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आजकी राजनीति और राजनीतिबाजों की सटीक तस्वीर प्रस्तुत करती हुई इस लघुकथा केलिए धन्यवाद आदरणीय विजय शंकरजी. जिस तरह से जनता की ’भलाई’ केलिए दोगलई अपनायी गयी है वही राजनीति के प्रति आमजन के मन में घृणा के भाव का कारण बनी है.
आपकी इस सटीक प्रस्तुति केलिए हार्दिक बधाइयाँ
आजकल की सिद्धांत विहीन राजनीति के रूप सुंदर लघु कथा हुई है डॉ विजय शंकर जी | इसके लिए हार्दिक बधाई |
राजनीति में सिद्धांत की कोई सटीक परिभाषा नहीं, ये बात आज की छिछली राजनीति में जहां सही गलत अंपने सावार्थ के हिसाब से माने जाते है, वहाँ तक तो सही है | इसमें "आजकल की राजनीति" जैसा शब्द जोड़ा जाना चाहिए क्योकि कहानी का आदर्श पढने वाले बच्चे को बताना होता है | आदर्श राजनीति तो उसे कहते है जो चाणक्य ने बताई है | सादर
लघुकथा कुछ अधिक ही विन्यास पा गयी है, कथ्य बढ़िया है किन्तु प्रस्तुति और कसी हुई होनी चाहिए थी, बहरहाल इस प्रस्तुति पर बधाई व्यक्त करता हूँ आदरणीय डॉ साहब.
नैतिकता
आज रमेश बहुत गुस्से में घर से निकला ।
रास्ते भर सोचता रहा कि बस अब बहुत हो गया, आज तो आर या पार करके ही लौटूंगा।
अचानक पिता की मौत का समाचार मिलते ही उसे भारत आना पड़ा, छुट्टियां भी कम ही थीं। पिता की मौत के बाद कई काम निपटाने थे। उनके मृत्यु प्रमाणपत्र के बिना कई काम अधर में लटके पड़े थे। क्लर्क उसे रोज़ बहाने बनाकर कभी कोई तो कभी कोई कागज़ लाने को कह कर टरका देता।
समय कम था अतः उसकी चिंता बढ़ती ही जा रही थी व साथ साथ गुस्सा भी।
यही सब सोचता हुआ वह दफ्तर पहुंच गया।
सामने ही क्लर्क को देखकर, कहीं गुस्से से काम न बिगड़ जाए , यह सोच कर स्वयं को संयत करते हुए उसने दफ्तर में प्रवेश किया।
"आज तो मेरा काम हो जाएगा न बड़े बाबू?"
"आपका काम थोड़ा टेढ़ा है, इंकवायरी भी तो करनी पड़ती है, उसमें समय लगता है"-बड़े बाबू ने समझाया।
"समय ही तो नहीं है मेरे पास, मुझे अमेरिका वापस लौटना है।"
सामने बड़ी मुर्गी देखकर होठों पर जीभ फिराते हुए बाबू ने सलाह दी -"देखिए आप चाहेंगे तो काम जल्दी भी हो जाएगा, पर आपको कुछ सुविधा शुल्क का प्रबंध करना होगा।"
"सुविधा शुल्क?"
"जी ! यही कुछ चाय पानी के लिए"
"वो तो ठीक है , पर इस बात की क्या गारंटी कि इसके बाद मेरा काम हो ही जाएगा।"
"अरे जनाब !! कैसी बात कर रहे हैं ? आखिर नैतिकता भी कोई चीज़ है कि नहीं।"
मौलिक व अप्रकाशित
आखिर नैतिकता भी कोई चीज़ है कि नहीं।-- इस वाक्य ने सारी नैतिकता की पोल खोल कर रख दी. बढ़िया रचना आ नीरज शर्मा जी .
बहुत बहुत आभार आ. ओमप्रकाश जी, लघुकथा पसंद करने के लिए।
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