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आदरणीय योगराज सर, क्या अनिवार्य है कि लघुकथा एक ही दृश्य में समाप्त हो जाए? जबकि दोनों दृश्य आपस में अंतर्संबंधित है और एक ही संवेदना को व्यक्त कर रहे है. सादर
लघुकथा एक एकांगी विधा है, जिसमे किसी एक विशेष क्षण को मेग्नीफाई कर के उभारा जाता है। एक से अधिक दृश्यों का समावेश कहानी में होता है, लघुकथा में यह वर्जित है भाई मिथिलेश जी।
बहुत बहुत आभार सर जी आपको । कितने सहज भाव में आप चीजों के ऊपर पड़े हुए धुँध को साफ कर देते है और मानस पटल पर सब कुछ साफ साफ दिखाई देने लगता है । ये रहस्य तो हमारे सामने चाभी होते हुए भी कहाँ लगाना है ,ऐसा भ्रमित होने जैसा ही लगता है और आप के चंद अल्फाज़ हमारे सारे ताले की चाभी जैसे ही होते है । नमन सर जी
आदरणीय योगराज सर, आपने बड़ी सहजता से बात को स्पष्ट कर दिया.//एक विशेष क्षण को मेग्नीफाई कर के उभारा जाना// इस मार्गदर्शन हेतु हार्दिक आभार. नमन.
आदरणीय योगराज सर लघुकथा की बारीकी समझाने के लिए शुक्रिया....
आदरणीय योगराज सर, लघुकथा पर पुनः प्रयास किया है.... एक दृश्य में समेटा है. निवेदित है-
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स्पीच में फर्स्ट प्राइज़ की ट्रॉफी लेकर, बेटा स्कूल से घर आया तो देखा पापा बेडरूम की अलमारी से नोटों की गड्डियाँ ब्रीफकेस में रख रहे थे.
“पापा मुझे स्पीच में फर्स्ट प्राइज मिली है.”
“वेरी गुड बेटा..... मेरे बेटे ने कैसे स्पीच दी?”
“पापा जैसा आपने बताया था बिलकुल वैसे ही ....हम्म्म..... हमेशा सत्य बोलना चाहिए. झूट बोलना पाप है. गांधीजी हमेशा सत्य बोलते थे. सत्य की हमेशा जीत होती है....और परोपकार..... परोपकार, मतलब दूसरों पर उपकार करना. परोपकार सबसे बड़ा धर्मं है. असहाय लोगो का सदैव सहयोग करना चाहिए. यही परोपकार है”
तभी कॉलबेल बजी और पत्नी ने आकर फुसफुसाया- “किशन भैया आये है. कह रहे है कि मीना अभी भी कोमा में है.”
सुनते ही ब्रीफकेस बंद किया और ड्राइंग रूम पहुँच गए. ट्रॉफी लिए बेटा भी ड्राइंग रूम के दरवाजे के आड़ में खड़ा रहा.
“किशन अभी तो मैं ऑफीस जा रहा हूँ जरुरी मीटिंग है. पूरे पैसो का इंतजाम होते ही तुम्हे फोन करता हूँ. अस्पताल जाओ अभी तुम ... और हाँ ये कुछ पैसो का इंतजाम किया है.ये ले जाओ."
और ब्रीफकेस किशन को थमा दिया.
बेटे ने पल भर अपनी चमकती ट्रॉफी को देखा तो उसे लगा ये पापा के गाल है और उसने ट्रॉफी को चूम लिया.
सार्थक प्रयास आदरणीय मिथिलेश वामनकर भाई जी । अब देखिए कथा कैसे शीतल नीर समान चमक रही है । यह इस मंच की विशिष्टता है कि यहां सीखने वाले और सिखाने वाले बड़ी ही सहृदयता से अपना अपना कार्य करतें हैं । ओबीओ जिन्दाबाद ।
आदरणीय रवि जी, आपका अनुमोदन मिल गया तो थोड़ा आश्वस्त हुआ हूँ. वैसे भी आज इस लघुकथा के कारण अग्रजों की इतनी डांट पड़ी है कि सारी बातें भूलकर बस प्रयास करना ही था. आज की विशेष सीख-
aadarniy mithilesh ji ,"कथनी और करनी " पर आधारित आपकी दो कथाएं पढ़ी .दोनों का अंत अलग .एक नकारात्मक और एक सकारात्मक . लघु कथा के प्रति आपके प्रेम और प्रयास देख अभिभूत हूँ .
आदरणीया रीता गुप्ता जी, लघुकथा के दोनों वर्जन के मर्म को मेरे साथ महसूसते हुए सराहना हेतु हार्दिक आभार. अभी लघुकथा का बिलकुल नया अभ्यासी हूँ. पद्य विधाओं का अभ्यासी होने के कारण गद्य विधाओं में स्वयं उतना सहज मससूस नहीं करता हूँ. फिर लघुकथा गद्य की एक विशिष्ट विधा है जिसमे भाव पक्ष और शिल्प में अत्यधिक सचेत रहना आवश्यक है. यही कारण है कि इस लाइव गोष्ठी की कार्यशाला में सतत प्रयासरत रहता हूँ. मेरे प्रयास का आत्मीय और मुखर अनुमोदन करना, लघुकथा के प्रति आपके समर्पण को ही इंगित करता है. आपका आभार. सादर
हमें भी इस से सीखने को मिला
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