आदरणीय साहित्य प्रेमियो,
सादर अभिवादन ।
पिछले 54 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलमआज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :
"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-55
विषय - "अपेक्षाएँ"
(मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, और उसके आचरण और व्यवहार को प्रभावित करती हैं उसकी अनगिन अपेक्षाएँ, कुछ अपेक्षाएँ वो रखता है समाज से, और कुछ अपेक्षाएँ समाज को होती हैं हर मनुष्य से. वैयक्तिक, व्यक्तिगत, सामाजिक, राजनैतिक, आध्यात्मिक, कार्मिक आदि-आदि अपेक्षाओं के इस ताने-बाने से बुने जाल को चलिए टटोलते हैं और देते हैं उसे कुछ शब्द....)
आयोजन की अवधि- 8 मई 2015, दिन शुक्रवार से 9 मई 2015, दिन शनिवार की समाप्ति तक (यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)
बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए.आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.
उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --
तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
हाइकू
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)
अति आवश्यक सूचना :-
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर एक बार संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.
आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है.
इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 8 मई 2015, दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा)
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मंच संचालिका
डॉo प्राची सिंह
(सदस्य प्रबंधन टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.
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दूसरी प्रस्तुति - आयुर्वेद से अपेक्षाएँ कुछ ज़्यादा बढ़ गईं
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सभी धर्म के लोगों में, नई आस जगाने आया है।
अब गूँजेगी किलकारी, विश्वास दिलाने आया है॥
चारो धाम सब तीरथ भी, हम दो-दो बार हो आये हैं।,
व्रत उपवास किये बरसों, कई रात भभूत लगाये हैं।।
शादी की सिल्वर जुबली है, पर पिता नहीं बन पाये हैं।
संतान सुख पाने के लिए, बाबा की शरण में आये हैं॥
धन्यवाद सब नेताओं को, बीज की बिक्री बढ़ गई।
पुत्र जीवक दवा आजकल, सब की नज़र में चढ़ गई॥
युवा प्रौढ़ बुजुर्ग सभी, अपनी किस्मत चमकायेंगे।
उम्र में दादा दादी की, मम्मी- पापा बन जायेंगे॥
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मौलिक एवं अप्रकाशित
वाह! सर, कमाल का कटाक्ष किया है आपने प्रस्तुति में. बहुत-बहुत बधाई आपको
सामयिक रचना अच्छी लगी , मेरा प्रयास सफल हुआ। हार्दिक धन्यवाद जितेन्द्र भाई
आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव सर बहुत अच्छी प्रस्तुति हुई है
हार्दिक बधाई इस रचना के लिए.
आदरणीय मिथिलेश भाई
सामयिक रचना अच्छी लगी , मेरा प्रयास सफल हुआ। हार्दिक धन्यवाद आभार
बहुत सटीक ...सुना है स्वामी जी अब पुत्री जीवक बीज भी लाने वाले हैं ......करो कुछ भी बीज जरूर खाओ ....
आदरणीय मोहन भाई
सामयिक रचना अच्छी लगी , मेरा प्रयास सफल हुआ। हार्दिक धन्यवाद आभार
आपने जिस भोंपू से ऐसा सुन लिया है, आदरणीय, उसे अविलम्ब ’बिलगाऊ बिहाई समाजा’ कर दें.. अन्यथा आपकी कुल प्रासंगिकता पर प्रश्नचिह्न लटक जायेगा.. सादर..
:-))
आ० आयुर्वेद के नव उद्घोष को सार्थक करती कविता . अच्छे व्यंग्यात्मक प्रस्तुति . सादर .
आदरणीय गोपाल भाईजी
ज्वलंत विषय की इस रचना को समय देने और पसंद करने के लिए हृदय से धन्यवाद आभार।
युवा प्रौढ़ बुजुर्ग सभी, अपनी किस्मत चमकायेंगे।
उम्र में दादा दादी की, मम्मी- पापा बन जायेंगे॥
… वाह वाह वाह आदरणीय अखिलेश जी क्या सन्दर्भ उठाया है … बात आपकी लाख टके सही है … जो बात अब तक गुप्त थी वही नेताओं की मेहरबानी से सार्वजनिक हो गयी … पुत्र प्राप्ति हो या न हो बिक्री से फल प्राप्ति तो हो ही जाएगी … हा हा हा।
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