझे उम्र भर तो न होश था, मुझे आज अहद-ए-ख़याल दे...बहुत खूब 

 

ये ख़ुदा जमीं के बने हुए, तेरे नाम से जो जफ़ा करें,

इन्हें हो गया है गुमान-ए-बद, इन्हें कोई खौफ़-ए-ज़वाल दे.........बेहतरीन शेर .आइना दिखाने के बात सलीके से कही गई है 

 

न तो दर कोई न तो खिड़कियाँ, है अजीब-सा ये मकान-ए-जां

तुझे पा सकूं किसी रोज़ मैं, मुझे कोई बाब-ए-विसाल दे............बहुत खूब 

 

‘मुझे ये सिफ़त ही रहे अता’- मेरी हर ग़ज़ल की यही दुआ  

‘कहीं आंधियों में चराग़ को, मेरे लफ्ज़ दस्त-ए-मजाल दे’....यह शेर इस ग़ज़ल का सबसे अच्छा शेर हो सकता है अगर इस हिज्जे को सुधार लिया जाये "मेरे लफ्ज़ दस्त-ए-मजाल दे"........

 

मुझे ज़िन्दगी का वो फ़लसफा, नये मौसमों ने सिखा दिया

कभी रौशनी-सी बिखेर दे, कभी फूल कोई उछाल दे...वाह वाह वाह...पहले मिसरे के वो को ये करने से बात और निखर कर आ रही है 

 

न सराब दे, न तो ख़्वाब दे, मेरी बूँद भर की है तिश्नगी

मुझे जाम-ए-जम की न आरज़ू मुझे मेरा जाम-ए-सिफ़ाल दे......शेर तो अच्छा है पर "जाम-ए-जम" का प्रयोग सही है या नहीं कोई उर्दू का जानकार बता सकता है 

 

न रहे खफ़ा न करे वफ़ा, यहाँ कुर्बतों में भी दूरियाँ

“मेरा इश्क भी कोई इश्क है, कि न खुश करे न मलाल दे"....वाह वाह गिरह भी खूबसूरती के साथ लगाई है ..बहुत खूब 

आदरणीय राणा सर सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार। आपके द्वारा विस्तृत प्रतिक्रिया दी गई थी जो मैंने पढ़ी थी किन्तु अब वो दिखाई नहीं दे रही है. आपके द्वारा दिए गए मार्गदर्शन का प्रत्युत्तर याददाश्त के आधार पर दे रहा हूँ -

1. कि नसीब से जो तरक्कियां, जिसे मिल गई वही बदगुमां

     कि भर्ती का लग रहा है जिसे इस तरह कहने का प्रयास निवेदित है- जो नसीब से भी तरक्कियां, जिसे मिल गई वही बदगुमां

2. ‘कहीं आंधियों में चराग़ को, मेरे लफ्ज़ दस्त-ए-मजाल दे’----  इस मिसरे में  "मेरे लफ्ज़ दस्त-ए-मजाल दे" हिज्जे को सुधारने हेतु आपने कहा है यदि 'लफ़्ज़' में फ़् और ज़ दोनों में नुक्ता लगाने से सम्बंधित है तो "मेरे लफ़्ज़ दस्त-ए-मजाल दे" सही हिज्जे में निवेदित कर रहा हूँ और यदि दस्त-ए-मजाल से संबधित है तो इसका प्रयोग मैंने साहस के अर्थ में किया है.

3. मुझे ज़िन्दगी का वो / ये फ़लसफा, नये मौसमों ने सिखा दिया---- इस मिसरे में वो के स्थान पर ये सही रहेगा आपने सही कहा.

4.मुझे जाम-ए-जम की न आरज़ू मुझे मेरा जाम-ए-सिफ़ाल दे----इस मिसरे में  "जाम-ए-जम" का प्रयोग सही है या नहीं ?एक जादुई प्याला,  मैंने इसका प्रयोग ऐश्वर्य के प्रतीक के रूप में किया है. 

सादर 

आदरणीय समर कबीर जी  "जाम-ए-जम" का प्रयोग सही है या नहीं ?

आपसे मार्गदर्शन का निवेदन है 

ईरानी बादशाह जमशेद का एक जादुई प्याला,  मैंने इसका प्रयोग ऐश्वर्य के प्रतीक के रूप में किया है.

सादर 

मेरे लफ्ज़ दस्त-ए-मजाल दे में होना तो चाहिए था मेरे अलफ़ाज़ दस्ते मजाल दें ..पर वो नही है लफ्ज़ के साथ मेरे लगाना और फिर अंत में "दें" कि जगह दे खटक रहा है| शायद अब आपको मेरा कमेन्ट भी देखे ..कुछ तकनिकी समस्या है 

किसी की रचना पर हुआ  सबसे विस्तृत कमेन्ट गायब हो जाए तो वैसे ही हताश जाता है रचनाकार.... खैर अब आपका कमेन्ट दिख रहा है. देखकर अच्छा लगा 

आपने सही कहा ---मेरे--- का प्रयोग गलत है. पुनः निवेदित है-

मेरा/कोई/ लफ्ज़ दस्त-ए-मजाल दे  

मेरा/कोई  शेर दस्त-ए-मजाल दे 

मेरा / कोई हर्फ़ दस्त-ए-मजाल दे 

आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो मुशायरे के इतने सुन्दर आगाज के लिए आपको हार्दिक बधाई / आज आपके किसी भी शेर को बिशेस का दर्जा देना बेमानी होगा। कोई शेर किसी से कमतर नहीं है / बहुत कुछ सीखने को मिला। उर्दू के शब्दों की जादूगरी देखने लायक है। कई बार पढ़ा। इस रचना के लिए आपकी जितनी तारीफ़ की जाए कम है।मेरी तरफ से हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर

आदरणीय आशुतोष जी आपकी आत्मीय प्रशंसा और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.

बस वाह वाह और वाह.... बहुत ही उम्दा आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी 

आदरणीय नीरज जी आपकी सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय अजय अजेय जी,  मेरी चाचीजी के गोलोकवासी हो जाने से मैं अपने पैत्रिक गाँव पर हूँ।…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,   विश्वासघात के विभिन्न आयामों को आपने शब्द दिये हैं।  आपके…"
1 hour ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 180 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
2 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"विस्तृत मार्गदर्शन और इतना समय लगाकर सभी विषयवस्तु स्पष्ट करने हेतू हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी।…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। पंचकल त्रिकल के प्रयोग…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय अजय अजेय जी, आपकी प्रस्तुति के लिए बधाई के साथ-साथ धन्यवाद भी। कि, इस पटल पर, इस खुले आयोजन…"
3 hours ago
Chetan Prakash commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"वाकई  खूबसूरत शुद्ध हिन्दी गजल हुई, आदरणीय! "कर्म हम रणछोड  के अनुसार भी करते…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीया रक्षिता जी,  आपकी इस कविता में प्रदता शीर्षक की भावना निस्संदेह उभर कर आयी…"
5 hours ago
Chetan Prakash commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदरणीय 'नूर'साहब,  मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार ग़ज़ल का प्रत्येक शेर की विषय - वस्तु…"
7 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"धन्यवाद भाई लक्ष्मण धामी जी "
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service