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आपसे बधाई पाकर बहुत प्रसन्नता हुयी मिथिलेश वामनकर जी. उत्साह वर्धन के लिए आभार. धन्यवाद .
कथा को समय देने के लिए आभार.. Omprakash Kshatriya जी.
poonam dogra जी दिल ने कहा कुछ कह दो और कह दिया.
शुक्रिया आप का
आदरणीया पूनमजी
इसमें एक सच्चाई है। पर यह क्या हो रहा है शहर की शिक्षित लड़कियों को, तन के सौदे कर नाम नौकरी धन और प्रतिष्ठा प्राप्त करना चाहती हैं। मैकाले की शिक्षा पद्धति हमें कहाँ तक ले आई। एक हाथ ले और एक हाथ दे। योग्यता है नहीं और शायद आगे प्रोफेसर बनकर यही गुर छात्र छात्राओं को सिखायेंगी।
हार्दिक बधाई इस लघु कथा पर।
शायद उन्होंने ताड़ लिया है की चाहे आप में योग्यता हो या न हो, पुरुष की इच्छापूर्ति करने से सहज ही सब मिल सकता है. योग्यता गौण हो गयी है, या यूं कहिये की योग्यता shift हो गयी है. रचना को समय देने के लिए आभार अखिलेश कृष्ण जी.
आदरणीया पूनम जी
शोध के मायाजाल के सत्य को उजागर करती बढ़िया लघुकथा
लघुकथा की कसावट जितना प्रभावित करती है उतना ही अंत एक झटके से गहराई तक सोचने को विवश करता है
इस सफल लघुकथा पर हार्दिक बधाई
एक बहुत संवेदनशील विषय पर बहुत अच्छी प्रस्तुति । क्या क्या कीमत चुकानी पड़ती है इस डिग्री को पाने के लिए लेकिन ये तो सिर्फ एक पहलु है । ये शोषण तमाम विभागों में पदोन्नति इत्यादि के लिए होता रहता है और ये जरुरी नहीं की ये शोषण पुरुष द्वारा ही किया जाए , स्त्रियां भी इस शोषण में पीछे नहीं हैं । एक और पहलु ये भी है की आपसी रज़ामंदी से जब तक दोनों का फायदा हो रहा हो , ये सब चलता है और जैसे ही फायदा ख़त्म , ये सम्बन्ध भी ख़त्म । बहरहाल बहुत बहुत बधाई इस शोषण के एक पहलु को सामने लेन के लिए..
आदरणीय पूनम जी लघुकथा शिल्प की दृष्टि से बहुत ही बढ़िया हुई है, और चुना गया विषय भी एक हद तक बहुत बढ़िया है|
एक शिक्षक होने के नाते, कुछ बातें मैं मेरे अनुभव से कहना चाहूँगा, नाम के आगे डॉक्टर Ph.D. के Viva-Voce के बाद में लगता है, यह कोई बड़ा आयोजन नहीं होता, वरन अपने शोधकार्य के प्रश्नचिन्हों को defense करने और उसे समझाने का प्रयास होता है| इसके पश्चात यदि विश्वविद्यालय दीक्षांत समारोह का आयोजन करता है तो उसमें डिग्री का वितरण होता है, दीक्षांत समारोह बड़ा आयोजन है, लेकिन नाम के आगे डॉक्टर सफलतापूर्वक Viva-Voce के होने के कुछ दिनों बाद ही समिति द्वारा सहमति देने पर लग ही जाता है| अर्थात कोई "आयोजन" नहीं होता |
दूसरा मेरा मानना है कि पहले गाइड ऐसे दुष्कार्य बहुत करते थे क्योंकि उनके हाथ में बहुत कुछ था, लेकिन RTI के जमाने अब गाइड को स्वयं को परेशानी होने लग गयी है, जो अपने शोधार्थियों के साथ दुर्व्यवहार करते हैं| उनके ऊपर कई सारे सवाल खड़े हो सकते हैं| ऐसे एक-दो cases को मैनें स्वयं ने देखा है, जिसमें गाइड के ऊपर आरोप लगा और उसकी तहकीकात में वह आरोप सही पाया गया फिर गाइड का स्वयं का केरियर ही समाप्त हो गया| हालाँकि जो कुछ आपने कहा, यह सब तब पूरी तरह संभव है जब शोधकार्य में ही कुछ कमी हो|
पहचान
कल्लू परेशान है। बेटी की बारात के मात्र चार दिन रह गये हैं।जमा कंपनी के ऑफिस से वह लौट आया है,वहाँ ताला लटका है।लोग कह रहे थे कि कई दिनों से लोग रोज पता करने आते हैं,दिनभर राह देख लौट जाते हैं।बगल का पानवाला पल्लू बोल रहा था कि कंपनी के लोग चम्पत हो हो गये हैं।सारी जमा पूँजी डूबती नजर आयी कल्लू को,सोचने लगा--मति मारी गयी थी मेरी ,माँ ने कहा था कि ढेर लालच में न पड़ कल्लुआ! हे भगवान!लालच के फेर में मैं लाभ के साधन की पहचान न कर सका,रूपये दूना-तिगुना करने का लालच डुबो गया सबकुछ मेरा।
'मौलिक व अप्रकाशित'
लघुकथा कहने का अच्छा प्रयास है भाई मनन कुमार सिंह जी, जिस हेतु शुभकामनाएं । किन्तु रचना प्रदत्त विषय के साथ न्याय नहीं कर पा रही। केवल "पहचान" शब्द का रचना में आ जाना ही काफी नहीं।
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