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बागी जी ! आपको सहृदय धन्यवाद, टंकण की त्रुटियों को इंगित करने की जरूरत है.. सादर ...
इस प्रस्तुति का क्या मतलब है ? इसे किस आधार पर लघुकथा कहा जाय ? क्यों कि यह गद्य रचना कहानी से छोटी है ?
गुरूजी सादर नमस्कार.. आपका प्रश्न मार्गदर्शन की ओर संकेत करता है.. जिसके लिये मै तत्पर हूँ.
नाजरीन!! तू कुछ बोलती क्यूँ नहीं... मै तेरा शौहर हूँ....
तेरा शौहर न सही पर इन बच्चों के बाप के खातिर मुझे बचा ले|... क्या इंसान की पहचान उसके कृत्य के कारण साथ दे पाती है?
भाई शरदजी, क्या आपने इस आयोजन की अन्य प्रस्तुतियों को पढ़ा है ? यदि हाँ तो आपको समझ में आना चाहिये कि मेरा एक पठक के तौर पर इशारा कहाँ है ?
शुभेच्छाएँ
मैं आ० सौरभ भाई जी की बात से सहमत हूँ। रचना लघुकथा के तक़ाज़ों को पूरा नहीं कर रही। कमज़ोर भाषा, बर्तनी में त्रुटियों ने इसे बेहद हल्का बना दिया है।
अच्छी लघु कथा हुई शरद सिंह जी ,जैसे जैसे घटनाक्रम आगे बढ़ता है आगे पढने की रोचकता बढती जाती है थोड़ी छोटी ,कसावट लिए होती तो और प्रभाव शाली होती बहरहाल दिल से बधाई आपको.
लघु कथा -पहचान –
किशन की मॉ की अंतिम इच्छा थी कि किशन कुर्सी वाली नौकरी करे! उसका बाप मुरली रिक्शा चलाता था! परिवार के नाम पर केवल दो ही प्राणी थे! उस दिन किशन पास के शहर में कोई परीक्षा देने गया था! रात तक लौटने की उम्मीद थी,पर अगले दिन भी नहीं आया!
मुरली ने सुना कि कोई रेल हादसा हुआ है! मुरली दौड पडा शहर की ओर! पता चला कि सरकारी अस्पताल में घायलों का इलाज़ चल रहा है ! मरे हुये लोगों की लाशें भी वहीं पर हैं! घायलों में मुरली को किशन नहीं दिखा तो उसकी धडकन बढ गयी! डरते हुए लाशों में तलाशा तो किशन दिखा!
"पहचान लिया ये तुम्हारा ही बेटा है"!
”जी साहब यह हमारा ही किशन है"!
"चलो लिखा पढी करो और ले जाओ"!
"ना साहब, उसकी कोई जरूरत नहीं है"!
"क्या मतलब"!
"साहब, किशन तो चला गया, ये तो मिट्टी है, इसे ले जाकर क्या करूंगा, वैसे भी वहां कोई रोने वाला तो है नहीं"!
मौलिक व अप्रकाशित
बहुत अच्छे विषय पर एक बेहतरीन कोशिश आदरणीय तेज वीर सिंह जी । अंत थोड़ा अस्वाभाविक लगता है क्योंकि अपने दिवंगत पुत्र का अंतिम संस्कार करना शायद आवश्यक होता हैं । बहुत बहुत बधाई प्रेषित है इस लघुकथा पर..
अंत बिलकुल अप्रत्याशित है एक बाप अपने योग्य पुत्र की लाश लेने से इनकार करता है असंभव सा लगता है.
ओह,आखिर पहचान तो लिया, लेकिन इतना गूढ़ विषय|
समाज इसे कभी नहीं स्वीकारेगा कि पिता का मन बेटे का अंतिम संस्कार किये बिना यूं मृत बेटे को लावारिस छोड़ दे|
अपने जवान बेटे की लाश लेने से इंकार करने वाली बात हज़म नहीं हो रही आ० तेजवीर सिंह जी।
कहानी की शुरुआत से ही अपेक्षा बढ़ गई थी कि अंत कुछ अद्द्भुत होगा बस वहीँ चूक गए आप बेटा पहचाना भी और अंतिम संस्कार के लिए लेकर भी नहीं गया इसकी वजह ?इशारों में ही कुछ स्पष्ट की होती तो कहानी जबरदस्त होती
आपको बहुत बहुत बधाई
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