For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हम भी दबंग हैं, दमदार किसम के

221 122 221 122

एक नए किस्म की- नए प्रयोग वाली ग़ज़ल
=======================================
मुस्कान दिखा के, बे-हाल बना के।
होंठों की लकीरों, का जाल बिछा के।।

यूँ आँख मिला के, जो तीर चलाया।
आया हूँ मैं जाना, दरख्वास्त लिखा के।।

जाओ न ज़रा तुम, जाओगे कहाँ अब।
दीवाने दरोगा, की नींद उड़ा के।।

संगीन दफ़ा है, चालान करेंगे।
करना है हवाले, तुमको वफ़ा के।।

तुम्हें प्रेम पाश में, गिरफ्तार करेंगे।
हम भी दबंग हैं, दमदार जहाँ के।।

मुजरिम हो मगर तुम, कुछ और तरह के।
अरदास करेंगे,हम दिल में बसा के।।

मौलिक अप्रकाशित

Views: 716

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 27, 2015 at 10:08am
हर्ष महाजन सर सादर आभार।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 27, 2015 at 10:07am
जी भंडारी सर सादर आभार।
Comment by Harash Mahajan on August 27, 2015 at 9:26am
आदरणीय पंकज जी ग़ज़ल में नये प्रयोग हेतु बधाई । सादर ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 27, 2015 at 7:32am

आदरणीय पंकज भाई , गज़ल के प्रयास के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ । मुझ्हे लगता है अभी यहाँ उपलब्ध पाठों का अभी और अध्ययन करना चाहिये , बहर भी अपने हिसाब से लेने के बजाये जो बहर मान्य हैं उन पर गज़ल कहने का प्रयास करें तो अच्छा होगा ।

Comment by Ravi Shukla on August 26, 2015 at 2:24pm

आदरणीय पंकज जी नये प्रयोग के लिये बधाई स्‍वीकार करें

तुम्हें प्रेम पाश में, गिरफ्तार करेंगे।
हम भी दबंग हैं, दमदार जहाँ के।। बह्र के मुताबिक इस शेर को फिर से देख सकते है तो हमें भी आसानी हो जाएगी ।

Comment by kanta roy on August 25, 2015 at 9:15am

मुजरिम हो मगर तुम, कुछ और तरह के। अरदास करेंगे,हम दिल में बसा के....... वाह !!!!! बडी़ सिपहियाना स्टाईल में ये गजल हुई है आदरणीय पंकज कुमार मिश्रा जी ..... बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 24, 2015 at 10:29am
आदरणीय गोपाल सर बस सीख रहा हूँ अभी; ऊर्जान्वित करनें के लिए सादर आभार।

वामनकर सर मैंने यहाँ भी आपके सुझाव के अनुरूप सुधार किया है।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 24, 2015 at 10:26am

पंकज जी

आपकी प्रयोगधर्मिता आश्वस्त करती है  .

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 23, 2015 at 11:23pm
हाँ सही कह रहे हैं वामनकर सर;सुधर दूंगा जल्दी ही

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 23, 2015 at 11:20pm

आदरणीय पंकज जी, मतले में काफिया 'आ' और रदीफ़ 'के' बनाने के बाद आप उसे बिलकुल भूल गए. प्रयोग पर पुनर्विचार निवेदित है.

मतला यूं किया जा सकता है -

मुस्कान दिखा के, बे-हाल बनाये 
होंठों की लकीरों, का जाल बिछा के

बहरहाल बढ़िया प्रयोग हुआ है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई ...सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
2 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
15 hours ago
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"आ. भाई आजी तमाम जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post काश कहीं ऐसा हो जाता
"आदरणीय अमन सिन्हा जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर। ना तू मेरे बीन रह पाता…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service