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लघुकथा पर आपकी उपस्थिति मनोबल को दो-गुना कर देती है आदरनीय शुभ्रांशु जी. आपका ह्रदय से आभारी हूँ
सादर!
इस कथा को पाठक अपने अपने ढंग से लेगा पर यही कथा का वैशिष्ट्य भी है , सादर ,
लघुकथा पर आपका आशीर्वाद मिला, लघुकथा धन्य हुई आदरणीय डा.गोपाल जी. आपका आत्मीय आभार
सादर!
बहुत बढ़िया लघु कथा जितेन्द्र भैया अंतिम पंक्ति में जो आ० योगराज जी ने जो सुझाव् दिया वही मैं भी सोच रही थी इस शानदार लघु कथा के लिए दिल से बधाई
आपकी स्नेहिल उपस्थिति व् सराहना व् मार्गदर्शन के लिए आपका आभारी हूँ ,आदरणीया राजेश दीदी
सादर!
आदरणीय जितेन्द्र जी बहुत बढ़िया लघुकथा हुई है
कथ्य तो प्रभावकारी है ही और अपने मर्म को अभिव्यक्त करने में सफल है
किन्तु शिल्प स्तर पर भी कथानक की कसावट बहुत अच्छी हुई है.
हार्दिक बधाई आपको इस प्रस्तुति पर
आपकी साकारात्मक प्रतिक्रिया व् साराहना हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ,आदरणीय मिथिलेश जी
सादर!
// मैं तो औरत हूँ, किन्तु तुम मर्द तो नहीं हो //, मर्द होने का कौन सा पैमाना है ये , यह तो ऐसी औरत ही बता सकती है । आज के मौजूदा हालत पर बहुत अच्छी कोशिश आदरणीय जितेंद्र जी । बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिए..
जितेन्द्र भाईजी यह एक ऐसा विषय है जो बहुत परेशान करता है, एकल परिवार में पले बच्चे अपने परिवार को भी एकल ही रखना चाहते हैं, जिससे बुजुर्गों का आशीर्वाद मिलना समाप्त होता जा रहा है| हमारी सभ्यता और संस्कृति की उन्नत (पुरातन) स्थिति को कोई ढूंढ रहा है तो वो शायद एक लेखक ही है...
इस विषय पर बहुत कुछ कहने की आवश्यकता है, और आपने सच में तीन पंक्तियों में बहुत कुछ कह ही दिया !! बधाई आपको !!
आदरणीय जितेन्द्रजी
संक्षिप्त और आजकल के हालातों को देखते हुए अच्छी कथा हुई। आ. योगराजजी के सार्थक सुझावों पर गौर कीजिए।
हार्दिक बधाई ।
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