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बढ़िया बात साझा हुई है.
आदरणीय उस्मानी जी लघुकथा के कथ्य के मर्म के सापेक्ष कथ्य का शाब्दिक विस्तार सुगठित किये जाने की गुंजाइश है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई
बिल्कुल सही कहा आपने ऐसा होता हैं ...शायद सच्चाई के करीब ही हैं या सच्चाई ही हैं आपकी कथा
बहुत अछि पते की बात की आपने कांता दी ..सादर नमस्ते
ये भी उम्दा कही आपने आदरणीय अर्चना जी। हा हा हा हा
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