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आदरणीय रवि भाई, प्रदत्त विषय को संतुष्ट करती बहुत ही प्यारी लघुकथा प्रस्तुत हुई है, अंतिम पक्ति को तनिक और कस सकते थे ...
एक बानगी ...
‘साहब, अब मुन्ना कैसा है? मैं तो उसे देखने के लिए ही खड़ा था । बीते बरस गांव में ऐसी ही सर्द रात में मेरा बच्चा ....
कुल मिलाकर एक बेहतरीन लघुकथा से आयोजन का शुभारम्भ हुआ है, बहुत बहुत बधाई आदरणीय रवि भाई.
आपकी इस कथा को मैंने पूरे गोष्ठी के दौरान कई बार पढ़ी है। हर बार कुछ सीखती हूँ। नमन आपको आदरणीय रवि जी।
कीचड और कमल
"इस बार तो इंद्र देवता ने कमाल ही कर दिया मालिक, देखिए न बरसों से सूखाग्रस्त हमारा गाँव भी जल थल हो गया है।"
"हाँ वो तो ठीक है मगर लेकिन बारिश की वजह से हमारा जौहड़ कीचड से भर गया है।"
"अब बारिश में भले गंगाजल ही क्यों न बरसे, कीचड तो होगा ही होगा।"
"लेकिन लोगबाग इसे देखकर नाक सिकोड़ रहे हैं, और हम से नाराज़ भी हैं। क्या जवाब दें उनको, भरवा दें क्या जौहड़ को?"
"नहीं मालिक बिलकुल नहीं, आप उन अनाड़ियों की परवाह बिल्कुल न करें।"
"तो हम क्या करें माली काका?"
"आप थोड़ी प्रतीक्षा करें। हम इस जौहड़ की अच्छी तरह से देखभाल करेंगे, इस पर दिलो जान से मेहनत करेंगे । जिस दिन इस कीचड़ में कमल खिल गए, तब इन सबकी ज़ुबानों पर ताले पड़ जाएंगे।"
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(मौलिक और अप्रकाशित)
वाह !!! क्या सुंदर ,अद्भुत भाव हुए हैं कथा के। "कीचड़" पर यकींन और अपने कर्मो पर विश्वास का बखूबी आभास कराया है आपने अपनी इस सार्थक रचना में। क्या खूब सशक्त लघुकथा हुई हैं ! नमन सर जी आपको।
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी आप ही कीचड़ में कमल खिलाने की क्षमता रखते है. सुंदर भावाभिव्यक्ति और इस लघुकथा के लिए मेरा अभिनन्दन स्वीकार करे. सादर .
सुंदर भावपूर्णकथा सर ! आज के परिपेक्ष में खरी उतरती हुई । सादर
कुदरत के पास हर चीज का प्रतिउत्तर होता है इसका जीता जागता उदाहरण है ये लघु कथा जो अपने विषय के साथ पूर्ण न्याय कर रही है बहुत बढ़िया ...हार्दिक बधाई आ० योगराज जी
कैसी भी विषम परिस्थिति में सकारात्मक सोच को दर्शाती कथा कौन क्या कहता है बिना परवाह किये कर्म तथा मेहनत की सीख देती हुई एक सुन्दर रचना आदरणीय योगराज प्रभाकर जी आपको सादर बधाई
इसी कीचड़ से उत्पन्न कमल ,माँ वाग्देवी के चरण-वन्दना के लिए यही नाक-भों सिकोड़ने वाले ढूंढते फिरते हैं | हर बार की तरह एक और अध्याय , हम अभ्यासियों के लिए | सादर
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