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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-61

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 61 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह खुदा -ए सुखन मीर तकी मीर की ग़ज़ल से लिया गया है|

 
"रात को रो-रो सुबह किया, या दिन को ज्यों-त्यों शाम किया"

२२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २

फेलुन  फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फा 

(बह्र: मुतदारिक मुसम्मन् मक्तुअ मुदायफ महजूफ)
रदीफ़ :- किया 
काफिया :- आम (शाम, काम , नाम, तमाम आदि )

 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 24 जुलाई दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 25 जुलाई दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 24 जुलाई शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

सभी अश'आर पसंद करने के लिए हार्दिक आभार आपका श्री गिरिराज भंडारी जी | सादर 

आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवाला सर बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं 

बहुत बेहतरीन मतला हुआ है, गिरह भी आपने खूब लगाईं है. आखिरी शेर मजेदार और एक अनुभवी कलम से निकला है. बहुत बहुत बधाई 

ये शेर बेबह्र हो रहा है- 

दो बेटों के होते भी माँ ने कष्ट सदा ही भोगा

ऐसे बेटों के रहते माँ ने न कभी आराम किया  |

सादर 

गजल पर पुनः आकर सुंदर प्रतिक्रिया से होंसला अफजाई करने के लिए बहुत बहुत आभार आपका श्री मिथिलेश वामनकर जी | सादर 

मेरे कहे के अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार 

जीवन मर्म से भरपूर गजल बडी ही शानदार बनी है । वाह !!! बधाई आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी

गजल सराह्ने के लिए हार्दिक आभार आपका आदरणीया कांता रॉय जी |

सादर 

जनाब लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी,आदाब,वाह वाह वाह ,बहुत शानदार ग़ज़ल कही है आपने,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।

आदाब श्री समर कबीर साहब, होंसला अफजाई के लिए तहेदिल से शुक्रिया आपका | सादर 

सभी शेर सुन्दर बने हैं आ. लक्ष्मण रामानुज जी।

शुक्रिया आपका आदरणीया डॉ नीरज शर्मा जी | सादर 

भाव एवं सोच विशेष को साझा करती यह ग़ज़ल आम परिपाटी से भिन्न है. यह भी एक शैली हो सकती है यदि इसे कसावट के साथ प्रस्तुत किया जाय. ऐसे वज़न के मिसरों में ज़बरदस्त गेयता की आवश्यकता होती है.
आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी प्रस्तुति और सहभागिता के लिए हार्दिक बधाई.
सादर

मुझे गजल का अनुभव कम होने और अब तक छंदों में ही रचना करते रहने के कारण 'गजल आम परिपाटी से भिन्न' लग रही होगी जिसमे गेयता के लिए आगे प्रयास जारी रखने का प्रयत्न रहेगा आदरणीय सौरभ भाई जी | आपका हार्दिक आभार 

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