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आ neha agarwal जी
नमस्कार .
आप ने बहुत ही अच्छी रचना लिखी है . बधाई आप को.
///"आखिर क्या गुनाह किया था मेरे बेटे ने ? जो अपने ही मुल्क में इसे बेरहमी से मार दिया गया "///
कर ले.
अच्छी कथा आ. नेहा अग्रवाल सिस | बधाई स्वीकारें |
"नफरत की बुनियाद पर प्यार के महल नहीं बन सकते", बहुत ही कडुवा सच है यह, जब हम बुनियाद स्थापित कर रहे होते हैं, तब शायद हर बात को समझना मुश्किल हो जाता है और फिर जब उसकी प्रतिक्रियाएं सामने आती हैं तो कई बार हिला भी देती हैं| बधाई आपको नेहा जी इस रचना के लिये|
"आखिर क्या गुनाह किया था। मेरे बेटे ने जो अपने ही मुल्क में इस बेरहमी से मार दिया गया इसे " इसमें बीच में पूर्णविराम की आवश्यकता नहीं थी .
नफरत की बुनियाद पर प्यार के महल नहीं बन सकते ना ,जब बुनियाद में ही दीमक लगा है तो घर को तो धराशायी होना ही था ना" इसमें शुरू में इन्वर्टेड कोमा लगाना था|
सार्थक सन्देश देती हुई अच्छी लघु कथा हुई बधाई आपको नेहा जी.
आदरणीय नेहा जी, बहुत सुंदर लघुकथा,हार्दिक बधाई!आपकी लघुकथा समाज में फ़ैल रहे आतंक्वाद पर अच्छा प्रहार है!
बहुत कमज़ोर लघुकथा है प्रिय नेहा अग्रवाल जी, आनंद नहीं आया। हमारे देश की बुनियाद नफरत पर रखी गई है, ये आपको किसने कह दिया ? अगर देश की बात नहीं कर रहीं, तो किस बुनियाद की बात कर रही हैं आप ?
नेहा जी मेरे विचार से आपकी लघुकथा थोड़ी अस्पष्ट है- कैसी नफ़रत की बुनियाद और बुनियाद की दीमक? र थोडा विस्तार मांगती है. ये मेरी निजी राय है. सुधिजन अधिक अच्छे से बता सकेंगे.
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