For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा अंक 59 में सम्मिलित सभी ग़ज़लों का संकलन (चिन्हित मिसरों के साथ)

परम आत्मीय स्वजन

59 वें मुशायरे का संकलन हाज़िर कर रहा हूँ| मिसरों में दो रंग भरे गए हैं लाल अर्थात बहर से खारिज मिसरे और नीले अर्थात ऐसे मिसरे जिनमे कोई न कोई ऐब है|

मिथिलेश वामनकर


खबर है ये झूठी सबा चाहता हूँ
जरा पर मैं ताज़ा हवा चाहता हूँ

अजब रोग दिल को लगा नफरतों का
मुहब्बत की थोड़ी दवा चाहता हूँ

रहा होश में तो बहुत दूर तुझ से
तेरे इश्क का अब नशा चाहता हूँ

किसे आरज़ू है जियादा की साहिब
मैं जब चाहता हूँ जरा चाहता हूँ

मुझे तेरे दर ने पुकारा नहीं है
मगर तेरे घर का पता चाहता हूँ

मुझे आसमां की जरूरत नहीं है
तेरे दिल में थोड़ी जगह चाहता हूँ

बहुत दे चुकी है मुझे ज़िन्दगी तू
करूँ क़र्ज़ तेरा अदा चाहता हूँ

फकीरी की मस्ती तसव्वुफ़ का आलम
यहीं जिंदगी कुल जमा चाहता हूँ

यहाँ रूह मौला सियाही हुई है
यहाँ तीरगी है ज़िया चाहता हूँ

बहुत थक गया हूँ अंधेरों से लड़कर
“चिराग-ए-सहर हूँ बुझा चाहता हूँ”

बड़ी मुद्दतों से कहा कुछ नहीं है
जरा सी मगर मैं सदा चाहता हूँ

___________________________________________________________________________________

दिनेश कुमार

तेरी क़ुरबतों का नशा चाहता हूँ
मैं जीने का कुछ आसरा चाहता हूँ

कभी जिसमें तेरी मुहब्बत रवाँ थी
मैं वो ही दिले मुबतला चाहता हूँ

सुना है कि उल्फ़त तिज़ारत हुई है
तो मैं भी नशाते नफ़ा चाहता हूँ

तू मेरे लिए है ख़ुदा से भी बढ़कर
मैं तेरी रज़ा में रज़ा चाहता हूँ

ब-कद्रे मुक़द्दर सभी को मिलेगा
मैं मेहनत का अपनी मज़ा चाहता हूँ

मुझे सीमो-ज़र की नहीं लालसा है
बुज़ुर्गों की मैं बस दुआ चाहता हूँ

भरी बज़्म में हैं हर इक सिम्त बातिल

मैं सच कहने का हौसला चाहता हूँ

तुम्हें बाग़-ए-रिज़वाँ मुबारक हो ज़ाहिद

मैं अपने लिए मयकदा चाहता हूँ

ग़मे ज़िन्दगी से मुहब्बत है मुझको
ये किसने कहा मैं क़ज़ा चाहता हूँ

मेरी बेकली का ये आलम तो देखो
न मालूम मुझको मैं क्या चाहता हूँ

सदा के लिये मुझको आँखों में भर लो
" चिराग़-ए-सहर हूँ, बुझा चाहता हूँ "

________________________________________________________________________________

गिरिराज भंडारी

न गरजे , जो बरसे घटा चाहता हूँ
मै सह्रा को भी अब हरा चाहता हूँ

लो सुन लो, मुक़द्दर से क्या चाहता हूँ
खुशी से मेरी वास्ता चाहता हूँ

अभी डूब जाऊँ ये मुमकिन नहीं है
हरिक सू अँधेरा घटा चाहता हूँ

जला हूँ, मगर आजमा तो लूँ खुद को
चले आँधियाँ , मैं हवा चाहता हूँ

ये कलियाँ, ये तितली, ये फूल और ख़ुश्बू
जियें बाग़ में वो फ़ज़ा चाहता हूँ

अगर मुज़रिमों की यही हैं सजायें
तो फिर मै सज़ा, बेख़ता चाहता हूँ

दुआयें असर खो रहीं हैं तभी तो
ये दिल कह रहा, बद दुआ चाहता हूँ

जो मुख पृष्ठ में ही रहे उनकी ख़ातिर
ये कहना भी मत हाशिया चाहता हूँ

मुझे आप इंसान माने , न माने
मै भी किसी का बुरा चाहता हूँ

सजावट सलामत रहे बज़्म की, मैं
तेरी बज़्म से अब उठा चाहता हूँ

सिमटने लगा है उजाला मिरा अब
‘ चराग-ए-सहर हूँ बुझा चाहता हूँ ‘

___________________________________________________________________________________

Nilesh Shevgaonkar

तेरे जर-ए-पा मैं जगह चाहता हूँ 
ख़ुदाया! मैं तेरी रज़ा चाहता हूँ.


कहाँ मैं कोई मोजज़ा चाहता हूँ. 
फ़क़त अपने दिल में ख़ुदा चाहता हूँ 
.
न पैराहन-ए-जांनया चाहता हूँ
अनासिर से ख़ुद को रिहा चाहता हूँ. 


मेरी रूह का दम जो घुटने लगा है
ज़रा सी मैं ताज़ा हवा चाहता हूँ.
.
मुझे रख ख़ुदाया तू हल्क़ेमें अपने 
तेरी रहमतों की बक़ा चाहता हूँ. 
.
अगरचे हूँ क़तरा, बिछड़ जो गया है 
समुन्दर है तू, सिलसिला चाहता हूँ. 
.
नज़र से अमल तक फ़कत तू ही तू हो, 
कभी यूँ भी तर्क-ए-अनाचाहता हूँ.  
.
ख़लिश दिल में कोई न रह जाए बाक़ी 
मैं वुसअत-ए-दिल में ख़ला चाहता हूँ. 
.
मिला मेरी लौ को तेरी रौशनी में 
“चराग़-ए-सहर हूँ बुझा चाहता हूँ.” 
.
भँवर में न फँस जाए कश्ती ये मेरी 
तुझे ऐ ख़ुदा! नाख़ुदा चाहता हूँ. 
.
मुदावा है आतिश मेरी बेकसी का 
तेरा “नूर” हूँ अब दवा चाहता हूँ.

_______________________________________________________________________________

krishna mishra 'jaan'gorakhpuri

मुहब्बत का मै आसरा चाहता हूँ
तेरे इश्क में डूबना चाहता हूँ

सुने है बहुत तेरे जलवों के किस्से
सरापा तेरा सामना चाहता हूँ

बनाकर मिटाना मिटाकर बनाना
वली खत्म ये सिलसिला चाहता हूँ

दिवाना बनाया है तो वस्ल भी दो
चिराग-ए-सहर हूँ, बुझा चाहता हूँ

गज़ल आरती बन गई हैं मेरी अब
कि हर्फ़न् तुझे पूजना चाहता हूँ

________________________________________________________________________________

Samar kabeer

कोई मुझ से पूछे कि क्या चाहता हूँ
ज़माने में सब का भला चाहता हूँ

मुझे 'मीर'-ओ-'ग़ालिब' से क्या लेना देना
मैं अंदाज़ सब से जुदा चाहता हूँ

जवानी में तूने दिखाए जो मुझ को
वही ख़्वाब फिर देखना चाहता हूँ

मुआफ़ी के क़ाबिल नहीं जुर्म-ए-उल्फ़त
मैं अपने गुनह की सज़ा चाहता हूँ

तुम्हारे ही कांधो प है ज़िम्मेदारी
मैं अब इस जहाँ से चला चाहता हूँ

सवेरे सफ़र प निकलना है मुझ को
बुज़ुर्गों से अपने दुआ चाहता हूँ

ज़रा भी तू इस में तरद्दुद न करना

तिरा फ़ैसला बर मला चाहता हूँ

मुझे सब्र को आज़माना है अपने
मैं फिर से वही कर्बला चाहता हूँ

आज़ीज़ो ,मिरा हाल क्या पूछते हो
"चराग़-ए-सहर हूँ बुझा चाहता हूँ"

"समर" शह्र में अब घुटन हो रही है
मैं जंगल की ताज़ा हवा चाहता हूँ

__________________________________________________________________________________

शिज्जु "शकूर"

मैं जाँ जिस्म से कब जुदा चाहता हूँ
नहीं कुछ तुम्हारे सिवा चाहता हूँ

बस इक दह्र की इब्तिदा चाहता हूँ
नई ऋतु की आबो हवा चाहता हूँ

न कर आरज़ू वस्ल की और मुझसे
मैं मेहमान हूँ अब विदा चाहता हँ

मुझे मंज़िलों तक पहुँचना ही होगा
मुकाम आखिरी है दुआ चाहता हूँ

मेरे ज़ख़्म पर यूँ नमक तो न डालो
मैं बीमार हूँ औ’ शिफ़ा चाहता हूँ

नहीं मुझमें अब वो तबो-ताब बाकी
“चरागे सहर हूँ बुझा चाहता हूँ”

मेरा हाले दिल कोई समझा तो होता
कि क्या कर रहा हूँ मैं क्या चाहता हूँ

मेरी साफगोई से क्यों डरते हो तुम
मैं जो चाहता हूँ बज़ा चाहता हूँ

ज़रूरी नहीं फूल हों रास्तों पर
फ़क़त चलने का हौसला चाहता हूँ

मेरा रेत पर चलना तो बेबसी थी
वो समझे कि मैं आबला चाहता हूँ

लगा लीजिये ज़ोर पूरा सितमगर
हुदूदे सितम देखना चाहता हूँ

_______________________________________________________________________________

shree suneel

कहूँ क्या ज़माने से क्या चाहता हूँ
कमोवेश हीं, फ़ासला चाहता हूँ.

ज़़िया से सनम की सुलगती है चिलमन
तमाशा ये फिर देखना चाहता हूँ.

घुटन में कटी ज़िन्दगी आज तक,अब
मकानों में घर की हवा चाहता हूँ.

ये दिन चीख चिल्ला के जाता है तब तो
मुसल्सल समाँ रात सा चाहता हूँ.

दिया साथ शब ने बराबर मेरा, अब
चिराग़े सहर हूँ, बुझा चाहता हूँ.

________________________________________________________________________________

MAHIMA SHREE 

कहाँ जन्ऩतों का पता चाहता हूँ
खुद़ा से तुझे माँगना चाहता हूँ

सुना है सितारों से आगे जहाँ है

मिले साथ तेरा सदा चाहता हूँ

नहीं कोई रहबर न हमराह कोई
कि तुझसा हसीं हमनवा चाहता हूँ

सितमगर नहीं क्या, यहाँ पर कोई भी
सितम पे सितम का मज़ा चाहता हूँ

मेरा दिल तेरा आशना है यकीनन,
कि तुझसे भी अब ये वफ़ा चाहता हूँ

जला रात भर तेरी यादों में दिलवर
चिराग़- ए -सहर हूँ बुझा चाहता हूँ

तमाशा- ए- उल्फ़त से मुझको बचालो
बहुत हो गया अब विदा चाहता हूँ

नहीं कोई शिकवा शिकायत लब़ों पर
कि शामो सहर बस दुआ चाहता हूँ

जमाने का बेशक चलन ये नहीं है 
मैं खुद को खुदी में डुबा चाहता हूँ

_________________________________________________________________________________

Arvind Kumar

तड़पती हुई इक कज़ा चाहता हूँ,
दिया हूँ, मुसलसल हवा चाहता हूँ।

बहुत चीखती हैं ये खामोशियाँ, जब
मैं खुद को तुम्हारे बिना चाहता हूँ।

ऐ बाद-ए-सबा फूँक दे, मुझको आकर,
'चराग़े-सहर हूँ, बुझा चाहता हूँ।'

जो घिस कर चमक बढ़ सके, तो हूँ हाज़िर,
मैं जुगनू हूँ, तारा हुआ चाहता हूँ।

जो अब मुश्किलें कुछ निपट सी गयी हैं,
नयी एक ताज़ा बला चाहता हूँ।

चुने अश्क़ जो मेरी हँसती नज़र से,
कोई दोस्त फिर सरफिरा चाहता हूँ।

भला कोई कब तक नकारे खुदी को,
नया सा मैं इक फलसफा चाहता हूँ।

________________________________________________________________________________

arun kumar nigam

न पूछें मुझे आप क्या चाहता हूँ
खुशी बाँटने की कला चाहता हूँ |

गज़ल यूँ लिखूँ लोग गम भूल जायें
ये समझो सभी का भला चाहता हूँ |

बिना कुछ पिये झूमता ही रहे दिल 
पुन: गीत डम-डम डिगा चाहता हूँ |

न कोला न थम्सप न फैंटा न माज़ा
मृदा का बना मैं घड़ा चाहता हूँ |

न पिज्जा न बर्गर न मैगी न नूडल
स्वदेशी कलेवा सदा चाहता हूँ |

पुरस्कार के सच लगे दण्ड जैसे
इन्हें अब नहीं भोगना चाहता हूँ |

उठा आज डॉलर गिरा क्यों रुपैया
यही प्रश्न मैं पूछना चाहता हूँ |

कहाँ खो गये प्रेम के ढाई आखर
मुझे साथ दो , ढूँढना चाहता हूँ |

दिखी शब सुबकती दिखे कारनामे
चिराग-ए-सहर हूँ , बुझा चाहता हूँ |

हमें आ गया याद गाना पुराना
“तेरे प्यार का आसरा चाहता हूँ” |

__________________________________________________________________________________

मोहन बेगोवाल

अजब जिंदगी का निभा चाहता हूँ
न हो कोई मेरा सदा चाहता हूँ

अभी तक जो रिश्ता बहुत दूर तुझसे 
उसी में मैं होना फना चाहता हूँ

बदल रुप आते हैं मुझको डराने 
कि हर बार खुद से खुदा चाहता हूँ

कभी हार जो जीत में तब न बदली
उसी हार की अब दुआ चाहता हूँ

उठाने लगे अब मुझे मेरे हमदम 
"चिराग-ए-सहर हूँ बुझा चाहता हूँ "

_____________________________________________________________________________

नादिर ख़ान 

सभी के लिए मै दुआ चाहता हूँ
दुआ में ख़ुदा की रज़ा चाहता हूँ

शिकायत न शिकवा गिला चाहता हूँ
मै तो दोस्तों से वफ़ा चाहता हूँ

मै क्या हूँ, मै क्यों हूँ, मै क्या चाहता हूँ
हवा बन फ़िज़ाँ में उड़ा चाहता हूँ

डगर वो कि जिसमें भला हो सभी का
उन्ही रास्तों पे चला चाहता हूँ

जहाँ में कोई भी परेशां न हो रब
अमन हो सभी का भला चाहता हूँ

घुटन ही घुटन है शहर की हवा में
मै गावों की ठंडी हवा चाहता हूँ

अँधेरा सा छाने लगा है यहाँ अब
चिराग-ए-सहर हूँ, बुझा चाहता हूँ

समुन्दर की लहरों ज़रा पास आओ
मै दरिया हूँ तुम में फ़ना चाहता हूँ

नज़र जब मिली थी नज़र झुक गयी थी
वही खूबसूरत अदा चाहता हूँ

संभलना है मुश्किल तुम्हें देख लूँ गर
मुकद्दर में तेरा नशा चाहता हूँ

मेरे दिल में क्या है, बता दूँ मै नादिर
ख़ुशी बन के सबकी लुटा चाहता हूँ

______________________________________________________________________________

Manoj kumar Ahsaas 

ज़रा हौसले की दुआ चाहता हूँ
तेरे बाज़ुओं में पनाह चाहता हूँ

उठा हूं तेरी अंजुमन से दूबारा
फकत मौत का आसरा चाहता हूँ

मेरी आँख में बस ज़रा ठहर जाओ
अभी भी तुझे बेपनाह चाहता हूँ

निग़ाहें करम तेरा मुझपे कभी हो
इसी आस मैं शिफ़ा चाहता हूँ

बड़ी बेबसी का समा आ गया हैँ
मैं काफिर की फिरसे दुआ चाहता हूँ

बहुत हिचकिचाकर ये लिख तो दिया है
इनायत की अब इंतहा चाहता हूँ

ये दुनिया की रौनक मुबारक तुझे हो
चिराग़ ए सहर हुँ बुझा चाहता हूँ

_______________________________________________________________________________

डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव

किसे है खबर आज क्या चाहता हूँ
मेरे यार, तेरी दुआ चाहता हूँ

तेरे हुस्न की खुशबुयें साथ लाये
मै ऐसी सुहानी हवा चाहता हूँ

पिला दे मुझे आज मय एक ऐसी
न उतरे कभी वो नशा चाहता हूँ

बहुत है मनाया मुहब्बत में मैंने
करे कोई शिकवा गिला चाहता हूँ

मुझे है पता इश्क की हर रवायत 
तभी बेवफा से वफ़ा चाहता हूँ

न आंसू हमारे कभी दें दिखायी 
तमस पावसी सी अमा चाहता हूँ

बड़ी शान से है निभायी मुहब्बत
मेरी मौत हो बा-अदा चाहता हूँ

बहुत जी लिया जिन्दगी यार हमने 
चिराग-ए-सहर हूँ बुझा चाहता हूँ

किया कुछ नहीं जो मिले मुझको जन्नत
मैं दोज़ख का फाटक खुला चाहता हूँ

कफ़स में फंसा हूँ परिंदे के माफिक
तुड़ा आज बंधन उड़ा चाहता हूँ

नहीं चाहतों की है ‘गोपाल’ सीमा
कहूँ आज क्या और क्या चाहता हूँ ?

__________________________________________________________________________________

अजीत शर्मा 'आकाश'

ज़रा - सी तुम्हारी वफ़ा चाहता हूँ ।
न कुछ और इसके सिवा चाहता हूँ ।

इनायत नवाज़िश करम मेहरबानी
मैं तुमसे भला और क्या चाहता हूँ ।

ज़रा सा सही, मुझको रस्ता दिखाये
अँधेरे में मैं इक दिया चाहता हूँ ।

हटा दो ये पर्दे, दीवारें हटा दो
कि माहौल अब मैं खुला चाहता हूँ ।

मेरे हक़ में हो या मुख़ालिफ़ हो मेरे
अदालत तेरा फैसला चाहता हूँ ।

ज़माना है पीछे पड़ा हाथ धो कर
शराफत को अब छोड़ना चाहता हूँ ।

भलाई के बदले भलाई मिलेगी
मैं अब ये मिथक तोड़ना चाहता हूँ ।

न दौलत दे मुझको, न शोहरत दे मौला
हरेक शख़्स का मैं भला चाहता हूँ ।

ज़माने को अब क्या ज़रूरत है मेरी
चिराग़े - सहर हूँ बुझा चाहता हूँ ।

________________________________________________________________________________

rajesh kumari 

निजी जिंदगी से वफ़ा चाहता हूँ
हकीक़त का अब सामना चाहता हूँ

न चाहे मुझे अब वो झूठी तसल्ली
मैं बेबाक इक आइना चाहता हूँ

छुपा है कहाँ आजतक मेरे ख़ालिक
तुझे इक नजर देखना चाहता हूँ

मुझे है खबर ये सफ़र आख़िरी है
दवा बेअसर है दुआ चाहता हूँ

कभी जिंदगी में किया हो बुरा तो
खुदा जाते जाते सजा चाहता हूँ

मुझे काटते हैं फरेबी वो साए
बिना छाँव का रास्ता चाहता हूँ

तेरी बज्म रोशन मेरी क्या जरूरत
चिराग-ए-सहर हूँ बुझा चाहता हूँ

बहुत थक गया हूँ अभी इस सफ़र से 
सभी मसअलों से विदा चाहता हूँ

________________________________________________________________________________

Chhaya Shukla 

नहीं मोहलत की उमर चाहता हूँ |
इसी हाल अब तो विदा चाहता हूँ |

नहीं आरजू है जियादा की मुझको 
न लौटे वो भूखा दुआ चाहता हूँ |

मुझे आसमां की जरूरत नहीं है
तेरे दिल में थोड़ी जगह चाहता हूँ |

अजब रोग दिल का लगा है मुझे 
तेरे प्यार का आसरा चाहता हूँ |

नहीं चाहिए वो तसल्ली जो झूठी 
खुदा मैं तो बस अब निया चाहता हूँ |

बहुत आज गहरा रहा है अँधेरा 

"चिराग-ए-सहर हूँ, बुझा चाहता हूँ” |

चलो आज “छाया” रजा तो बता दें 
खुदा के बगल मैं बसा चाहता हूँ ||

_______________________________________________________________________________

लक्ष्मण रामानुज लडीवाला 

गजल की अभी मैं अदा चाहता हूँ
सिखाओ मुझे सीखना चाहता हूँ |

मै अश;आर कहने का’ आदी नहीं हूँ 
हुनर ये भी’ पाना ज़रा चाहता हूँ |

गजल पढ़ रहा हूँ यहाँ बज्म में ही
बला की मै’ अपनी अदा चाहता हूँ |

हवा आज माकूल सी लग रही है,
चिराग-ए-सहर हूँ बुझा चाहता हूँ |

भले आज मेरा समय भी नहीं है
बदलना समय को ज़रा चाहता हूँ |

_____________________________________________________________________________

Mukesh Kumar Saxena 

गुनहगार हूँ ,मैं सज़ा चाहता हूँ ।
मै राज़ी हूँ तेरी रज़ा चाहता हूँ ।

तू एक बार मुझको गले से लगा ले,
मैं एक दोस्त तो वा-वफ़ा चाहता हूँ ।


तू मुझको बता दे हर राज़ अपना ,
मैं गम को तेरे वाँटना चाहता हूँ ।


जो दिल को सुकूँ रूह को ताज़गी दे ,
मैं कानो में ऐसी सदा चाहता हूँ ।


नहीं कुछ छिपाना तुझसे है वाज़िब ,
मैं हर एक पर्दा हटा चाहता हूँ ।


हवाओं का मुझको नहीं खौफ कुछ भी ,
"चिराग-ए-सहर हूँ, बुझा चाहता हूँ ।"


मैं फिरता रहा दर-वा-दर मेरे मौला ,
तेरे दर का मैं आसरा चाहता हूँ ।

मै चलता रहूँ जोश से तेरी ज़ानिब ,
मग़र हर कदम हौसला चाहता हूँ ।


नहीं मौत से मै ज़रा भी डरूंगा,
तेरा हाथ मैं थामना चाहता हूँ ।

_________________________________________________________________________________

किसी शायर की ग़ज़ल छूट गई हो अथवा मिसरों को चिन्हित करने में कोई त्रुटि हुई हो तो अविलम्ब सूचित करें|

Views: 2082

Reply to This

Replies to This Discussion

आ० राना प्रताप सिंह सर ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा अंक 59 के शानदार आयोजन की हार्दिक बधाई.मेरी गज़ल को संकलन में स्थान देने के तहेदिल से आभार! सभी गजलों के संकलन चिन्हित मिसरों के साथ करना वाकई दुरूह काम है!आ० आपकी लगन को नमन!अभिनन्दन!

आ० मेरी गज़ल के दूसरे और तीसरे शेर को को निम्नवत प्रतिस्थापित करना निवेदित कर रहा हूँ---

सुने है बहुत तेरे जलवों के किस्से

सरापा तेरा सामना चाहता हूँ

 

बनाकर मिटाना मिटाकर बनाना

वली  खत्म ये सिलसिला चाहता हूँ 

सादर!

 

भाई जान गोरखपुरी जी वांछित संशोधन कर दिया है|

संकलन हेतु बधाई है राणा प्रताप भाई...

स्वागत है भाई भुवन निस्तेज जी|

संकलन जैसे मुश्किल काम के लिए आप बधाई के पात्र हैं आ. राणा प्रताप सर जी।

मेरी गजल का लाल मिसरा इस प्रकार कर दीजिये आदरणीय -- भरी बज़्म में हैं हर इक सिम्त बातिल
एक और मिसरा बदलवाना चाहता हूँ सर जी, मैं देवों की झूठी सुरा चाहता हूँ; इसके स्थान पर यह कर दीजिए सर-- मैं अपने लिए मयकदा चाहता हूँ। सादर।

आदरणीय दिनेश जी वांछित संशोधन कर दिया है|

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय राणा प्रताप सर जी।

जी ..मिसरा फिर कहता हूँ... अफ़सोस ..मेरा मिसरा लाल हो गया :( 

आदरणीय नीलेश जी मुझे भी अफ़सोस है , जल्दी से इसे सुधार लीजिये, मैं रिप्लेस कर दूंगा :-)

आदरणीय राणा सर ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा अंक 59 के आयोजन की सफलता के लिए हार्दिक बधाई. संकलन के लिए हार्दिक आभार 

इस सफल आयोजन के लिए आपको भी ढेर सारी बधाइयां|

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service