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कम शब्दों में माँ की महानता को सिद्ध कर दिया आपने ... माँ ही तो होती है हम सब की बुनियाद!
बहुत ही सुन्दर, सार्थक व सटीक लघुकथा.
किसी भी बच्चे की पहली गुरु तो उसकी माँ ही होती है और अगर माँ ने अच्छे संस्कार दिए हों तो व्यक्ति कुछ भी कर सकता है | बहुत उम्दा लघुकथा , बधाई..
प्रदत्त विषय पर बहुत सधी हुई सार्थक लघु कथा के माध्यम से माँ द्वारा परवरिश की महत्ता को दर्शाया है बहुत बहुत बधाई आ० प्रवीण झा जी |
आदरणीय मिथिलेश जी, बहुत ही गंभीर लघुकथा,बधाई!सत्य और परोपकार की भाषा अचानक झूठ की भैंट चढ गयी!परिजनों का दोगलापन बाल मन पर कैसी छाप डालेगा, यह भी नहीं सोचते लोग!
आदरणीय तेजवीर जी हार्दिक आभार.// आपकी टिप्पणी गलत थ्रेड में पोस्ट हो गई है.//
“बहू! तुमने अच्छी तरह सोच समझ कर निर्णय लिया है न, शानू को अपने घर में रखने का?” -मीरा ने अपनी नई नवेली बहू से पूछा।
“जी मांजी ! ताऊजी की अचानक मौत के बाद उनके परिवार को सहारे की ज़रूरत है। अपनी थोड़ी सी तनख्वाह में वो अपने भाई की पढ़ाई व घर का खर्च कैसे उठाएगा? वो और हम एक ही शहर में रहते हैं ,तो वह पी जी छोड़कर हमारे साथ ही रह लेगा। इस तरह उसका रहने, खाने का खर्च भी बच जाएगा व उस पैसे से वह अपने परिवार की मदद कर पाएगा।”
“देख लो बहू! बदले मे कोई वाहवाही या तारीफ नहीं मिलेगी तुम्हें।”
“जानती हूं मां जी! अहसान या तारीफ की बात तो मेरे ज़हन में भी नहीं आई। वो हमारे अपने हैं, उनका खयाल रखना हमारा फर्ज़ है। इस समय दोनों भाई गहरे सदमे में हैं व उन्हें प्यार व अपनेपन से संभालने की ज़रूरत है। आपने देखा न! रिश्तेदार आए और मदद की जगह नसीहतें देकर चले गए ।”
“एक बार फिर सोच लो , अपने निर्णय पर कभी अफसोस न हो तुम्हें।”
“कभी नहीं होगा अफसोस। जिस तरह आपसी प्यार, विश्वास, एकता, सहयोग व साहचर्य की बुनियाद पर आपने आज तक अपने रिश्तों को संभाल कर रखा है, उस बुनियाद को मैं और भी मजबूत करना चाहती हूं”- बहू ने दृढ़ता से कहा।
मीरा ने आगे कुछ न कहते हुए बस प्यार से बहू का माथा चूम लिया।
मौलिक व अप्रकाशित
सुंदर वार्तालाप, सास ने बहू के अंतर्मन को जानने के लिये नकारात्मक बातें कहीं लेकिन बहू के सकारात्मक उत्तर ने दिल जीत लिया| हार्दिक बधाई आ० नीरज शर्मा जी इस सुंदर रचना हेतु|
बहुत बहुत आभार रचना पसंद करने के लिए आ. चंद्रेश कुमार जी।
दिल से धन्यवाद कान्ता जी आपका ।
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