For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

" प्यार " - लघु कथा

"नही! मैं नही करती तुमसे प्यार।" यही कहा था मैंने उस दिन इसी जगह पर, ऐसी ही किसी शाम में।
"करने लगोगी, शादी के बाद।" तुम हॅस पड़े थे।
और फिर चंद हफ्तो बाद ही मैं दुल्हन बनी तुम्हारे घर आ गयी। उसके बाद जब भी तुमने ये सवाल किया मैं चुप रही, अब मन की बात नही बोल सकती थी न। और फिर एक दिन निकल गयी तुम्हारे जीवन से। 'उसी के' साथ जिससे 'मैं' प्यार करती थी।............
..........जल्दी ही लौट आयी थी मैं, उसके प्यार का जहर पीकर पर देर हो चुकी थी उसने मुझसे 'मनचाहा' पा कर मुझे छोड़ दिया था और तुम इसलिये छोड गये क्योंकि तुम मुझे पा कर भी नही पा सके।
अब मैं हूँ और मेरा पछतावा और दिन कट रहे है एक सजा की तरह। हर शाम आ खड़ी होती हूँ दूर दूर तक छाये पहाड़ो के अधेंरे में इसी पेड़ के नीचे। और घिरती रात के साये में दोहराया करती हूँ अक्सर तुम्हारे आखिरी खत में कही ये बात। "हमे प्यार हमेशा उससे करना चाहिये जो हमें चाहता हो उससे हरगिज नही जिसे हम चाहते हो।"

'विरेन्दर वीर मेहता' (मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 726

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 28, 2015 at 2:36am

इस सशक्त लघुकथा के लिए हार्दिक धन्यवाद वीरेन्द्रजी.
शुभकामनाएँ

Comment by Shubhranshu Pandey on May 27, 2015 at 9:02pm

आदरणीय विरेन्द्र जी, 

सुन्दर कथा. ज्यादातर ऎसी कथाएं पुरुषों को ले कर लिखी जाती हैं अर्थ फ़िल्म याद आ गयी. 

सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 24, 2015 at 11:50pm

बहुत खुबसूरत और प्रेरक लघुकथा 

पंच लाइन अपना पूरा असर छोड़ती है. 

बधाई आदरणीय  वीरेंदर वीर मेहता जी 

Comment by विनय कुमार on May 23, 2015 at 9:30pm

बहुत सुन्दर लघुकथा आदरणीय , लेकिन क्या कीजियेगा " दिल तो है दिल , दिल का ऐतबार क्या कीजै , आ गया जो किसी पे प्यार "। बहुत बहुत बधाई..

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on May 23, 2015 at 4:21pm

आदरणीय विनोद खनगवाल जी कथा पर स्नेह भरी प्रतिक्रिया देने के लिए आप का हार्दिक आभार !

Comment by विनोद खनगवाल on May 23, 2015 at 3:56pm
एक प्यार करने वाले की आपबीती लघुकथा के माध्यम से पढकर मन को अच्छा लगा। बधाई स्वीकार करें विरेन्द्र वीर मेहता जी।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on May 23, 2015 at 12:37pm

कथा पर प्रोत्साहित प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी !

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on May 23, 2015 at 12:25pm

आदरणीय डॉ, गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी कथा पर आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया और हौसला अफजाई के लिए मैं तहे दिल से आप का आभार हूँ.

जी आदरणीय सर  प्यार अँधा ही होता है! .... और जब सच से सामना होता है तभी वास्तविकता का ज्ञान होता है और अक्सर तब तक समय बीत चूका होता है

Comment by Shyam Narain Verma on May 23, 2015 at 12:25pm
 प्रभापूर्ण सुंदर लघु कथा के  लिए बधाई 
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 23, 2015 at 12:11pm

वाह ----------मेहता जी आपकी पञ्च लाईन इस जगह बहुत प्रभावी है -हमे प्यार हमेशा उससे करना चाहिये जो हमें चाहता हो उससे हरगिज नही जिसे हम चाहते हो।

नोट-  प्यार अंधा भी तो होता है . वहां बुद्धि  हैरान रहती है .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
9 hours ago
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"गजल**किसी दीप का मन अगर हम गुनेंगेअँधेरों    को   हरने  उजाला …"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service