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आदरणीया बबीता जी, लघुकथा के प्रयास पर सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद
एकदम यथार्थ में पगी हुई है ये स्वर्ग और नरक की परिभाषा ,सशक्त रचना के लिए बधाई आ० मिथिलेश जी
आदरणीया प्रतिभा जी, लघुकथा के प्रयास पर सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद
आदरणीय मिथिलेश जी, अच्छी लघुकथा हुई है, स्वर्ग और नरक सब इसी धरती पर हैं, बहुत ही सहजता से यह तथ्य परिभाषित हुई है, बधाई स्वीकार करें.
आदरणीय बागी सर, लघुकथा के प्रयास पर आपकी प्रशंसा मेरे लिए बहुत मायने रखती है. सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद. नमन
आदरणीया जानकी जी, लघुकथा के प्रयास पर सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद
आदरणीय योगराज सर, वर्ण व्यवस्था की जड़ें कितनी गहरी है, इस मर्म को अभिव्यक्त करती इस सार्थक लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई. रचना पर पुनः उपस्थित होता हूँ. सादर नमन
आदरणीय योगराज सर, आपकी इस प्रस्तुति से लघुकथा के शिल्प विषयक एक गंभीर प्रश्न 'लघुकथा का आकार क्या होना चाहिए?' का जवाब मिल गया. यह प्रस्तुति लघुकथा का आकार बड़ा होने का भ्रम अवश्य पैदा करती है, किन्तु लघुकथा से गुजरते हुए एक दृश्य या एक क्षण को जिस सधे हुए ढंग से आपने प्रस्तुत किया है, समझ आता है कि लघुकथा का शिल्प क्या चाहता है. इस लघुकथा में आपने वर्ण व्यवस्था पर तीखा प्रहार किया है और स्पष्ट भी हुआ है कि इसकी जड़ें कितनी गहरी है. जो व्यवस्था वर्ण/ रंग से कर्म और कर्म से जन्म आधारित हुई, वह इतनी मजबूती से अपनी जड़ें जमा चुकी है कि वह भी ये सत्य कहलवा देती है - // "होना क्या है ठाकुर साहिब ! घोर कलयुग आ गया है, वर्ण व्यवस्था की धज्जियाँ उडाई जा रहीं हैं । //- इस प्रस्तुति का होना मुझ जैसे नए अभ्यासी के लिए मार्गदर्शक है, उदाहरण है, इस प्रस्तुति हेतु आपका बहुत बहुत आभार. नमन
//वर्ण व्यवस्था पर तीखा प्रहार किया है और स्पष्ट भी हुआ है कि इसकी जड़ें कितनी गहरी है. //
आपने लघुकथा का मर्म बिलकुल सही तरीके से समझा है भाई मिथिलेश जी I दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ I
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