For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"वाह बनर्जी साहब ! आपके बाग़ की खूबसूरती देख़ कर हृदय गदगद हो जाता है ।और हो भी क्यों न ? आपने जो अपने बच्चों की तरह इन्हें सजाने-सँवारने में जीवन लगा दिया ।"

"हाँ लालाजी ।जवानी में यही सोच के रोपे थे कि इनकी छाँव में अपनी जीवन संध्या गुजारूँगा ।सो बस वही कर रहा हूँ ।"

" पर मैंने सुना है , आप सारे पेड़ों के फल पड़ौसियों और रिश्तेदारों में मुफ़्त ही बाँट देते हैं।भला ये क्या मूर्खता हुई , जबकि आपको इन उन्नत किस्मों के बाज़ार में मुँह-माँगे दाम मिल सकते हैं।"

" लालाजी ! अभी आप ही ने तो इन्हें मेरे बच्चे कहा , तो क्या कोई बाप अपनी आत्मा का सौदा कर सकता है ?"

मौलिक व अप्रकाशित ।

Views: 688

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by shashi bansal goyal on July 5, 2015 at 12:07pm
आद0 सौरभ पांडेय जी आपकी सराहना शुभकामना हेतु तहे दिल से आभारी हूँ ।सादर ।
Comment by shashi bansal goyal on July 5, 2015 at 12:05pm
आद0 लक्ष्मण रामानुज जी तहे दिल से शुक्रिया । सादर ।
Comment by shashi bansal goyal on July 5, 2015 at 12:03pm
आद0 कांता जी हृदय से आभारी हूँ । सादर ।
Comment by shashi bansal goyal on July 5, 2015 at 12:02pm
आद0 राजेश कुमारी जी आपकी सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ । सादर ।
Comment by shashi bansal goyal on July 5, 2015 at 11:59am
आद0 कृष्ण मिश्रा जी हार्दिक आभार एवं धन्यवाद ।
Comment by shashi bansal goyal on July 5, 2015 at 11:58am
आद0 विजय शंकर जी मेरा सौभाग्य है जो आपकी सराहना मिली । मैं तहे दिल से आभारी हूँ । सादर ।
Comment by shashi bansal goyal on July 5, 2015 at 11:56am
आद0 विनय जी हार्दिक आभार व धन्यवाद ।
Comment by shashi bansal goyal on July 5, 2015 at 11:55am
आद0 डॉ गोपाल नारायण जी अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार व धन्यवाद ।सादर ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 5, 2015 at 12:29am

आदरणीया शशि बंसलजी, लघुकथा के लिए शुभकामनाएँ.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 18, 2015 at 10:16am

ऐसे समय जब लोग सहिष्णुता खोते जा रहे है ऐसी भावपूर्ण रचनाओं की बहुत आवश्यकता है जो संस्कार स्थापित करने के लिए उचित सन्देश देती हो | लिस लिहाज से रचित  सुंदर  लघु कथा के लिए हार्दिक  बधाई आद शशि बंसल जी | सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tasdiq Ahmed Khan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल जो दे गया है मुझको दग़ा याद आ गयाशब होते ही वो जान ए अदा याद आ गया कैसे क़रार आए दिल ए…"
18 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221 2121 1221 212 बर्बाद ज़िंदगी का मज़ा हमसे पूछिए दुश्मन से दोस्ती का मज़ा हमसे पूछिए १ पाते…"
53 minutes ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेंद्र जी, ग़ज़ल की बधाई स्वीकार कीजिए"
2 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"खुशबू सी उसकी लाई हवा याद आ गया, बन के वो शख़्स बाद-ए-सबा याद आ गया। वो शोख़ सी निगाहें औ'…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको नगर में गाँव खुला याद आ गयामानो स्वयं का भूला पता याद आ गया।१।*तम से घिरे थे लोग दिवस ढल गया…"
4 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221    2121    1221    212    किस को बताऊँ दोस्त  मैं…"
4 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"सुनते हैं उसको मेरा पता याद आ गया क्या फिर से कोई काम नया याद आ गया जो कुछ भी मेरे साथ हुआ याद ही…"
11 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"सूरज के बिम्ब को लेकर क्या ही सुलझी हुई गजल प्रस्तुत हुई है, आदरणीय मिथिलेश भाईजी. वाह वाह वाह…"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

कुर्सी जिसे भी सौंप दो बदलेगा कुछ नहीं-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

जोगी सी अब न शेष हैं जोगी की फितरतेंउसमें रमी हैं आज भी कामी की फितरते।१।*कुर्सी जिसे भी सौंप दो…See More
Thursday
Vikas is now a member of Open Books Online
Tuesday
Sushil Sarna posted blog posts
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service